वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में जानकारी दी थी कि सरकार रुपए को अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करेंसी के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में काम कर रही है। लोकसभा में एक लिखित जवाब में वित्त मंत्री ने बताया कि भारत निर्यात में बढ़ोतरी और वैश्विक व्यापार में रुपए का विकास करने के लिए वैश्विक व्यापार समुदाय में निर्यात/आयात में इनवॉइस, भुगतान और निपटान की व्यवस्था कर रहा है।
भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार का बड़ा हिस्सा डॉलर में होता है, जिसे वर्ल्ड करेंसी के रूप में माना जाता है। डॉलर में व्यापार करने के फायदे कम और नुकसान ज्यादा है। इससे देश को आर्थिक मोर्चे पर कई तरह के नुकसान उठाने पड़ते हैं। हालाँकि, नुकसान से पहले हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करेंसी के रूप में बढ़ावा देने की जरूरत क्या है?
क्या जरूरत है ?
किसी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय रिजर्व की पहचान तब मिलती है जब वैश्विक व्यापार में उसका व्यापक योगदान हो और सरकारें एवं बैंक इसे अपने विदेशी मुद्रा भंडार में जगह देते हैं। भारत हाल ही में विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना है। रुपए को मान्यता मिलने पर देश की मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा और डॉलर पर निर्भरता घटेगी।
- भारत अपना संपूर्ण वैश्विक व्यापार रुपए में करे और इसे ग्लोबल करेंसी के रूप में मान्यता मिले, यह पीएम नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सबसे बड़ा हिस्सा होगा।
- भारत वैश्विक व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भर है लेकिन, बदलती राजनीतिक परिस्थितियां इसे मुश्किल बना देती हैं। किसी देश में व्यापारिक प्रतिबंध जैसी स्थिति बनने का असर उन सभी देशों को उठाना पड़ता है जो विदेशी मुद्रा में व्यापार करने के लिए निर्भर है।
- रुपए में व्यापार नहीं करने से निर्यातक और आयातक दोनों देशों को अतिरिक्त मुद्रा पर भी खर्च करना पड़ता है, जिससे आर्थिक दबाव बढ़ जाता है, यह हम एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि…
भारत जब किसी देश के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करता है तो उसका भुगतान डॉलर में करेगा और इसके लिए रुपए को डॉलर में बदलने के लिए कन्वर्जन फीस भी देनी पड़ेगी। वहीं अगला देश जिसने डॉलर में भुगतान स्वीकार किया है उसे भी कन्वर्जन फीस लगाकर डॉलर को अपनी मुद्रा में बदलना होगा।
एक दूसरा पहलु इस पर यह भी है कि विदेश मुद्रा में अस्थिरता बनी रहती है, जिससे व्यापार में परेशानियां बढ़ जाती हैं। देश की मुद्रा में भुगतान करने से स्थिरता भी बनेगी और रुपए की साख में भी बढ़ोत्तरी होगी।
- जब तक भारत वैश्विक व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भर रहेगा तब तक देश के विदेशी मुद्रा भंड़ार को नियंत्रित रखने की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है और इसको स्थिर बनाए रखने के लिए आरबीआई को अतिरिक्त रुपया खर्च करना पड़ता है।
विश्व में बन रहे नए समीकरणों का भी हमें इसमें ध्यान देना होगा। जब किसी देश को प्रतिबंधित कर दिया जाता है या जिसके पास विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है वो कैसे विश्व व्यापार में भागीदारी निभाएगा।
वैश्विक व्यापार SWIFT पेमेंट सिस्टम के जरिए किया जाता है। रूस और युक्रेन के बीच हुए विवाद के बाद जब रूस पर प्रतिबंद लगा तो SWIFT के जरिए पेमेंट नहीं हो सकता था। ऐसी परिस्थितियों में रुपए को ग्लोबल करेंसी के रूप में बढ़ावा देना जरूरी हो जाता है।
रुपए का ग्लोबलाइजेशन इसलिए भी जरूरी है कि भारत व्यापार घाटे की समस्या से जूझता है। ऐसे में रुपए की कीमत गिरने से रोकने के लिए भी आरबीआई डॉलर का इस्तेमाल करता है, जो कि आरबीआई पर अतिरिक्त भार डाल देता है।
फायदे
आर्थिक विकास से जुड़े निर्णयों का असर अक्सर धीरे-धीरे ही दिखाई देता है। रुपए को अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करेंसी का फैसला भी कुछ ऐसा ही है लेकिन, इस फैसले का असर दिखेगा जब भारत की डॉलर पर निर्भरता घटेगी।
विश्व में बने समीकरणों में भारत अपनी जगह बना सकता है जैसे रूस पर प्रतिबंध है तो वो रुपए में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा भंडार ही नहीं है तो डॉलर में व्यापार नहीं हो सकता। ऐसी जगह भी रुपए को बढ़ावा मिलेगा।
विदेशी मुद्रा भंडार
भारत अगर रुपए में वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देगा तो विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखने की स्थिति से बचा जा सकता है। विदेशी मुद्रा में लचीलापन बना रहता है, ऐसे में इसे नियंत्रित कर सकें तो रुपए पर दबाव घट जाएगा।
- भारत अगर वैश्विक व्यापार में रुपए का उपयोग करेगा तो जो विदेशी मुद्रा भंड़ार देश में उपलब्ध है उसका उपयोग किसी ओर विकास कार्य में किया जा सकता है।
- अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो, भारत रुपए में भुगतान करता है तो करीब $30-36 बिलियन की बचत होगी।
हाल ही में, आरबीआई ने रुपए को स्थिर रखने के लिए करीब $40 बिलियन खर्च किए हैं और ऐसे ही आगे भी करना पड़ सकता है। इसका खामियाजा देश को अपने बुनियादी विकास के कार्य में लगने वाले बजट में कटौती के जरिए भरना पड़ता है।
बहरहाल, ग्लोबल रिजर्व करेंसी बनने के लिए भारत को वित्तीय रणनीति और नवाचारों की जरूरत पड़ेगी। भारत में वो क्षमता है जो उसे वैश्विक स्तर पर वित्तीय स्वतंत्रता के स्तर तक ले जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक देश को विकसित देश के दायरे में लाने का विजन रखा है और विकसित देश की मुद्रा का अंतरराष्ट्रीकरण हो वैश्विक व्यापार में स्वीकार्य हो यह आवश्यक है।