भारत के 74वें गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी राजपथ पर होने वाले कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगें। अल सीसी 24 जनवरी को भारत आ चुके हैं। 25 जनवरी की सुबह भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने उनका औपचारिक स्वागत राष्ट्रपति भवन में किया।
इसी के साथ गणतंत्र दिवस पर होने वाली पारंपरिक परेड में मिस्र की सेना की एक टुकड़ी भी हिस्सा ले रही है। पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण बंदिशों के चलते किसी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष को आमंत्रित नहीं किया जा सका था। राष्ट्रपति अल सीसी इससे पहले भी साल 2015 और 2016 में भारत की यात्रा पर आ चुके हैं।
कौन हैं अब्देल-फ़तह-अल-सीसी?
अब्देल फतह अल सीसी वर्ष 2014 से मिस्र के राष्ट्रपति हैं। मिस्र की राजधानी काहिरा में पले बढ़े अल सीसी राष्ट्रपति बनने से पहले मिस्र के रक्षा मंत्री और सेना के ऊँचे स्तर के अधिकारी भी रह चुके हैं।
अल सीसी ने वर्ष 1977 में मिस्र की सेना ज्वाइन की। इसके बाद से ही लगातार उनका कद बढ़ता रहा। अल सीसी ने मिस्र की सेना कॉलेज के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका की मिलिट्री अकेडमी में भी सैन्य पढ़ाई की है। सीसी वर्ष 2010 में मिस्र की मिलिट्री इंटेलिजेंस के चीफ बने और 2011 में मिस्र की सेना के कमांडर इन चीफ और रक्षा मंत्री बने।
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इसी बीच 2011 में मिस्र में तत्कालीन शासक होस्नी मुबारक के खिलाफ क्रान्ति हो गई। इसके चलते देश में नए सिरे से चुनाव कराए गए। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2014 तक मुहम्मद मोरसी की सरकार चली पर बढ़ते असंतोष के कारण वर्ष 2014 में इस सरकार को मिलिट्री ने हटा दिया और सत्ता अल सीसी के हाथों में आ गई।
तब से ही अल सीसी मिस्र के राष्ट्रपति हैं। गणतंत्र दिवस की परेड में विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रण पर पहली बार मिस्र के राष्ट्राध्यक्ष आ रहे हैं। इससे पहले साल 2020 में ब्राजील के तत्कालीन राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को बुलाया गया था।
लम्बे समय से भारत और मिस्र में रहे हैं रिश्ते
भारत और मिस्र के बीच सम्बन्ध पुराने हैं। मिस्र भी भारत की तरह 20वीं सदी के पूर्वार्ध तक ब्रिटेन के नियन्त्रण में रहा था। मिस्र के पहले करिश्माई शासक गमाल अब्देल नासिर और भारत के पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के बीच काफी अच्छी मित्रता थी। दोनों गुटनिरपेक्ष आन्दोलन(NAM) शुरू करने वाले नेताओं में से प्रमुख थे। भारत मिस्र के प्राकृतिक संसाधनों जैसे की तेल और गैस आदि का भी प्रमुख खरीददार रहा है।
मिस्र के राष्ट्रपति के साथ ही इस बार मिस्र की सेना की एक टुकड़ी भी राजपथ पर होने वाली परेड में हिस्सा लेने वाली है। लगभग 180 सैनिकों की यह टुकड़ी राजपथ पर भारतीय सैन्य बालों की अन्य टुकड़ियों के साथ मार्च करेगी। मिस्र से आने वाली इस टुकड़ी में मिस्र की थल सेना, नौसेना और वायुसेना तथा एयर डिफेन्स के सैनिक हैं जो कि 21 जनवरी को भारत पहुँचकर परेड में शामिल होने के लिए रिहर्सल कर रहे हैं।
मिस्र के राष्ट्रपति को आमंत्रित करने के साथ ही भारत ने ग्लोबल साउथ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। ‘ग्लोबल साउथ’ अर्थात उन देशों का समूह जो अधिकाँश दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है और अभी पूर्णतया विकसित नहीं हो सके हैं। भारत इन देशों के आपसी सहयोग के माध्यम से उन्नति का बड़ा अगुवा है। भारत और मिस्र दोनों ही ग्लोबल साउथ का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए होगा प्रयास
वर्ष 2021-22 के दौरान भारत और मिस्र का व्यापार 7 बिलियन डॉलर के भी ऊपर पहुँच गया था। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कम्पनियों ने मिस्र में बड़े स्तर पर निवेश किया है। भारत और मिस्र मात्र व्यापार ही नहीं बल्कि रक्षा क्षेत्र में एक दूसरे के सहयोगी रहे हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का यह दौर 50 वर्षों से भी अधिक का है।
भारत ने 1960 के दशक में अपना स्वदेशी लड़ाकू विमान मारुत बनाने का प्रयास किया था, इसके इंजन के विकास के लिए भारत और मिस्र ने आपस में मिल कर काफी काम किया था। मिस्र भी उस समय अपने स्वदेशी विमान बनाने के के लिए काम कर रहा था।
इसी पुराने सहयोग को और बढ़ावा देने के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सितम्बर, 2022 में मिस्र की यात्रा भी की, अपनी यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री ने भारत और मिस्र के बीच रक्षा सहयोग बढाने के लिए MOU भी साइन किया।
मिस्र ने भारत के नए स्वदेशी लड़ाकू भारत के विमान तेजस में काफी रूचि दिखाई है। भारत भी इस विमान को मिस्र को बेचने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। भारत ने मिस्र के विमान खरीदने और भी कई सारी सुविधाओं के मिस्र को उपलब्ध कराने का वादा किया है।
मिस्र की वायुसेना अफ़्रीकी महाद्वीप में सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से एक है और इसके बेड़े में अमेरिकी और रूसी दोनों विमान शामिल हैं। ऐसे में मिस्र की सेना की हलके लड़ाकू विमान की आवश्यकताओं को देखते हुए ‘तेजस’ उनके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
भारत और मिस्र दोनों ही देश प्राचीन सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले देश हैं, ऐसे में दोनों के बीच नए सिरे से सांस्कृतिक, रणनीतिक और आर्थिक सहयोग भारत और मिस्र दोनों के लिए लाभदायक होगा।