सिविलाइजेशन स्टोरीज़ की श्रृंखला में हम यहूदियों के विद्रोह से लेकर, अमेरिका, फ़्रांस, रूस की क्रान्ति जैसे विषयों पर बात कर चुके हैं। अब हम आते हैं चीन की क्रान्ति पर। इन क्रांतियों को दुनिया ने कैसे देखा और इनके परिणाम क्या रहे, हम इनकी समीक्षा करते रहे हैं। ऐसा ही एक पड़ोसी राष्ट्र चीन भी है जिसने सदियों तक उत्पीड़न और शर्मिंदगी झेली और आखिरकार वे अपनी सभ्यता और जमीन के लिए उठ खड़े हुए।
हमने रिवॉल्यूशन स्टोरीज की शृंखला के पिछले वीडियो यानी, रुस की क्रांति में इस बारे में बात की थी कि किस तरह से जब तक कोई साम्राज्य मज़बूत नहीं होता तब तक उसे शत्रुओं से हमेशा ख़तरा रहता है। अस्थिरता का फायदा उठाने के लिए यहाँ पर बाह्य ताकतें भी सक्रिय रहती हैं, और एक कमजोर समाज उनके लिए आपदा में अवसर बन जाता है। यहाँ पर जनता के लिए भी ये समझना आवश्यक होता है कि एक शक्तिशाली नेतृत्व ही उन्हें सुरक्षित रह सकता है और उनकी सभ्यता को भी। क्योंकि अगर आप रुस को ही देखें तो वहाँ पर शासन के कमजोर होते ही राजशाही का पतन हो गया, उसे कैसे कमजोर किया गया, ये जानने के लिए आप हमारा पिछला वीडियो देखिए।
रुस की क्रांति: झूठ और प्रॉपगेंडा से साम्यवादी ताकतों का पहला प्रयोग
उत्पीड़न करने वाले मुग़ल और अंग्रेजों का मोह नहीं छोड़ पाए आजाद भारत के इतिहासकार
इतिहास को जानना, उसे ईमानदारी से समझना और याद रखना इसीलिए आवश्यक भी होता है। जैसे हम भारतीयों ने किया कि मुग़लों को यहाँ की वास्तुकला का शिल्पी लिख दिया। ब्रिटिशर्स, अंग्रेजों को कहा कि जब वो यहाँ आए तब हमारा भारत समृद्ध हुआ, तभी हमने रेल और पटरियाँ बिछाना सीखा। यानी जो कुकर्म इन लोगों ने किए उन्हें व्हाइटवॉश करने का काम हमारे देश के नेतृत्व ने आज़ादी के समय से ही शुरू कर दिया था। यानी जो उत्पीड़न और शर्मिंदगी का दौर था, उसे हमारे नेतृत्व ने आज़ादी के बाद से ही भारत की उन्नति का दौर साबित करने के प्रयास किए।
पिछले साल पहली बार हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात का जिक्र करते हुए खुलकर कहा कि भारत ने उत्पीड़न की दो सदियां झेली हैं। यानी Century of Humiliation, उन्होंने कहा कि अंग्रेज यहाँ से 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटकर ले गए और ये भी कहा कि भारत ने ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के दौरान लगातार दो सदियों तक ‘अपमान’ झेला।
एक ऐसा भी देश था जिसने इस अपमान के इतिहास की ईमानदारी से समीक्षा की। इसका नाम है चीन। मैंने आपको अफ़ीम युद्ध वाले वीडियो में बताया था कि किस तरह से चीन को ब्रिटेन से लेकर फ़्रांस और अमेरिका ने पहले व्यापार के नाम पर खोखला किया, चीन की सभ्यता को ही नशे में झोंक दिया, और बाद में उन पर अत्याचार और शासन किया। चीन ने इसे अपमान का दौर नाम दिया। आंतरिक कलह और अशांति से चीन की सभ्यता ही ख़त्म हो गई। फिर वहाँ शुरू हुआ अपमान का दौर। फिर चीन की आँख खुली और उसने समझा कि उनके साथ क्या हो रहा है। उसने उसी तरह से अपनी शासन प्रणाली को ठीक किया, और आज वो पूरे विश्व में बड़ी बड़ी ताक़तों से भी अकेले निपटने का साहस रखता है। पश्चिमी देश आज चीन को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं।
अफीम युद्ध और अपमान की शताब्दी: विक्टोरिया के ड्रग डीलर्स ने कैसे समाप्त की चीन की सभ्यता
सबसे पहले ब्रिटेन ने चीन को अफ़ीम युद्ध में झोंका, किंग राजवंश पर हमला बोला, उसे कमजोर किया और इसी सब अस्थिरता का फ़ायदा कुछ पढ़े लिखे लोगों ने उठाया। वो रुस की क्रांति को क़रीब से देख और समझ रहे थे। वो रुस से इस कम्युनिस्ट विचारधारा को लेकर चीन गए और इसे बेहद सावधानी से वहाँ के शहरों से लेकर गाँव तक पहुँचाया। इस विचारधारा का इस्तेमाल किया गया चीन में रेवोलुशन के लिये।
माओत्से तुंग
अब इसके बाद चीन के रेवोलुशन में एक नाम आता है माओ जेडोंग या माओत्से तुंग का। माओत्से तुंग ने चीन में कम्युनिस्ट क्रांति की बुनियाद रखी, उसने कहा कि वो ग़रीबों के जीवन में क्रांति ला देगा। ये वो वक्त था जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत क्रूरता की दास्ताँ लिखने में व्यस्त थी। बंगाल को टुकड़ो में बांट दिया गया था और देश आंदोलन की आग में जल रहा था। ठीक उसी समय पास का मुल्क चीन जल रहा था। यहाँ पर हज़ारों साल से सत्ता में बैठी QING DYNASTY के ख़िलाफ लोग एकजुट हो रहे थे। तब तक चीन के बड़े हिस्से पर जापान और यूरोप क़ब्ज़ा कर चुके थे।
चीन का राजा इतना कमज़ोर हो चुका था कि चीन में अराजकता फैली हुई थी। लड़ने में असमर्थ QING डायनेस्टी अपने आखिरी दिनों को देख रहा था लेकिन लोग अब किसी भी सूरत में कमज़ोर शासक को स्वीकार करने को राजी नहीं थे। इसका फ़ायदा कुछ क्रांतिकारियों ने उठाया। आंदोलन भयानक था और इसकी अगुवाई कर रहे थे दो गुट। नेशनलिस्ट और कम्युनिस्ट, ये दोनों 600 मिलियन लोगों के हितैषी होने का दावा कर रहे थे। ये गुट पश्चिमी विचारों की पैरवी करता था जबकि कम्यूनिस्ट धड़ा इसका विरोध करता था, लेकिन बावजूद इसके दोनों का लक्ष्य एक ही था और वो था राजा को गद्दी से उखाड़ फेंकना।
चीन की 1911 की क्रांति का नतीजा ये हुआ कि चीन के अन्तिम राजवंश की समाप्ति हुई और चीनी गणतंत्र बना। यह एक बहुत बड़ी घटना थी। मंचू लोगों का शासन चीन पर पिछले तीन सौ वर्षों से चला आ रहा था जिसका आखिरकार अंत हो गया। बीसवीं शताब्दी में चीन एशिया का प्रथम देश था, जहाँ गणतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई। चीन के क्रांतिकारियों ने फ्रांसवालों की ही देखादेखी की और राजतंत्र का हमेशा के लिए अंत कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय जगत में चीन सदैव अपने को विश्व सभ्यता का केन्द्र मानता था तथा चीनी राज्य को ईश्वरीय साम्राज्य समझा जाता था। किन्तु दो अफीम युद्धों में पराजय के बाद चीन का सारा आत्मगौरव और सभ्यता का अभिमान ढेर हो गया। जब यूरोपीय देशों ने चीन का दरवाजा जबरदस्ती खोल दिया, तब चीन की लूट-खसोट और उस पर आर्थिक प्रभाव प्रभावित करने में यूरोपीय राष्ट्रों में होड़ मच गई और उस महान प्राचीन साम्राज्य का भयानक आर्थिक शोषण शुरू हो गया। यूरोपीय राज्यों ने चीन के विभिन्न भागों को अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट लिया और इन विदेशियों ने चीन में अनेक विशेषाधिकार प्राप्त कर लिये। जिसका नतीजा ये हुआ कि अब चीन की प्रभुसत्ता और स्वतंत्रता नाममात्र की रह गई थी।
चीन के कुछ देशभक्त, राष्ट्रवादी विदेशियों का विरोध करने और मंचू शासन की समाप्ति के लिये अपने गुट बनाने शुरू कर दिए। ताईपिंग विद्रोह इसी का परिणाम था। ताईपिंग विद्रोह को बुरी तरह से दबा दिया गया था। साल 1900 में चीन में बॉक्सर विद्रोह को भी दबा दिया गया, तब चीनीयों ने समझ लिया कि विदेशी शोषण से छुटकारा पाने के लिये अब सिर्फ़ एक बड़ी क्रांति ही आख़िरी रास्ता है।
रिपब्लिक ऑफ चाइना
1912 में QING DYNASTY तबाह हो गई और इसके साथ ही उदय हुआ रिपब्लिक ऑफ चाइना का। चीन से राजशाही ख़त्म हो चुकी थी मगर 19 साल का माओ जेडोंग अभी भी अपनी विचारधारा के लिए जगह तलाश रहा था। और उसकी ये तलाश ख़त्म हुई 1921 में। माओ जेडोंग मार्क्स से प्रभावित भी था। मार्क्स को पढ़ने के बाद उसे ये भरोसा हो गया था कि अगर चीन की तरक्की का कोई रास्ता है तो वो है… कम्युनिज्म!
माओ अब सक्रीय हो चुका था, इसी दौरान चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। माओ ने अपने इलाके में इसकी ब्रांच शुरू की और वो इसका बड़ा चेहरा बनता चला गया। लेनिन की सलाह पर उसने चीन की नेशनलिस्ट पार्टी से हाथ मिला लिया, ये गठबंधन 5 साल तक चला और 1927 आते आते इस गठबंधन ने सिविल वॉर का रूप ले लिया।
सिविल वॉर से जूझ रही चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का भार माओ के कंधे पर आया लेकिन उसकी हरकतों की वजह से उसे कम्युनिस्टों की सेंट्रल कमिटि ने पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद आप सभी जानते ही हैं कि कैसे उसने जिंगांग पहाड़ों में पांच गांव को एक करके सरकार बना ली, वो ज़मींदारों की ज़मीन छीनने की वकालत करने लगा। उसने अपनी सेना में अँधाधुंध भर्तियां खोल दीं, जिसमें डकैतों तक को जगह दी, सेना में सबसे ज्यादा किसान भरे गए। वो उनसे जबरन पूछता कि बताओ किसी ने तुम पर अत्याचार किया है? और फिर उन जमीदारों को पिटवाता, भले ही वो खुद कभी किसी हिंसा में शामिल नहीं हुआ, ये काम उसने अपने गुर्गों से करवाया। जमींदारों की ये दुर्दशा किसानों को पसंद आने लगी और वो माओ का प्रचार किसी देवता की तरह होने लगा, विरोधियों को उसने नेशनलिस्ट जासूस घोषित कर उनकी हत्या कर डाली।
इसके बाद माओ के अत्याचार का एक पूरा दौर चीन में आया मगर चीन ने कभी भी अपने ऊपर रूसी साम्यवाद को हावी नहीं होने दिया। उन्होंने इसे अपनी ही संस्कृति में ढाला और उसी के अनुसार चाहे तो कह लीजिए कि अत्याचार किए। तिब्बत पर अतिक्रमण किया, शर्मिंदगी के दौर में चीन को हाँगकाँग भी ब्रिटेन को सौंपना पड़ा लेकिन चीन ने एक क़सम खाई कि वो अपने पारंपरिक मूल्यों से अब समझौता नहीं करेगा, उसने रूस के कम्युनिस्टोँ से क्रांति का तरीक़ा सीखा मगर उसे चीन के अनुसार ही ढाला, भारत की तरह नहीं जहां पर लोग आज भी लेनिन का नाम लिए बिना ख़ुद को क्रांतिकारी साबित नहीं कर पाते। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में आज भी कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक छात्र अपने नाम लेनिन और स्टालिन बताते हैं, राजनेता तो अपना नाम मार्लेना रखते फिर रहे हैं।
भारत में आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने उत्पीड़न के इतिहास को व्हाइटवॉश करना चाहते हैं, ये कहते हुए कि अंग्रेजों ने हमें सभ्यता सिखाई, जबकि उनका सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मक़सद था, भारत और चीन से रेशम, सिल्क चीनी, चाय आदि का व्यापार, और बदले में ग़ुलाम बनाना, लूट मचाना और साम्राज्य बढ़ाना। उन्होंने इसके लिए पूरे एशिया को लूटा, चीन के साथ भी वही किया जो उसने भारत के साथ किया था। लेकिन चीन ने उस से सीख ली, ईमानदारी से उसकी समीक्षा की और आज वो एक बड़ी ताक़त बनकर सामने आया है ।