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आर्थिकी

US डॉलर के सामने भारतीय रुपए में भारी गिरावट, कैसे आएगी स्थिरता

The Pamphlet StaffBy The Pamphlet StaffSeptember 27, 2022No Comments6 Mins Read
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US डॉलर के सामने भारतीय रुपए में भारी गिरावट, कैसे आएगी स्थिरता
US डॉलर के सामने भारतीय रुपए में भारी गिरावट, कैसे आएगी स्थिरता
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US डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में लगातार गिरावट देखी जा रही है। सोमवार यानी 26 सिंतबर 2022 को रुपया 55 पैसे की गिरावट के साथ डॉलर के मुकाबले ₹81.54 पर पहुँच गया है। रुपए में आ रही लगातार गिरावट का  कारण यूएस फेडरल बैंक (यूएस फेड) के द्वारा ब्याद दरों में वृद्धि करना बताया जा रहा है। 

हालाँकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि वर्तमान परिवेश में अन्य मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपया अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है। वित्त मंत्री का कहना है कि रुपया डॉलर के सामने मजबूती से  खड़ा है और इसकी स्थिरता के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और वित्त मंत्रालय जरूर कदम उठा रहे हैं। 

अगर आँकड़ों पर नजर डाले तों अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत की स्थिति अन्य देशों से बेहतर नजर आती हैं।  जहाँ भारत की मुद्रा में यूएस डॉलर  के मुकाबले 6.5% की गिरावट आई है। वहीं, चीन की मुद्रा युआन 8.7% तक गिरी है। यूरो में 12.1% की भारी गिरावट आई है तो साउथ कोरिया की मुद्रा वॉन 14.5% गिर गई। 

यूएस डॉलर के मुकाबले यूके की मुद्रा ब्रिटिश पाउंड 15% नीचे पहुँच गई है। दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा रैंड में भी 8.6% की गिरावट आई है तो जापान की मुद्रा येन 19.8% की भारीवट गिरावट देख चुका है। वहीं भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की मुद्रा का डॉलर के मुकाबले 23.7% की भारी गिरावट से हाल खस्ता हो गया है। 

फेडरल रिजर्व बैंक क्या है

फेडरल रिजर्व बैंक या फेडरल रिजर्व सिस्टम अमेरिका का केंद्रीय बैंक है। जैसे भारतीय रिजर्व बैंक भारत में अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना और सभी बैंकों का संचालनकर्ता है उसी प्रकार अमेरिका में फेड यानी फेडरल रिजर्व बैंक यह  सब कार्य देखता है। 

यूएस फेड द्वारा बुधवार यानी 21 सितंबर, 2022 को ब्याज दरों में 0.75% की वृद्धि की गई थी। इस वर्ष अमेरिका के केंद्रीय बैंक द्वारा तीसरी बार मँहगाई को काबू करने  के लिए ब्याज दर में बढ़ोतरी की गई है।

इसका भारतीय रुपए और शेयर बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जहाँ भारतीय रुपए में लगातार गिरावट देखी जा रही है तो विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में गिरावट करने  से बच रहे हैं। 

आरबीआई के अनुसार, भारतीय रुपए में कमजोरी यूएस डॉलर इंडेक्स के कारण है, घरेलू अर्थव्यवस्था का इसपर प्रभाव ना के बराबर है। यूएस डॉलर इंडेक्स दो दशक के सबसे उच्च स्तर पर पहुँच गया है। 

क्या रुपया फिर मजबूत होगा?

फिलहाल डॉलर के मुकाबले रुपया अपने निचले स्तर पर पहुँच गया है और संभावनाएं है कि अभी यह ओर गिर सकता है। हालाँकि, क्या यह भविष्य में वापस अपनी मजबूती प्राप्त करेगा? इस सवाल पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। 

हालाँकि, ऐसा सोचना कोई बेतुकी बात नहीं है क्योंकि वर्ष 2000 के दौरान हम इसका उदाहरण देख चुके हैं। जब 1 यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया ₹50 पर पहुँच गया था। वर्ष 2000 के दौरान जो आर्थिक स्थितियां थी उसके अनुसार रुपया अपने निचले स्तर पर था। 

हालाँकि, नीतियों में बदलाव, आयात-निर्यात पर ध्यान देकर भारतीय रुपया 2007 में फिर मजबूत हुआ और 1 यूएस डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत ₹40 पर पहुँच गई थी। 

बहरहाल, यह तों संभव है कि भारतीय रुपया एक बार फिर स्थिरता के स्तर को छू सकता है। कैपिटल इकोनोमिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रुपया 2030 तक एक बार फिर मजबूती प्राप्त कर सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, अगले दशक में रुपया मजबूती की राह पकड़ सकता है। उत्पादन में बढ़ोतरी, व्यापार क्षेत्र में विकास और मँहगाई को काबू कर के भारत 2030 तक डॉलर के मुकाबले ₹70 रुपए के स्तर को छू सकता है। 

अगले कुछ सालों में आनुपातिक उत्पादक वृद्धि और विशेषरूप से व्यापार की शर्तों में सुधार से अमेरिका के डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए को स्थिरता मिलेगी। 

आरबीआई द्वारा उठाए कदम

रुपए को अगर मजबूती प्रदान करनी है तो विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित रखना होगा। साथ ही, भारत अगर व्यापार में डॉलर के स्थान पर रुपए को बढ़ावा दे तो ना सिर्फ भारतीय मुद्रा की साख बढ़ेगी बल्कि इसका अंतरराष्ट्रीयकरण भी होगा। 

आरबीआई ने भी हाल ही में भारतीय व्यापारियों और आयात-निर्यात में रुपए को बढ़ावा देने की अपील की थी। अगर, भारत व्यापारिक समझौतों में रुपए में इनवॉइस (Invoice) ले लेता है तो डॉलर के मुकाबले इसको मजबूती मिलेगी। 

वैश्विक व्यापार में डॉलर का योगदान 80% का है। डॉलर में भुगतान करने से भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचता है। इसका कारण है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा स्थिर नहीं रहती है और व्यापार समझौतों के दौरान इससे परेशानी सामने आती है। 

साथ ही, विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखने के लिए भारत को स्वयं की मुद्रा खर्च करनी पड़ती है, जिससे देश पर ही दबाव बढ़ता है। ऐसे में अगर भारत अपने सहयोगी देशों के साथ रुपए में व्यापार करने लगे तो ना सिर्फ डी-डॉलरराइजेशन में मदद मिलेगी बल्कि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया मजबूत भी होगा। 

इसी कोशिश के तहत भारत ने बांग्लादेश के साथ व्यापार में रुपए को बढ़ावा दे रहा है। भारत ने ढ़ाका से कहा कि वो रुपए में लें और टका से भुगतान कर दें। ऐसा ही कदम भारत सउदी अरब के साथ भी उठा रहा है। 

हाल ही में सऊदी के दौरे पर गए  व्यापारिक और औद्योगिक मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने अपने समकक्ष से दोनों देशों के बीच रुपए-रियाल में व्यापारिक समझौतों को बढ़ावा देने पर बात की थी। इसके साथ ही, पीयूष गोयल ने सऊदी में भारतीय रुपे कार्ड और भारतीय पैमेंट सर्विस यूपीआई सेवाओं को शुरू करने पर भी चर्चा की थी। 

भारत  की राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए देश के लिए डी-डॉलरराइजेशन करना आसान होगा। हालाँकि, आसान से ज्यादा यह अनिवार्य है। भारत BRICS समूह का सदस्य है, जिसमें शामिल देश विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। 

BRICS में भारत, रूस, ब्राजील, चाइना और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।  डी-डॉलरराइजेशन के मुद्दे पर चाइना पहले ही आगे आ चुका है और इसे बढ़ावा भी दे रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह मुश्किल नहीं होगा। 

भारत रूस से  किए जा रहे तेल आयात का इनवॉइस रुपए में ले सकता है। फिलहाल, रूस सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) से प्रतिबंधित कर दिया गया है, ऐसे में उसे डॉलर में भुगतान नहीं किया जा सकता, जिसका सीधा फायदा भारत को मिल सकता है।

हालाँकि, भारत अपनी जरूरत का 16.5% ही रूस से आयात करता है और बाकी  के लिए स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (CIS) और मिडिल इस्टर्न देशों पर निर्भर रहता है। 

बहरहाल, मोदी सरकार आने के बाद मिडिल इस्टर्न देशों से संबंध सुधारने के दिशा में कई प्रयास किए गए हैं. यही कारण है कि भारतीय मुद्रा की स्थिरता और मजबूती के लिए वित्त मंत्रालय और विदेश मंत्रालय साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

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