भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद रो खन्ना (Ro Khanna) अपने एक ट्वीट के चलते फँस गये हैं। अपने भारतीय दोस्त राहुल गांधी के बचाव की ख़ातिर खन्ना अपने स्वतंत्रता सेनानी दादा को ले आए और इस चक्कर में अब उनके दादा यानी, स्वर्गीय अमरनाथ विद्यालंकर (Amarnath Vidyalankar) की क्रांति पर भी सवाल उठ रहे हैं। यानी अब राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिनकी वजह से उनके पुरखों को गालियाँ पड़ती हों।
सबसे पहला सवाल है कि आख़िर ये रो खन्ना है कौन और ये अचानक से चर्चा में कहाँ से आ गए? रो खन्ना भारतीय मूल के अमेरिकी राजनेता हैं और वहाँ की डेमोक्रेट पार्टी से संबंध रखते हैं। वर्तमान में रो खन्ना अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के सदस्य हैं।
जो लोग इस रो खन्ना के नाम को हल्के में ले रहे हैं उन्हें यह जान लेना चाहिये कि कुछ महीने पहले तक यह उम्मीद लगाई जा रही थीं कि यही ‘रो खन्ना शायद 2024 में अमेरिका के पहले भारतीय मूल के राष्ट्रपति चुने जाएँगे’। ऐसा मीडिया के हवाले से कुछ माह पूर्व दावे किए जा रहे थे। हालाँकि जबसे The Pamphlet (द पैम्फ़लेट) की जद में वो आए हैं उसके बाद से उनका ‘केतु वक्र’ होता चला गया।
देश में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य करार दिये गए, तब रो खन्ना ने ट्वीट करके यह घोषणा की कि भारतीय अदालत का यह फ़ैसला गांधीवादी उसूलों के साथ विश्वासघात है।
राहुल गांधी के बचाव में उतरे अमेरिकी सांसद ने अपने स्वतंत्रता सेनानी दादा की कराई फजीहत
इसके साथ-साथ रो खन्ना ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहें तो अभी भी इस फ़ैसले को बदल सकते हैं और उनका दोस्त राहुल गांधी वापस सांसद बन सकता है। हालांकि उन्होंने ऐसा किस देश का संविधान देखकर कहा ये अभी तक भी वो स्पष्ट नहीं कर पाए हैं।
इसी प्रकरण के बीच रो खन्ना ने एक अमेरिकी समाचार चैनल से साक्षात्कार में कहा है कि वे कभी भी अपने देश यानी अमेरिका के एटॉर्नी जनरल के फ़ैसले के बीच में नहीं आएँगे और उन्हें नहीं बताएँगे कि उन्हें क्या करना चाहिए क्योंकि एक राजनेता के नाते ऐसा करना ठीक नहीं होगा। यानी रो खन्ना एक क़िस्म के ‘मल्टीपल पर्सनालिटी सिंड्रोम’ से भी पीड़ित हैं। वो भारत के संदर्भ में कुछ और कहते हैं और अमेरिका के संदर्भ में कुछ और!
राहुल गांधी की सदस्यता चले जाने से रो खन्ना इतने अधिक भावुक हो पड़े कि वो अपने दादा को भी बीच में लाते हुए बोले कि; उनके दादा ने जिस भारत के लिए क़ुर्बानी दी थी वो ये भारत नहीं है। बस यह कह कर खन्ना साहब ने गलती कर दी।
जब तथ्यों को पीछे फेंककर साफ झूठ बोला जाता है तब तो पैम्फ़लेट की जिमेमदारी बनती थी कि क्यों ना रो खन्ना के दावों की पड़ताल करते हुए तथ्यों पर बात की जाए।
हमने यानी ‘द पैम्फ़लेट’ ने रो खन्ना के इस ट्वीट के जवाब में एक ट्विटर थ्रेड लिखते हुए कहा कि क्या रो खन्ना ये भूल गए कि उनके दादा यानी स्वर्गीय अमरनाथ विद्यालंकर इंदिरा गांधी के वफादार थे और आपातकाल के दौरान वो इंदिरा गांधी की सरकार का हिस्सा थे? इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल में किन किन उसूलों की किस किस तरह से हत्या की गई क्या रो खन्ना को वो सब भी याद है?
हमारा सवाल रो खन्ना से सिर्फ़ इतना था कि आख़िर उनके दादा ने तब आपातकाल के दौरान भारतीय जनता पर हो रहे क्रूर अत्याचारों का विरोध क्यों नहीं किया? इस ट्वीट के जवाब में रो खन्ना ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए लिखा कि ‘आप मुझ पर हमला करें लेकिन मेरे दादाजी को बदनाम मत करें’।
रो खन्ना ने सारे सवाल नज़रअन्दाज़ करते हुए कहा कि ‘मेरे दादाजी ने लाला लाजपत राय के लिए काम किया’। जाहिर सी बात है। रो खन्ना यह कैसे कह दें कि उनके दादाजी ने इंदिरा गाँधी के लिए काम किया है? ऐसे में अवसरवाद के सिद्धांत के तहत उन्होंने अपने दादाजी को लाला लाजपत राय के साथ जोड़ दिया।
खन्ना ने यह भी कहा कि; “दादाजी को बदनाम होते देख उन्हें दुख होता है। दादाजी ने इंदिरा गांधी को आपातकाल का विरोध करते हुए संसद छोड़ने के बाद दो पत्र लिखे थे। उन्हें 31-32 और 41-45 में जेल हुई थी, मुझ पर हमला करें लेकिन भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर अटैक मत करें। तथ्य मायने रखते हैं”।
रो खन्ना ऐसा प्रवचन लिखते हुए ये भूल गये कि पैम्फ़लेट तथ्यों के आधार पर ही बात कर रहा था कि आख़िर उनके दादा ने इंदिरा गांधी का विरोध नहीं किया।
यहाँ तक कि जब हमने अमरनाथ विद्यालंकार से जुड़े कुछ तथ्य लोकसभा की वेबसाइट से निकाले तो पता चला कि आपातकाल के विरोध में खन्ना के दादाजी के इस्तीफा देने का कोई प्रमाण मौजूद ही नहीं है। यही नहीं, जब एक और लिस्ट निकाली गई तो उसमें और ख़तरनाक जानकारी सामने आई, रो खन्ना के दादा का नाम उन लोगों में शामिल था, जिन्होंने इंदिरा गांधी के आपातकाल के फ़ैसले के समर्थन में वोट किया था। जितने तथ्य ‘द पम्फलेट’ सामने लाता रहा, रो खन्ना उतना ही घिरते गए।
लोकसभा की वेबसाइट से पता चलता है कि अमरनाथ विद्यालंकर संसद में तब चंडीगढ़ के प्रतिनिधि थे। इसके अलावा रो खन्ना के पास अगर कुछ दिखाने के लिए है तो वे अपने कागज अवश्य दिखाते।
रो खन्ना ने इधर-उधर की बातें कर विक्टिम कार्ड खेलने के लिए अपने दादा का नाम तो ले लिया लेकिन अब पैम्फ़लेट तो अभी भी कह रहा है कि अगर उनके पास अपने दादा के आपातकाल के समर्थन वाले साक्ष्यों के अलावा भी कुछ है तो वो उसे सामने अवश्य रखें और पैम्फ़लेट को ग़लत साबित कर दें लेकिन रो खन्ना अब एकदम मौन हो चुके हैं।
जाते-जाते खन्ना अपने ही बयान से उलट एक और बयान दे दिया कि उनके दादा ने इस्तीफ़ा तो नहीं दिया लेकिन वो दोबारा चुनाव नहीं लड़े।
पैम्फ़लेट ने खन्ना को उनका पहला ट्वीट याद दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके दादा ने आपातकाल के विरोध में संसद छोड़ दी थी। आख़िर में हमने उनके विरोधाभासी बयानों के लिए माफ़ी माँगने को कहा लेकिन रो खन्ना अब शायद अपने मित्र राहुल गांधी की तरह ढीठ हो चुके हैं। वे चाहते हैं कि मीडिया उनकी ही झूठ की पिच पर खेलती रहे।
रो खन्ना पर अब मौन है मुख्यधारा की मीडिया
यहाँ पर मीडिया के रोल पर भी ध्यान देना आवश्यक है। जब रो खन्ना ने कहा कि मेरे दादा ने इस दिन के लिये बलिदान नहीं दिया, ये गांधी के ख़िलाफ़ है, मेरे दादा को बुरा भला मत कहो, तब बीबीसी से ले कर तमाम समाचार पत्र उन्हें प्रकाशित कर रहे थे, लेकिन जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि रो खन्ना तो झूठ बोल रहे हैं, आपको कहीं भी उनका फैक्ट चेक करने वाले लोग नज़र नहीं आ रहे होंगे।