निरंतर बदलते वैश्विक समीकरण (Global Equation) के बीच, भारत एक अदृश्य युद्ध में है। ऐसे में शांति की बात सोचना भी एक भ्रम मात्र होगा। एक तरफ वर्दी में तैनात सैनिक, धरती (Army), जल (Navy) और नभ (Air Force), तीनों मोर्चों पर हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं।
इसके इतर, एक अत्यधिक प्रशिक्षित और प्रेरित सैनिकों का ऐसा समूह है, जो “यत्र तत्र सर्वत्र” मौजूद हैं। ये गुमनाम सैनिक, एक कोड नेम (Code Name) के सहारे, पूरी दुनिया में गश्त लगाते हैं, खुफिया जानकारियाँ इकट्ठा करते हैं, स्लीपर सेल्स (Sleeper Cells) और डबल एजेंट (Double Agents) को सक्रिय कर, हनी ट्रैप (Honey Trap) सेट कर, मुखबिरों को रिश्वत देकर हमारी मातृभूमि भारत की रक्षा करते हैं।
ऐसे गुमनाम नायकों की एकमात्र पहचान यह है कि वे भारत की वैश्विक खुफिया एजेंसी ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) के जासूस हैं। सैद्धांतिक रूप से, ‘रॉ’ भारत की वैश्विक ‘खुफिया एजेंसी’ है जिसे देश के खिलाफ साजिशों को उजागर करने और व्यक्तिगत जोखिम पर गद्दारों को खत्म करने के काम में लगाया गया है। व्यावहारिक रूप से इसके परिचालन और प्रेषण की सीमाएँ असीमित हैं। ‘रॉ’ को जानबूझ कर एक ‘विंग’ के रूप स्थापित किया गया है, जो उसे भारतीय संसद के प्रति जवाबदेही से मुक्त रखता है। साथ हीं ‘रॉ’ को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 से भी अलग रखा गया है, ताकि खुफिया जानकारियों की किसी भी तरह के समझौते की गुंजाइश ना रहे।
दुनिया के किसी भी देश में गुमनाम रहकर काम करना, गुप्तचरों से संपर्क साधना और विदेशों में छिपे देश के गद्दारों का पीछा कर उनका अंत करना, ‘रॉ’ की इन खूबियों और रोमांचित कर देने वाले काम को सुनकर तो बड़ा आनंद आता है, लेकिन यह उतना ही जोखिम भरा भी है।
आइए इस भारत की इस खुफिया इकाई को इसके द्वारा अंजाम दिए गए ‘गुप्त संचालन’ के माध्यम से जानते हैं।
रॉ ऑपरेशन: एक महाकाव्य सी कहानी
ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्ध
स्माइलिंग बुद्ध, मई 1974 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किए गए प्रथम परमाणु परिक्षण ‘पोखरण-1’ का कोड नेम था। यह इतिहास में पहला मौका था जब एक वैश्विक एजेंसी ‘रॉ’ को भारत की सीमाओं के अंदर किसी परियोजना में शामिल किया गया था। ‘रॉ’ को इस पूरे परिक्षण को अमेरिकी खुफिया एजेंसी ‘सी आई ए’ की नजरों से बचा कर करवाने का कार्य सौंपा गया।
भारत ने 18 मई, 1974, को राजस्थान स्थित ‘पोखरण’ में 15 किलोटन के एक प्लूटोनियम डिवाइस का सफल परीक्षण किया और परमाणु संपन्न राष्ट्रों के समूह में शामिल हो गया।
इस उपलब्धि के साथ ही भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पांच स्थायी सदस्यों को छोड़कर, परमाणु परीक्षण करने वाला पहला राष्ट्र बन गया। इस अभियान की सटीकता और सफलता ने विश्व की सारी खुफिया एजेंसियों को आश्चर्यचकित कर दिया, जो की ‘रॉ’ की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
दिलचस्प बात यह है की परीक्षण के बाद, डॉ. राजा रामन्ना (भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक) ने प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को फोन पर कहा, “बुद्ध मुस्कुरा चुके हैं (The Buddha has smiled).”
ऑपरेशन कहुटा
रॉ को पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले के एक छोटे से गाँव कहुटा में ‘खान रिसर्च लेबोरेटरीज’ के अंतर्गत चल रहे परमाणु कार्यक्रमों के बारे में पता चला। इसके साथ हीं यह स्थान पाकिस्तान की लम्बी दूरी की मिसाइल के विकास का भी केंद्र था।
सबसे रोमांचक बात यह थी की कहुटा स्थित कुछ ‘नाई की दुकानों’ से एकत्रित किए गए बालों के नमूनों का विश्लेषण करके, ‘रॉ’ ने यूरेनियम के इस्तेमाल का पता लगाया था।
‘रॉ’ ने पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठानों में घुसपैठ के लिए ‘ऑपरेशन कहुटा शुरू किया। यह खुफिया मोर्चे पर भारत की बहुत बड़ी सफलता हो सकती थी, इससे पाकिस्तान के पूरे परमाणु कार्यक्रम को बिगाड़ा जा सकता था, लेकिन तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के अत्यधिक उत्साह ने सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया।
ऐसा बताया जाता है कि एक टेलीफोन वार्ता के दौरान मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उल हक को यह कह दिया कि भारत को पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम की सारी जानकारी है।
रिपोर्टों के अनुसार, इस ‘टिप-ऑफ’ पर कार्रवाई करते हुए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने कहुटा में मौजूद ‘रॉ’ के सभी अधिकारियों और स्रोतों को ट्रैक कर उन्हें खत्म कर दिया, और इसके बाद से पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रमों के बारे में भारत अंधेरे में है।
खालिस्तान आंदोलन पर अंकुश
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ द्वारा समर्थित ‘खालिस्तानी उग्रवाद’ 1980 के दशक के मध्य में अपने चरम पर पहुंच गया। ‘रॉ’ ने पंजाब में आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए दो ‘खुफिया कार्यबल’ गठित किए।
एक दल खालिस्तानी आतंकवादियों को पंजाब की सड़कों से खदेड़ने में कामयाब रहा तो वहीं दूसरे ने पाकिस्तान के कई प्रमुख शहरों को अस्थिर कर दिया, जिससे खौफ खाकर आईएसआई को पीछे हटना पड़ा, क्योंकि विदेशी भूमि पर अस्थिरता पैदा करके उनकी चुनी हुई सरकार अथवा राजशाही को गिराने में ‘रॉ’ को महारथ हासिल है।
ऑपरेशन मेघदूत
भारतीय सशस्त्र बलों ने कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण पाने के लिए ‘ऑपरेशन मेघदूत’ शुरू किया था। ऑपरेशन मेघदूत इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे राष्ट्र के सुरक्षा की दृष्टि से ‘अपनी आंखों और कानों को’ सदैव खुला रखना, आपके देश को बचा सकता है।
13 अप्रैल 1984 की सुबह ‘दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान’ पर दो ऑपरेशन एक साथ चल रहे थे। जहाँ भारत ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के जरिए सियाचिन ग्लेशियर को अपने नियंत्रण में लेने के लिए आगे बढ़ रहा था तो वहीं पाकिस्तान ने इसी उद्देश्य से ‘ऑपरेशन अबाबील’ चला रखा था।
भारतीय सेना के कदम सियाचिन पर पहले पड़े जिसके परिणामस्वरूप भारतीय बलों ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल किया। इसमें ‘रॉ’ की भूमिका इसलिए अहम है क्योंकि लंदन स्थित एक परिधान कंपनी से इन्हें सूचना मिली थी कि जैसे आर्कटिक गियरों की आपूर्ति उन्होंने उत्तरी लद्दाख क्षेत्र के लिए भारतीय सैनिकों के लिए की थी, वैसे ही पाकिस्तान ने भी मंगवाए हैं। इस टिप का संज्ञान लेकर, भारतीय सेना चौकन्नी हुई और पाकिस्तान की बड़ी साजिश के बीच सियाचीन बचाने में कामयाब रही।
ऑपरेशन चाणक्य
कश्मीर हिंसा के चरम दौर में, ‘रॉ’ को आईएसआई द्वारा समर्थित कश्मीरी अलगाववादी समूहों में घुसपैठ करने और कश्मीर घाटी में शांति बहाल करने का काम सौंपा गया था।
‘रॉ’ ने घुसपैठ को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और कश्मीरी अलगाववादी समूहों के वित्तपोषण और प्रशिक्षण में आईएसआई की भागीदारी के सबूत जुटाए। ‘ऑपरेशन चाणक्य’ के जरिए ही कश्मीर में भारत-समर्थक समूहों का निर्माण हुआ जिसमें, इखवान-उल-मुस्लिमीन, मुस्लिम मुजाहिदीन आदि शामिल हैं। इन समूहों ने बाद में कश्मीर घाटी में आतंकवाद को निष्क्रिय करने में सरकार और सेना की काफी मदद की।
ऑपरेशन कैक्टस
भारत ने मालदीव में वर्ष 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति के अनुरोध पर तख्तापलट के प्रयासों को विफल करने के लिए ‘ऑपरेशन कैक्टस’ की शुरुवात की। इस ऑपरेशन को ‘रॉ’ की सहायता से, भारतीय सशस्त्र बलों ने शुरू किया।
लगभग 200 तमिल विद्रोहियों ने मालदीव में सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आक्रमण किया था। इसमें राष्ट्रपति को सफलतापूर्वक निकलने और शान्ति-बहाल करने के लिए तीनों भारतीय सेनाओं और ‘रॉ’ ने एक सटीक ऑपरेशन किया, और महज कुछ हीं घंटों के भीतर हिन्द महासागर स्थित इस द्वीप-राष्ट्र में सरकार के शासन को बहाल करने में मदद की।
ऑपरेशन लीच
‘रॉ’ के सबसे अनसुने लेकिन सबसे विवादस्पद खुफिया ऑपरेशन में से एक था, ऑपरेशन लीच। इस ऑपरेशन को वर्ष 1998 में ‘भारत-बर्मी’ सीमा पर अंजाम दिया गया था।
म्यांमार हमेशा से भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए एक कठिन क्षेत्र रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपने पड़ोसी देश म्यांमार में एक स्थिर सरकार बनाना चाहता था। इस मकसद को पूरा करने के लिए ‘रॉ’ ने काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) जैसे लोकतंत्र-समर्थक दलों की स्थापना की थी। लेकिन समय के साथ केआईए अति-महत्वकांछी हो गया और ‘रॉ’ के साथ उसके संबंध खट्टे हो गए थे।
‘रॉ’ ने म्यांमार में अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए ‘ऑपरेशन लीच’ शुरू किया। इस मिशन में विद्रोही नेताओं की हत्या करना प्रमुख लक्ष्य था। इसमें सबसे बड़ी सफलता तब हाथ लगी जब वर्ष 1998 में, म्यांमार के छह शीर्ष विद्रोही नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई और 34 अराकानियन छापामारों को गिरफ्तार किया गया।
विदेशी जमीन पर ‘इंटेलिजेंस ब्यूरो’ की मदद
‘रॉ’ विदेशी सरजमीं भारत की खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर ‘रॉ’ स्नैचिंग ऑपरेशन भी समय-समय पर चलाता रहा है। इसमें ‘रॉ’ अधिकारी, किसी संदिग्ध को पकड़कर उन्हें अज्ञात स्थानों पर पूछताछ के लिए ले जाते हैं। इसका सबसे अच्छा चित्रण वर्ष 2015 में आई अक्षय कुमार की फिल्म ‘बेबी’ में देखने को मिला था। ऐसे स्नैचिंग ऑपरेशन, एक लंबी प्रत्यर्पण प्रक्रिया से बचने के लिए किए जाते हैं।
एक दशक से अधिक समय में, ‘रॉ’ ने 400 से अधिक ऐसे ऑपरेशन को अंजाम दिए हैं। गिरफ्तार किए गए कुछ प्रसिद्ध आतंकवादियों में यासीन भटकल, आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक नेता, लश्कर आतंकवादी तारिक महमूद और अब्दुल करीम टुंडा, खालिस्तान कमांडो फोर्स के भूपिंदर सिंह, 2008 के मुंबई हमलों के सरगना शेख अब्दुल ख्वाजा, आदि शामिल हैं।
सिक्किम का भारत में विलय
सिक्किम, भारत के पश्चिम बंगाल राज्य और भारत के पड़ोसी तिब्बत, नेपाल और भूटान से घिरा हुआ, पूर्वी हिमालय में बसा एक राजशाही था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, सिक्किम, भारत के संरक्षन में आ गया था। सिक्किम ने अपनी रक्षा, विदेश मामलों, कूटनीति और संचार का नियंत्रिन भारत के हवाले कर दिया था।
वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने ‘रॉ’ को वहाँ भारत समर्थक लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने के लिए अधिकृत किया। 1975 में सिक्किम में ‘राजशाही’ के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन और दंगे के बाद, एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें शामिल 97.5% मतदाताओं ने भारतीय संघ में विलय के पक्ष में मतदान किया। और इस तरह, ‘रॉ’ के ऑपरेशन शुरू करने के तीन वर्ष से भी कम समय में, 26 अप्रैल, 1975 को सिक्किम भारतीय संघ का 22वां राज्य बन गया।
1971 का युद्ध और बांग्लादेश का जन्म
‘रॉ’ ने बांग्लादेश के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘रॉ’ को बांग्लादेश के मुक्ति बाहिनी (बांग्लादेशी गुरिल्ला संगठन) को प्रशिक्षण, हथियार आपूर्ति और खुफिया जानकारी देने का श्रेय दिया जाता है।
पूर्वी-पाकिस्तान (अभी के बांग्लादेश) में पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद से लगभग 1 करोड़ शरणार्थी भागकर भारत आ गए। इससे भारत के लिए भी अनेक संकट खड़े हो गए। ‘रॉ’ की अर्द्धसैनिक शाखा, ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ को चटगाँव पहाड़ी क्षेत्रों में चल रहे सैन्य अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाने के आदेश मिले। यह ऑपरेशन भी सफल रहा।
‘रॉ’ इसके बाद भी बांग्लादेश में अपने अभियानों में सक्रियता से लगा था, इसी बीच बांग्लादेश के राष्ट्रपति बंगबंधु ‘शेख मुजीबुर रहमान’ की वर्ष 1975 हत्या हो गई। ‘रॉ’ ने दावा किया कि इस हमले की इनपुट मुजीबुर रहमान और उनके लोगों को पहले हीं दे दी गई थी, लेकिन उन्होंने इसको नजरअंदाज कर दिया। बाद में शेख मुजीबुर रहमान के परिवार के 40 अन्य सदस्यों को भी मार दिया गया। लेकिन, ‘रॉ’ की सक्रियता ने ही उस समय जर्मनी में रह रही, शेख मुजीबुर की बेटी ‘शेख हसीना’ (बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री) की हत्या को सफलतापूर्वक विफल कर दिया।
ऑपरेशन श्रीलंका
‘रॉ’ ने श्रीलंका में एक डबल-गेम खेला। जहाँ एक तरफ ‘रॉ’ ने श्रीलंका की सेना को ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (एलटीटीई) को नष्ट करने में मदद की, वहीं दूसरी तरफ श्रीलंका में रह रहे भारतीय जासूसों की राष्ट्रपति राजपक्षे के हिटमैन और टाइगर्स, दोनों से रक्षा भी की।
बाद में, भारत सरकार ने एक सैद्धांतिक निर्णय लेते हुए एलटीटीई पर श्रीलंकाई सेना के आक्रमण का समर्थन किया, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एलटीटीई के आत्मघाती विस्फोटों की श्रृंखला पर बेहद आक्रोश था। 2007 और 2009 के बीच चले अभियान के बाद, जब श्रीलंका ने एलटीटीई पर जीत की घोषणा की, तो यह ‘रॉ’ हीं था जिसने पूर्वी और उत्तरी प्रांतों में बसे एलटीटीई के शिविरों के उपग्रह चित्र और सबूतों को श्रीलंकाई सेना को हस्तांतरित किया था।
ऑपरेशन सटोरी
इस ऑपरेशन के कोई दस्तावेज नहीं हैं और न ही कोई सार्वजनिक फाइलें मौजूद हैं, लेकिन ‘रॉ’ ने श्रीलंका में ‘सुंदरी’ नामक एक नौकरानी की मदद से यह अभियान चलाया था. सुंदरी एक सिंहली-भाषी, तमिल महिला थी, जिन्होंने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के संज्ञान में आने के बाद, श्रीलंका से ‘रॉ’ अधिकारियों और दस्तावेजों को निकालने में मदद की थी।
‘रॉ’ को पुख्ता जानकारी थी कि श्रीलंका में चल रहे गृह युद्ध के दौरान चीन श्रीलंकाई सेना को गुप्त रूप से हथियार और गोला-बारूद प्रदान कर रहा है और वह श्रीलंका में 2 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश करने जा रहा है। अब अगर आज के श्रीलंका के हालात को देखें तो इसे नकारा नहीं जा सकता कि ‘रॉ’ की जनकारी बिलकुल सही थी।
ऑपरेशन हॉर्नेट
‘ऑपरेशन हॉर्नेट’ को ‘रॉ’ के द्वारा दो शहर : पेरिस और लंदन में एक साथ लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य ब्रिटेन में स्थित एक पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल खान को मारने का था। खान, आईएसआई और ब्रिटेन में स्थित कुछ भारतीय-सिख व्यापारियों के साथ मिलकर, 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद, भारत में हमलों की योजना बना रहा था।
इस एक ऑपरेशन में, एक ब्लॉकबस्टर जासूसी फिल्म के हर तत्व मौजूद था। हनी-ट्रैप, लालच, फोन-टैपिंग, गुप्तचरों की भर्ती, निगरानी, आतंकवादी फंडिंग की कमर तोड़ना, और अंत में नॉकआउट। भारतीय रॉ एजेंट ‘संजीव जिंदल’ और विदेशी मुखबिर ‘क्लार्क’ और ‘सोफी’ ने जाल बिछा कर, वर्षों तक खान पर निगरानी रखी और उसके सारे राज जान लेने के बाद, उसे मौत के घाट उतार दिया।
समापन टिप्पणी और संदर्भ
इन सबके अलावा भी ‘रॉ’ ने भारत के हितों की रक्षा के लिए कई अन्य खुफिया अभियानों को अंजाम दिया है। फिर चाहे वह फ़िजी में युद्ध हो, या वाशिंगटन में गद्दारों का शिकार करने के लिए शैडो वॉर, ‘रॉ’ सदैव भारत की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता की रक्षा के लिए, सबकी नज़रों से परे कहीं एक ‘शैडो वॉर’ में लगा हुआ है।
‘रॉ’ द्वारा किए गए ऑपरेशन का विवरण निम्नलिखित पुस्तकों में से देखा जा सकता है
- ‘RAW: A history of India’s covert operations’ by Yatish Yadav
- ‘India’s External Intelligence: Secrets of R&AW’ by Major General VK Singh
- ‘RN Kao: Gentleman Spymaster’ by Nitin A Gokhale
- ‘The War that made RAW’ by Anushka Nandkumar and Sandeep Saket
- ‘Spy Stories – Inside the secret world of the RAW and ISI’ by Adrian Levy and Cathy Scott-Clark
विदेशी खतरों के खिलाफ, रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में ‘रॉ’ प्रधानमंत्री और विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों को खुफिया जानकारी प्रदान करती रहती है। लेकिन इसके कार्य को निरंतर बढ़ाते रहने के लिए आवश्यकता है इसकी तटस्थता, गति और दक्षता बनाए रखने के लिए शून्य राजनीतिक हस्तक्षेप के साथ, एक स्पष्ट दिशा की।