वर्तमान में 1 डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य 82 के आस-पास है। मीडिया में हम देख रहे हैं कि रुपए की घटती-बढ़ती क़ीमत अक्सर ही चर्चा का विषय होती है।
अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत की अर्थव्यवस्था के विषय में बोलते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डॉलर और रुपए की विनिमय दर पर बोलते हुए कहा, “रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है।”
वित्त मंत्री के इस वक्तव्य पर देशभर से प्रतिक्रिया आई। विपक्षी दलों का कहना है कि वित्त मंत्री और सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में यह कमी आई है और वित्त मंत्री अपनी नाकामी छुपाने के लिए इस प्रकार की बाते कह रहीं हैं।
वहीं, कई अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने वित्त मंत्री के इस बयान को सही भी ठहराया है। बयान के समर्थन में उन्होंने आँकड़े भी प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की वर्तमान स्थिति और विनिमय दरों की बात भी हुई।
क्या है वस्तुस्थिति? क्यों बढ़ रहा है डॉलर का दाम?
मोटे तौर पर कहा जाए तो डॉलर की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत तय करती है। वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों में अमेरिका के केंद्रीय बैंक, यानि फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है। इस बढ़ोतरी के पीछे बढ़ती महंगाई एक कारण है।
ब्याज दरों के बढ़ने का असर यह हुआ कि अमेरिकी या विदेशी निवेशक पूरी दुनिया के अलग-अलग देशों से अपना निवेश निकाल कर डॉलर में अमेरिका ला रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार से अपना पैसा निकालने वाले ये निवेशक अमेरिका में बढ़े ब्याज दर के कारण अपने निवेश को सुरक्षित मान कर चल रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग सभी निवेश और व्यापार डॉलर में ही होते हैं। इसलिए इसकी निकासी से अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की कमी हो गई है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। रूस से ऊर्जा सप्लाई पर लगाए गए प्रतिबन्ध ने यूरोपीय देशों में भी मँहगाई की दर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी कर दी है।
चूंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक बड़ा हिस्सा ऊर्जा के व्यापार है और यह डॉलर में ही होता है इसलिए हर देश को प्रत्येक बैरल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर देने पड़ रहे हैं जिससे डॉलर की मांग में और बढ़ोतरी हुई है। हालाँकि, भारत रूस के साथ रुपए-रूबल में व्यापार का समझौता कर के इसके प्रभावों को कम करने की कोशिश कर रहा है।
सामान्य शब्दों में अगर कहें तो विश्व के बाज़ार में डॉलर की मांग बढ़ने और इसकी आपूर्ति घटने के चलते इसकी कीमतें बढ़ रहीं हैं।
क्या सिर्फ़ रुपया ही डॉलर के मुक़ाबले गिरा है?
चूंकि वित्त मंत्री ने कहा कि रुपया गिर नहीं रहा बल्कि डॉलर बढ़ रहा है, इससे यह प्रश्न उभरता है कि यदि डॉलर बढ़ रहा है तो क्या यह सिर्फ रूपए के मुकाबले बढ़ रहा है या अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले भी बढ़ रहा है? इस दौरान क्या अन्य मुद्राओं का भी अवमूल्यन हुआ है?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए अन्य प्रमुख मुद्राओं के पिछले एक साल के प्रदर्शन को भी देखना होगा।

यूरो का भाव
विश्व की दूसरी सबसे प्रमुख मुद्रा यूरो की बात करें तो अक्टूबर, 2021 में 1 यूरो के बदले 1.16 डॉलर प्राप्त किए जा सकते थे। इस हिसाब से यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले ज्यादा थी। यदि वर्तमान यानी अक्टूबर 2022 में देखें तो 1 यूरो देने पर पूरा 1 डॉलर भी नहीं मिल सकता, इसकी वर्तमान कीमत 0.99 डॉलर हो चुकी है। ऐसे में एक साल में यूरो, डॉलर के मुकाबले 15% तक नीचे आ गया है।
पाउंड का भाव
अब एक और मुद्रा ब्रिटिश पाउंड की बात करें अक्टूबर, 2021 में 1 ब्रिटिश पाउंड 1.37 डॉलर के बराबर था। आज यह 1.13 के स्तर पर है। सामान्य भाषा में, जहाँ अक्टूबर 2021 में आपको एक ब्रिटिश पाउंड देने पर 1.37 डॉलर मिलते थे, वहीं अब यानी अक्टूबर 2022 में आपको एक ब्रिटिश पाउंड देने पर 1.13 डॉलर ही मिलेंगें। इस प्रकार देखा जाए तो एक वर्ष के दौरान ब्रिटिश पाउंड में लगभग 17% की गिरावट दर्ज की गई है।
येन का भाव
जापान की मुद्रा येन की भी बात कर लेते हैं, एक साल पहले अक्टूबर 2021 में 1 डॉलर के बदले 114 येन प्राप्त किए जा सकते थे, एक साल बाद यानी अक्टूबर 2022 में 1 डॉलर के मुकाबले कहीं अधिक 148 येन प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तरह एक साल में डॉलर के मुकाबले येन लगभग 23% नीचे चला गया है।
युआन का भाव
आखिर में चीन की मुद्रा युआन को भी देख लेते हैं, अक्टूबर 2021 में 1 डॉलर के बदले में लगभग 6.4 युआन प्राप्त किए जा सकते थे, वर्तमान में 1 डॉलर के मुकाबले 7.2 उससे अधिक चीनी युआन प्राप्त किए जा सकते हैं। इस प्रकार एक साल में डॉलर के मुकाबले युआन का लगभग 12% अवमूल्यन हुआ है।
इस तरह से देख जाए तो विश्व की सभी प्रमुख मुद्राओं का पिछले एक साल में अलग-अलग घटनाक्रमों के चलते अवमूल्यन हुआ है। सारी प्रमुख मुद्राएँ एक साल के दौरान 10% से ज्यादा घटी हैं। डॉलर की यह बढ़ोत्तरी मूल रूप से ऊर्जा की बढ़ती कीमतों एवं डॉलर की बढती मांग के चलते ही हुई है।
डॉलर के मुकाबले घटा रुपया, बाकी मुद्राओं की तुलना में मजबूती
ऊपर दिए गए आँकड़ों से स्पष्ट है कि डॉलर पिछले एक साल में सभी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। अब समझने वाली बात यह है कि क्या रुपया डॉलर के मुकाबले ही कमजोर हुआ है या अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में भी रूपए का अवमूल्यन हुआ है।

पिछले वर्ष अक्टूबर माह में एक डॉलर की तुलना में रुपया 75 पर था, वर्तमान में यह 82 रुपए के आसपास है। ऐसे में इसमें साल भर में 8.5% की गिरावट हुई है, यदि वैश्विक मुद्राओं से तुलना करें तो यह काफी कम है।
वहीं, पिछले वर्ष अक्टूबर माह में रुपया 1 यूरो के मुकाबले 88 रूपए पर था, जो अब और मजबूत हो कर 82 रुपए पर आ गया है। इसका अर्थ है कि पहले जहाँ एक यूरो खरीदने के लिए एक वर्ष पहले 88 रुपए खर्च करने पड़ते वहीं अब यह मात्र 82 रुपए में मिल सकता है। यूरो का एक साल में रुपए की तुलना में लगभग 7% अवमूल्यन हुआ है।
वहीं, ब्रिटिश पाउंड की तुलना में रुपया पिछले साल के अक्टूबर माह से अब तक लगभग 10 रुपए तक मजबूत हुआ है। 1 ब्रिटिश पाउंड अक्टूबर 2021 में 103 रुपए के स्तर पर था, वर्तमान में यह 93 रुपए पर है। इस प्रकार देखा जाए तो रुपए के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड का एक वर्ष में 10% से अधिक अवमूल्यन हुआ है। रुपया चीन की मुद्रा युआन की तुलना में भी 2.3% अधिक मजबूत हुआ है।
साल दर साल रूपए की कीमत में बदलाव
कॉन्ग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों द्वारा लगातार वित्त मंत्री के बयान पर हमले किए जा रहे हैं। हालांकि, सरकार का पक्ष रखने वाले यह कह रहे हैं कि कॉन्ग्रेस के 10 साल के शासनकाल में 1 डॉलर 2004-14 के बीच 40-43 से 60-65 पर पहुँच गया था, यह 50% से भी अधिक की बढ़ोत्तरी है।
वर्ष 2014 के बाद से रुपया 63 से 82 पर पहुँचा है। यदि आँकड़ों में देखें तो लगभग 30% की गिरावट हुई है जबकि, विश्व में ऊर्जा की बढती कीमतें, मंदी, डॉलर की मांग बढ़ने जैसी समस्याएं सामने आई हैं।
रूपए की वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध में यह एक तर्क भी दिया जा रहा है कि कॉन्ग्रेस के शासनकाल में अमेरिका के फेडरल बैंक ने अपनी ब्याज दरों को काफी कम या शून्य के स्तर पर रखा हुआ था, और विदेशी निवेशक पूरी ताकत से बढ़ते हुए बाजारों में पैसा झोंक रहे थे। अब स्थिति उलटी है तब भी रुपया स्थिर रहना सरकार की आर्थिक नीतियों का सफल परिणाम है।