12 जून को केंद्र सरकार ने मई माह के लिए देश में महंगाई के आंकड़े जारी किए। मई माह में देश में खुदरा महंगाई की दर 4.25% रही जो अप्रैल माह के 4.70% से 45 बेसिस पॉइंट कम है। मई माह में देश के शहरी इलाकों में महंगाई दर 4.27% जबकि ग्रामीण इलाकों में 4.17% रही है। वहीं खाद्य महंगाई दर 2.91% पर आ गई है।
अप्रैल माह में महंगाई दर जहाँ मई की तुलना में नीचे आई वहीं पिछले वर्ष के मई माह से इसकी तुलना करें तो यह कहीं कम है। पिछले वर्ष मई माह में खुदरा महंगाई की दर 7.04% थी, जबकि इसी दौरान खाद्य महंगाई दर 7.97% थी।
नए आंकड़ों के अनुसार महंगाई का स्तर, भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्धारित स्तर 4% के बिलकुल समीप आ गया है। इस कमी के पीछे पिछले दो महीनों से बाजार में रबी की नई फसल का आना, कच्चे तेल के दामों का स्थिर रहना और रिजर्व बैंक का मुद्रा की तरलता में कसावट को बनाए रखना बड़े कारण हैं।
मई माह के महंगाई के आंकड़े देश की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति बताने के साथ ही पिछले लगभग एक वर्ष से केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा देश में आर्थिक गतिविधियों को बिना प्रभावित किए बाजार को संतुलित करने और महंगाई को रोकने के प्रयासों का भी परिणाम बता रहे हैं।
मई माह में महंगाई के आंकड़ों के अंदर क्या है?
महंगाई के आंकड़ों को नजदीक से देखा जाए तो यह वही कहानी बताते हैं जैसा पिछले लगभग 2 माह से हमें देखने को मिला है। खाने पीने की वस्तुओं की महंगाई में कमी आई है। बाजार में गेंहू की नई खेप आने और फसल सामान्य रहने के कारण अनाजों की महंगाई का स्तर, जो अप्रैल माह में 13.67% था, मई माह में 12.55% हो गया है।
पाम तेल के दामों में गिरावट और स्थानीय तिलहन फसलों की उपज अच्छी होने के कारण खाने के तेल की कीमतों में मंदी और बढ़ कर अप्रैल माह में -12.33% से बढ़ कर -16.01% हो गई है। सब्जियों की कीमतों में भी मंदी लगातार बनी हुई है, सब्जियों में मंदी -6.50% से बढ़ कर -8.18% पहुँच गई है। इसके अतिरिक्त फल, मसाले, चीनी और इससे जुड़े उत्पादों समेत अधिकाँश उत्पादों की कीमत में गिरावट आई है।
खाने-पीने के अतिरिक्त, कपड़े और जूते चप्पल जैसी चीजों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। स्वास्थ्य एवं शिक्षा से संबंधित सेवाओं की महंगाई में भी कमी देखी गई है।
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कैसे लगातार घट रही है महंगाई?
महंगाई कम होने के पीछे केंद्र सरकार के प्रयास, रिजर्व बैंक का समस्याओं के अनुकूल कदम उठाना और वैश्विक हालातों में हलके सुधार हैं। मोदी सरकार महंगाई से निपटने के लिए हर प्रयास कर रही है।
महंगाई से निपटने में सबसे कारगर माने जाने वाले कदम, बाजार में मुद्रा की तरलता को कम करने का उपाय पिछले वर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध प्रारम्भ होने के तुरंत बाद ही उठा लिया गया था। पिछले वर्ष से लेकर फरवरी माह तक रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 250 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी की है। एक वर्ष के भीतर ब्याज दरों को 4% से बढ़ाकर 6.5% कर दिया गया था। इससे बाजार में कर्ज महंगा हुआ और मुद्रा की तरलता घटी है। इससे महंगाई को कम करने में मदद मिली है।
रिज़र्व बैंक के इतर केंद्र सरकार अपने तरीको से महंगाई को मात दे रही है। इसके अंतर्गत सरकार ने गेंहू की कीमतें बढ़ने पर अपने स्टॉक के गेंहू को खुले बाजार में नीलामी के लिए उतार दिया था जिससे उपलब्धता बढ़ाई जा सके और कीमतें कम हों। इसके अतिरिक्त, सरकार ने गरीब कल्याण योजना को भी लगातार जारी रखा है जिससे देश के गरीबो पर खाद्य पदार्थों में महंगाई का असर न पड़े और बाजार में भी मांग संतुलित रहे।
केंद्र सरकार ने इसके अतिरिक्त देश में खाद्य सुरक्षा को सबसे आगे रखते हुए गेंहू के आयात पर भी रोक लगा रखी है और अब इसके भंडारण की भी सीमाएं तय कर दी है। गेंहू भंडारण से जुड़े कदमों को 15 वर्षों के पश्चात उठाया गया है। इसके साथ ही गेंहू खरीद को इस बार युद्ध स्तर पर किया गया है और इसी का परिणाम है कि इस बार देश में गेंहू खरीद पिछले वर्ष से अधिक रही है।
पिछले वर्ष महंगाई में बढ़ोतरी करने वाले सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर रहे कच्चे तेल की कीमतों पर भी केंद्र सरकार ने कमोबेश नियंत्रण पा लिया है। पिछले वर्ष रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमतें 115 डॉलर/बैरल पर पहुँच गई थीं, इस दौरान भारत सरकार ने रूस से किफायती दरों पर कच्चे तेल की ख़रीद चालू की और भारत के उपभोक्ताओं को महंगाई से बड़े स्तर पर राहत दी। एक अनुमान के अनुसार, केंद्र सरकार ने एक वर्ष के भीतर रूस से खरीदे तेल के कारण 9 बिलियन डॉलर की बचत की है।
ईंधनों में महंगाई के कारण अन्य उत्पादों में महंगाई आती है, ऐसे में कच्चे तेल का आयत सस्ता करने से भी इसमें सहायता मिली है। इस तरह से केंद्र सरकार मांग और आपूर्ति दोनों के ही पक्ष से लगातार देश में महंगाई को नियंत्रित करने में जुटी हुई है।
कहाँ हैं अभी चिंता के बादल?
मई माह के आंकड़े सामने आने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि देश में महंगाई लगातार कम हो रही है लेकिन अभी भी कई वस्तुएं ऐसी हैं जिनकी कीमतों में तेजी महंगाई को नीचे लाने में समस्या पैदा कर रही हैं। इसमें सबसे प्रमुख अनाजों की बात की जाए तो इनकी महंगाई लगातार घट रही है लेकिन अभी भी यह लगभग 12.6% पर है सामान्य से अधिक है।
अनाजों के अतिरिक्त, दूध और डेयरी उत्पाद तथा मसालों की कीमतों में महंगाई कम नहीं हो रही है। दूध की कीमतों में पिछले एक वर्ष में काफी बढ़त आई है। दूध की कीमतों में मई माह में 8.91% महंगाई रही जो कि अप्रैल में 8.85% थी। वहीं मसालों की कीमतों में भी महंगाई 16% के ऊपर बनी हुई है।
इसके अतिरिक्त, इस वर्ष के मानसून के विषय में की जाने वाले भविष्यवाणियों ने भी चिंताओं में बढ़ोतरी की है। मानसून देर से आया है। देर से आने के अतिरिक्त इस वर्ष के वर्षा स्तर में भी कमी रहने की आशंका है। इसके लिए अल निनो को जिम्मेदार बताया जा रहा है। हालांकि, भारतीय मौसम विभाग ने जहा कहा है कि सभी अल नीनो नुकसान पहुंचाने वाले हों यह कोई जरूरी नहीं है।
आगे क्या रहेगा लक्ष्य?
रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान महंगाई औसतन 6.7% रही है जो कि सबसे उच्च सहिष्णुता स्तर 6% से भी ऊपर है। रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 5.1% का महंगाई का अनुमान लगाया है।
सरकार का इस वित्त वर्ष में लक्ष्य रहेगा कि जिन वस्तुओं की कीमतों में कमी नहीं आ रही है, उन पर काम करके महंगाई को नियंत्रण में रखा जाए। इसी को लेकर अप्रैल और जून माह में हुई मौद्रिक नीति की बैठकों में ब्याज दरों को आगे और ना बढाने का निर्णय रिजर्व बैंक ने लिया है। रिजर्व बैंक अभी भी पूर्व में की गई बढ़ोतरी का असर जांच रहा है और आगे आवश्यकतानुसार कदम उठाने की बात कर रहा है।
रिजर्व बैंक में कहीं ना कहीं इस बात की चिंता भी है कि यदि ब्याज दरों को और बढ़ाया गया तो कर्ज के महंगे होने के कारण अर्थव्यवस्था के विकास पर असर पड़ सकता है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष में महंगाई और अर्थव्यवस्था में बढ़त दोनों को संतुलित करके चलना चाहते हैं।
केंद्र सरकार का चालू वित्त वर्ष के लिए लक्ष्य है कि वह महंगाई दरों को नियंत्रण में रखे और जनता को अधिकाधिक राहत दे। रिजर्व बैंक भी इसी सोच को आगे लेकर कर्जों को भी आसान बनाए रखना चाहता है।
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