उत्तर-प्रदेश के संभल में जिला अदालत के आदेश का पालने करने पहुँची सर्वे की टीम पर हमला किया गया। मज़हबी भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर भी पत्थराव किया। दर्जनों पुलिसकर्मी घायल हुए। अब तक 4 दंगाईयों की मौत की ख़बर है।
The Pamphlet को प्राप्त हुए एक्सक्लुसिव वीडियो में स्पष्ट दिखाई देता है कि जब मस्जिद में सर्वे चल रहा था तब मज़हबी भीड़ ने हिंसा की शुरूआत की थी। मज़हबी भीड़ इस दौरान ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाह-हू-अकबर’ की नारेबाजी भी कर रही थी।
भीड़ की इस हिंसा को देखने के बाद दो बड़े सवाल उठते हैं। पहला ये कि अदालत ने जो आदेश दिया है, उससे आप सहमत नहीं हैं तो क्या आप हिंसा करके अपनी असहमति दिखाएंगे?
कानूनी लड़ाई तो कोर्ट में लड़ी जाती है। देश का संविधान, देश का कानून तो यही कहता है कि कोर्ट के किसी आदेश से कोई पक्ष सहमत नहीं है तो उसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है।
संभल की जिला अदालत ने सर्वे का आदेश दिया था। मुस्लिम पक्ष इससे ख़ुश नहीं था तो वो हाईकोर्ट जा सकता था। हाईकोर्ट से भी अगर उसे स्टे ना मिलता तो वो सुप्रीम कोर्ट जा सकता था। अदालतों के दरवाजे तो किसी के लिए बंद नहीं हैं लेकिन मुस्लिम पक्ष हिंसा का रास्ता अपनाता दिखाई दिया। सवाल है क्यों?
इकोसिस्टम और कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है कि यूपी की योगी सरकार ने पक्षपाती भरा रवैया अपनाया- सवाल है कैसे?
हम सभी जानते हैं कि कोर्ट के आदेश का पालन करना सरकार के लिए अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद का सर्वे करवाओ। सरकार ने आदेश का पालन किया। इसमें सरकार क्या कर सकती है? सरकार अगर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेगी तो सरकार के विरुद्ध कोर्ट कार्रवाई कर सकता है- ऐसे में सरकार को तो अदालत के आदेश का पालन करना ही पड़ता है। वही यूपी सरकार ने भी किया, फिर सरकार पर सवाल क्यों?
इकोसिस्टम का कहना है कि चार लोगों की मौत हो गई। पहला तो ये कि यह जाँच का विषय है कि उन चार दंगाईयों की मौत हुई कैसे? लेकिन यूपी पुलिस की कुछ वीडियो शेयर करते हुए इकोसिस्टम दावा कर रहा है कि पुलिस ने फायरिंग की तो सवाल सीधा है कि अगर पुलिस पर हमला होगा, अगर पुलिस पर पत्थर फेंके जाएंगे, अगर पुलिस को मारा जाएगा- तो पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठी तो नहीं रहेगी, आत्मसुरक्षा के लिए पुलिस भी कुछ ना कुछ करेगी।
देश का संविधान, देश का कानून पुलिस को आत्मसुरक्षा का अधिकार देगा। आत्मसुरक्षा के लिए फायरिंग करने का अधिकार भी देता है वही पुलिस करती दिखाई दे रही है।
कांग्रेस पार्टी और इकोसिस्टम सरकार पर, पुलिस पर, अदालत पर सभी पर सवाल उठाते दिखाई दे रहा है लेकिन कोई भी दंगाईयों पर सवाल उठाता दिखाई नहीं दे रहा। कोई भी यह भी नहीं कहता दिखाई दे रहा कि दंगाईयों को भड़काया किसने?
सुनियोजित तरीके से जो हिंसा दिखाई दे रही है, उसके पीछे असली मास्टमाइंड कौन है? क्यों कांग्रेस पार्टी मौलाना तौकीर रजा जैसे तमाम मौलानाओं और नेताओं पर सवाल नहीं उठाती जो लगातार मज़हब के नाम पर मुस्लिमों को भड़काते दिखाई दे रहे हैं?
कुछ दिन पहले ही मौलाना तौकीर रज़ा ने कहा था कि हमारे नौजवान सड़कों पर आ गए तो तुम्हारी रुह काँप जाएगी। क्या इस तरह के बयान ऐसी हिंसा के लिए जिम्मदार नहीं हैं?
सवाल ये भी उठ रहे हैं कि हिंसा के समय संभल के समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क संभल में क्यों नहीं थे? जबकि हिंसा से एक दिन पहले वे यहाँ पर पुलिस को तैनात किए जाने का विरोध कर रहे थे।
पुलिस ने भी अखिलेश यादव के सांसद जिया-उर-रहमान के विरुद्ध साज़िश के आरोप के तहत FIR दर्ज की है- ऐसे में निश्चित तौर पर ये कहा जा सकता है हिंसा अचानक अपने आप भड़की हुई हिंसा नहीं थी बल्कि सुनियोजित तरीके से इस हिंसा को अंजाम दिया गया। अभी तो सुनियोजित हिंसा का आरोप हैं लेकिन जाँच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।