गणतंत्र दिवस पर परेड में देश के अदम्य शौर्य एवं वीरता का प्रदर्शन हमारे गणतंत्र की परंपरा रही है। परेड देश की जो भव्य छवि प्रस्तुत करती है उसे देखना हर बार सुखद रहा है। इस वर्ष परेड को विशेष बनाने के लिए अनोखी झांकियां एवं विषय शामिल किए गए हैं। ‘जन भागीदारी’ इस वर्ष के गणतंत्र दिवस की प्रमुख थीम है और इसी के अंतर्गत भारतीय नारी शक्ति का प्रदर्शन इस वर्ष के गणतंत्र दिवस परेड का अहम हिस्सा है। इसके साथ परंपराएं, संस्कृति और प्रकृति को भी हिस्सा बनाया गया है। परेड में जहाँ बीएसएफ की महिला टुकड़ी पहली बार ऊंट दस्ते के साथ परेड करेगी, वहीं पहली बार एनसीबी भी इसका हिस्सा होगा जो नशा मुक्ति का संदेश देगा।
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा राष्ट्र अपने गणतंत्र दिवस पर नारी सम्मान एवं शक्ति पर केंद्रित करे, यह उस राष्ट्र की वर्तमान सोच को दर्शाता है। जहाँ महाराष्ट्र की साढ़े तीन शक्तिपीठों वाली झांकी सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगी वहीं बंगाल की सांस्कृतिक विरासत दुर्गा पूजा को इसमें जगह दी गई है। जाहिर है महिलाओं को उचित सम्मान और उनके अदम्य योगदान को दुनिया के सामने प्रस्तुत का इससे अच्छा अवसर बहुत कम मिलेगा।
राष्ट्र इस गणतंत्र दिवस पर जो प्रदर्शित करने जा रहा है वह आधुनिक महिला का चित्रण नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति में हमेशा से उपस्थित महिलाओं के सम्मान को लेकर दुनिया को जागरूक करने का प्रयास होगा। यह आवश्यक है कि गणतंत्र दिवस की परेड से क्या दुनिया में संदेश जाए कि एक राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष अपनी आधी आबादी को किस तरह देखता रहा है और उसे समाज में क्या स्थान देता रहा है।
श्रीरामचरितमानस और स्त्रियों को लेकर एक विशेष वर्ग द्वारा हाल ही में किए जा रहे विरोध के बाद भी उस इतिहास के दस्तावेज को मिटाना संभव नहीं है जिसमें महिलाएं सम्मानित थीं, शिक्षित थीं और योद्धा भी थीं। भारत के इतिहास में कभी भी महिलाओं को शिक्षा, शास्त्र और शस्त्र से वंचित नहीं रखा गया था। देवमाता अदिति, देव सम्राज्ञी शची, सती शतरूपा, शाकल्य देवी को चारों वेदों की शिक्षा प्राप्त थी और इनके अलावा भी ऐसी देवियां थी जो यज्ञ कार्यों में महारत रखती थी। ब्रह्मवादिनी गार्गी और मैत्रिय का नाम शिक्षा के क्षेत्र में सम्मान से लिया जाता था।
स्त्री की रूपरेखा में चंचलता, सौम्य और सुंदरता को सर्वोपरि रखने वाले लेखकों ने उन भारतीय स्त्रियों, संस्कृति और परंपराओं का संपूर्ण अध्ययन नहीं किया होगा जो सौम्य के साथ ही दृढनिश्चयी थीं और राष्ट्र तथा परिवार की रक्षा के लिए महारानी ताराबाई, रानी नचियार एवं कैकेयी की तरह हाथों में शस्त्र भी धारण करती है। आज समाज भले ही अघोषित पितृसत्तात्मक परिवार के उदय को लेकर शोर हो रहा हो लेकिन भारतीय समाज मातृसत्ता के प्रति सहिष्णु रहा है।
देश में ऐसे कई राजा हुए हैं जिनके नाम अपनी माता के नाम से शुरू होते हैं जैसे- गौतमी पुत्र शातकर्णी, वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी। साथ ही राज्य का राजा जिंदा न होने पर महिलाओं द्वारा सफल शासन के उदाहरण भी हमें मिल जाते हैं। इतिहास को जीवंत रखने और उसे दुनिया के सामने यथावत रखना महत्वपूर्ण है। आज भारत दुनियाभर में भू-राजनीति का अभूतपूर्व हिस्सा है। इस राजनीति में किसी देश की जगह क्या होगी और उसे कैसा देखा जाएगा ये उसकी संस्कृति और समाज से निर्धारित होना है।
ऐसे में जब बात देश के विकास और प्रतिष्ठा की हो तो आप आधी आबादी को घर पर नहीं बैठा सकते और न ही उनकी छवि को धूमिल कर सकते हैं। इसकी आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि जिन स्त्री अधिकारों के लिए दुनिया आज भी संघर्ष कर रही है वो भारत में बहुत पहले से स्त्रियों को प्राप्त है।