सैम होरमूज़जी फ़्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ का आज जन्मदिन है। उन्हें उनके पूरे नाम से शायद ही कभी पुकारा गया। उनकी पलटन उन्हें सैम बहादुर कहती थी और उनका लोकप्रिय नाम था फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। सैम बहादुर अपनी ज़िंदादिली, बहादुरी के साथ साथ अपने सेंस ऑफ ह्यूमर के लिये भी जाने गए।
सैम का जन्म 3 अप्रैल, 1914 को अमृतसर में पारसी परिवार में हुआ था, जो गुजरात तट पर वलसाड के छोटे शहर से पंजाब चले गए थे। मानेकशॉ 1969 में भारतीय सेना के आठवें चीफ ऑफ स्टाफ बने। जनरल के जन्म का वर्ष लगभग था वह समय जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा था। एक नज़र डालते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही क़िस्से-कहानियों पर।
पहला क़िस्सा कुछ ऐसा है कि साल 1971 के भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के मध्य तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह लगने लगा था कि मानेकशॉ कहीं सेना की मदद से सैन्य तख्तापलट ना कर बैठें।
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इसके जवाब में सैम मानेकशॉ ने इंदिरा गाँधी से कहा था, “क्या आपको नहीं लगता कि मैं आपकी जगह पर आने के लायक नहीं हूँ मैडम? आपकी नाक लंबी है। मेरी नाक भी लंबी है, लेकिन मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूँ।”
प्यार से ‘सैम बहादुर’ कहे जाने वाले 94 वर्षीय मानेकशॉ कई सैन्य अभियानों की विजय के सूत्रधार थे, लेकिन उनका सबसे अच्छा दौर वह था जब 14 दिनों के भीतर पाकिस्तानी सेना को परास्त कर दिया गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारत को आजादी मिलने के बाद गोरखाओं की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी भी थे।
जापानी सैनिक ने गुर्दों में उतार दी थीं 7 गोलियाँ
सैम को सबसे पहले जाना गया साल 1942 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन की 7 गोलियाँ उनकी आँत, जिगर और गुर्दों में उतार दीं थीं।
इस पर उनकी जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह ने कहा था कि, इस घटना के फ़ौरन बाद सैम बहादुर के सीने पर उनके कमांडर मेजर जनरल कोवान ने अपना मिलिट्री क्रॉस इसलिए लगा दिया था क्योंकि क्योंकि मृत फ़ौजी को मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जाता था।
यहाँ से सैम को उनके अर्दली सूबेदार शेर सिंह ने अपने कंधे पर उठाया और डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने ये कहते हुए उपचार करने से इनकार कर दिया था कि सैम नहीं बचने वाले। ऐसे में शेरसिंह ने डॉक्टर पर रायफल तानकर सैम का इलाज करवाने के लिए राज़ी किया।
साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम मानेकशॉ को बिजी कौल की जगह पर चौथी कोर की कमान दी गई।
अपना पद संभालते ही सैम ने सभी सैनिकों से कहा था, “आज के बाद आप में से कोई भी तब तक पीछे नहीं हटेगा, जब तक आपको इसके लिए लिखित आदेश नहीं मिलते। ध्यान रखना कि यह आदेश आपको कभी भी नहीं दिया जाएगा।”
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एक समय सैम ने इंदिरा गांधी को ऑपरेशन रूम में घुसने से यह कहते हुए रोक दिया था कि ‘आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है’।
इस बात का ज़िक्र सैम के एडीसी ब्रिगेडियर बहराम पंताखी ने अपनी किताब ‘सैम मानेकशॉ- द मैन एंड हिज़ टाइम्स’ में किया है। तब इंदिरा के पिता जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और रक्षा मंत्री थे यशवंतराव चव्हाण।
सेना मुख्यालय में एक बार चल रही बैठक के बीच रक्षा सचिव हरीश सरीन ने वहां बैठे एक कर्नल से कहा, “यू देयर, ओपन द विंडो”
इस पर सैम ने रक्षा सचिव की तरफ मुड़कर कहा, “सचिव महोदय, आज से आप मेरे किसी अफ़सर से इस लहजे में बात नहीं करेंगे. यह अफ़सर कर्नल है, ‘यू देयर’ नहीं।”