विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार, 18 अगस्त, 2022 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में थाईलैंड में हिंदू धर्म का आधिकारिक केंद्र माने जाने वाले एक हिंदू मंदिर का दौरा किया। इस अवसर पर विदेशमंत्री जयशंकर ने भारत और थाईलैंड की साझा धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं पर भी प्रकाश डाला। जयशंकर मंगलवार, 16 अगस्त, 2022 को भारत-थाईलैंड संयुक्त आयोग की 9वीं बैठक में भाग लेने के लिए थाईलैंड यात्रा पर गए हुए थे।
जयशंकर ने ट्वीट किया, “आज (गुरुवार) सुबह बैंकॉक के देवस्थान में प्रार्थना की और फ्रा महाराजगुरु विधि से आशीर्वाद प्राप्त किया जो हमारी साझा धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को रेखांकित करता है।”
बैंकॉक के फ्रा नाखोन जिले में वाट सुथत के पास स्थित ‘थाई रॉयल कोर्ट’ का ‘देवस्थान’ या ‘रॉयल ब्राह्मण कार्यालय’ थाईलैंड में हिंदू धर्म का आधिकारिक केंद्र है। फ्रा महाराजागुरु विधि थाई ब्राह्मण समुदाय के मुखिया हैं। यह मंदिर राजपरिवार के ब्राह्मणों का केन्द्र है, जो तमिलनाडु के रामेश्वरम के पुजारियों के एक प्राचीन वंश के वंशज हैं। यह ब्राह्मण थाईलैंड की राजशाही के लिए हर साल कई महत्वपूर्ण शाही और धार्मिक समारोहों का आयोजन करते हैं।
उनके द्वारा एक त्रियमपवाई समारोह आयोजित किया जाता है, जो एक तमिल शैव अनुष्ठान है। थाईलैंड में दो थाई ब्राह्मण समुदाय हैं, इसमें ‘ब्रह्म लुआंग’ शाही ब्राह्मण हैं और ‘ब्रह्म चाओबाण’ लोक ब्राह्मण हैं। यहाँ बौद्ध धर्म के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं की पूजा आज भी प्रचलित है। जयशंकर ने बुधवार को ट्वीट किया, “थाईलैंड के साथ हमारी वर्तमान साझेदारी इतिहास और संस्कृति से गहरा जुड़ाव रखती है।”
पवित्र ‘एमराल्ड बुद्ध मंदिर’ का भी किया दौरा
जयशंकर बुधवार को थाईलैंड के सबसे पवित्र बौद्ध मंदिर माने जाने वाले ‘एमराल्ड बुद्ध मंदिर’ भी गए थे और उन्होंने वहां उन्होंने रामायण पर आधारित शानदार भित्ति चित्र देखे थे। उन्होंने कहा, ‘‘थाईलैंड के साथ हमारी समकालीन साझेदारी इतिहास और संस्कृति पर काफी हद तक आधारित है।’’ बाद में, जयशंकर ने अपने समकक्ष थाईलैंड के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डॉन प्रमुदविनई के साथ संयुक्त रूप से बैंकॉक में भारतीय दूतावास निवास परिसर का उद्घाटन किया।
इससे पहले भी विदेशमंत्री का दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के प्रति गहरा जुड़ाव रहा है जिसकी अभिव्यक्ति समय समय पर होती रही है। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कम्बोडिया, वियतनाम से मलेशिया, इंडोनेशिया की गत दो हजार सालों से एक साझी एतिहासिक संस्कृति रही है। प्राचीन खमेर, चम्पा, श्रीविजय, मजापहित आदि हिन्दू और बौद्ध साम्राज्यों ने पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में भव्य मंदिर बनवाए थे और इस कालखण्ड में हिन्दू बौद्ध संस्कृति का एक बहुत सुंदर रूप पूरे क्षेत्र में विकसित व पल्लवित हुआ था।
कंबोडिया के 12वीं सदी के ता प्रोहम मंदिर का भी किया था दौरा
इसी महीने के पहले सप्ताह में अपनी कम्बोडिया यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कंबोडिया के सिएम रीप में स्थित 12 वीं शताब्दी के ‘ता प्रोहम मंदिर’ का दौरा किया था। यह मंदिर मूलतः 12वीं-13वीं शताब्दी में ख्मेर राजा जयवर्मन सप्तम द्वारा एक मठ व संयुक्त विश्वविद्यालय के रूप में बनवाया गया था जो हिन्दू देवता ब्रह्मा जी को समर्पित था। ख्मेर साम्राज्य के पतन के बाद यह मन्दिर सदियों तक उपेक्षित रहा जिस कारण यह काफी जीर्ण शीर्ण हो चुका था।
इस मंदिर के संरक्षण और पुनरुद्धार हेतु भारत के ‘आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया’ व कम्बोडियाई संस्था ‘अप्सरा’ के संयुक्त रूप से कार्यरत हैं और मंदिर क्षेत्र के ज्यादातर हिस्से का पुनरुद्धार कर चुके हैं, जिसमें बहुत सा भाग तो पुनः एकदम शुरुआत से बनाया गया है। विदेशमंत्री जयशंकर ने अपनी इस यात्रा के दौरान इन सभी कार्यों का अवलोकन कर प्रगति का जायज़ा लिया, और जरूरी दिशानिर्देश दिए।
सांस्कृतिक विरासत बहाली के लिए जयशंकर ने किए बड़े प्रयास
विदेश मंत्रालय ने 2020 में एक नए विभाग – ‘डेवलपमेंट पार्टनरशिप एडमिनिस्ट्रेशन’ (DPA IV) का गठन किया जो दुनिया भर में भारत सरकार द्वारा सांस्कृतिक विरासत बहाली परियोजनाओं के नोडल बिंदु के रूप में उभरा है। यह विभाग श्रीलंका से म्यांमार और वियतनाम से लेकर भूटान तक के देशों में सांस्कृतिक विरासत की बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है व अन्य देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और विरासत संबंधों को पुनर्जीवित करना भी इसका लक्ष्य है।
म्यांमार, लाओस, कम्बोडिया आदि में जयशंकर की देखरेख में हो रहा मंदिरों का पुनरुद्धार
दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र में फ़िलहाल, म्यांमार, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम पर ध्यान केंद्रित किया गया है। म्यांमार के बागान में भूकंप से क्षतिग्रस्त ‘पगोडा’ के संरक्षण का कार्य चल रहा है। लाओस में, ‘वट फु शिव मंदिर’ का जीर्णोद्धार दो चरणों में किया जा रहा है। ‘वट फु मंदिर’ भगवान शिव को समर्पित मंदिर है जो प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर से भी पहले 5वीं और 6ठी शताब्दी में निर्मित किया गया था। इस मंदिर के पीछे के झरने का पानी बहुत पवित्र माना जाता है। इस परियोजना का दूसरा चरण नवंबर, 2018 में शुरू हुआ और 2028 तक जारी रहेगा।
कंबोडिया में, भारत ने खमेर साम्राज्य के दौरान निर्मित “प्रेह विहार” के प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का जिम्मा लिया है। वहीं वियतनाम में, भारत “माई सन ग्रुप ऑफ़ टेंपल” को पुनर्स्थापित कर रहा है, जिसे दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख हिंदू मंदिर स्मारकों में से एक माना जाता है। यह मंदिर 9वीं शताब्दी में राजा इंद्रवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बनाया गया था।
2 वर्ष पहले यहाँ जीर्णोद्धार कार्य के दौरान, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को अखण्ड बलुआ पत्थर का बना शिव लिंग जमीन की खुदाई के दौरान मिला था। इसकी जानकारी स्वयं विदेशमंत्री जयशंकर ने ट्वीट कर दी थी। उन्होंने इस खोज को “एक सभ्यतागत जुड़ाव की पुष्टि” और “भारत की विकास साझेदारी का एक महान सांस्कृतिक उदाहरण” बताया था।
भारत सरकार का विदेश मंत्रालय श्रीलंका, भूटान और नेपाल में भी मंदिरों और मठों को पुनर्स्थापित कर रहा है। श्रीलंका में, भारत ने मन्नार में थिरुकीतेश्वरम मंदिर का जीर्णोद्धार किया है। भूटान में ‘रिगसम गोएनपा लखांग’ की बहाली, ‘लिंग्ज़ी द्ज़ोंग’ संरक्षण परियोजना, ‘सरपांग ज़ोंग’ का निर्माण और ‘वांगडीफोड्रांग ज़ोंग’ पुनर्निर्माण जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रगति पर हैं।
नेपाल के ललितपुर जिले के नौ ऐतिहासिक स्थलों का नवीनीकरण किया जा रहा है। मुस्तांग जिले में चूनुप और ‘श्रीपाल एवं नामग्याल मठ’, काठमांडू का हरिहर भवन, नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय, काठमांडू का बाल्मीकि परिसर और पशुपतिनाथ मन्दिर के पूर्व और पश्चिम भागमती घाटों से जुड़ी परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर में मलेशिया, मंगोलिया, बहरीन, इज़राइल, तुर्केस्तान, फ्रांस, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, अफ्रीका और अन्य सीएमएलवी देश – कंबोडिया, म्यांमार, लाओस और वियतनाम में अब तक सांस्कृतिक और विरासत बहाली आदि की 49 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया है।