एनर्जी थिंक टैंक एम्बर की एक नई रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) ने कहा है कि सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए दुनिया को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना होगा और 2030 तक अपनी ऊर्जा दक्षता को दोगुना करना होगा। फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता और जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों को रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा।
इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए $293 बिलियन यानी लगभग 24 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी, जो बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा में योजनाबद्ध वित्तीय चुनौतियों को उजागर करता है। अधिक महत्वाकांक्षी नेट-जीरो एमिशन लक्ष्यों को पूरा करने में $394 बिलियन यानी लगभग 32 लाख करोड़ रुपए से अधिक की लागत आ सकती है।
भारत ने 2030 तक 450GW नवीकरणीय क्षमता तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्धता जताई है, जो मौजूदा 135GW के स्तर से तीन गुना अधिक है। यह वैश्विक नेट-जीरो लक्ष्य को स्वीकार करने से पहले निर्धारित लक्ष्य था। हालाँकि, IEA के आकलन से पता चलता है कि वार्मिंग को 1.5C तक सीमित करने के लिए भारत को 570GW नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँचने की आवश्यकता है। इस उच्च लक्ष्य को पूरा करने और क्षमता को तीन गुना करने के लिए $293 बिलियन के अतिरिक्त $101 बिलियन के निवेश की आवश्यकता होगी।
भारत महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार लक्ष्य हासिल करने में अग्रणी रहा है। हालाँकि, ऊर्जा प्रणाली के आवश्यक बदलाव और गति बनाए रखने के लिए आवश्यक निवेश की उपलब्धता चुनौतीपूर्ण है। यह भारत की प्रतिबद्धता और दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा बाजारों में से एक को बदलने की विशाल चुनौती दोनों के बारे में बताता है।
इन लक्ष्यों को पाने के लिए आवश्यक धनराशि को सुरक्षित करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं होगी। संदर्भ के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने का मतलब 2030 तक प्रति वर्ष लगभग $42 बिलियन का निवेश होगा और नेट-जीरो के लक्ष्यों तक पहुँचने के लिये साथ औसतन सालाना अतिरिक्त $14 बिलियन का इंतजाम करना होगा। भारत में मौजूदा फंडिंग और निवेश का स्तर आवश्यकता से कम है। सैकड़ों अरब डॉलर जुटाना बहुत बड़ी आर्थिक और नीतिगत चुनौतियाँ पैदा करता है।
ऐसे में भारत के लिए प्रतिस्पर्धी दरों पर बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय पूंजी आकर्षित करने के लिये बड़े प्रयास महत्वपूर्ण होंगे। निवेश में भारी वृद्धि के बिना स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों से पीछे रहने का जोखिम बना रहेगा और बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कोयले पर निर्भर रहने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
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