बॉलीवुड में ‘खान’ होना पावरफुल होने की निशानी है पर जिस खान की बात हम आज करने जा रहे हैं, उनकी पहचान खान होने के कारण नहीं है। पहचान के लिए उनके पास अपना बहुत कुछ था। बल्कि एक समय तो ऐसा भी आया जब उन्होंने अपने नाम से खान हटा लिया। एक ऐसे अभिनेता जो केवल अपने किरदार को ही नहीं, अपनी फिल्मों को भी जीते थे। शायद यही कारण था कि उनके नियंत्रण में केवल उनके किरदार ही नहीं, उनकी फिल्में भी रहती थी।
हम बात कर रहे हैं इरफान खान की। इरफ़ान का जन्म 7 जनवरी 1967 के दिन हुआ था। इरफान को केवल इरफान बने रहने से शायद इसलिए कोई गुरेज नहीं था क्योंकि वे एक्टर थे, ‘स्टार’ नहीं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले लगभग 30-35 वर्षों में भारत में जितने भी शीर्ष अभिनेता हुए हैं, इरफ़ान उनमें अग्रणी थे। राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित उनकी फिल्में, दमदार किरदार और उनके जीवंत डायलॉग एक अभिनेता के रूप में उन्हें प्रस्तुत करने के लिए काफी हैं पर इरफान एक अभिनेता से और आगे के व्यक्ति थे।
इरफान का व्यक्तित्व एक कलाकार से अधिक था। उनका यह मानना था कि जीवन क्षणभंगुर है इसलिए वे इसे सिरियसली (गंभीरता) नहीं लेते। वे कहते थे; प्रसिद्धि पाने की चाह रखना एक बीमारी है और एक दिन मैं इससे मुक्त होना चाहता हूँ। एक ऐसी स्थिति में पहुँचना चाहता हूँ जहाँ प्रसिद्धि मायने नहीं रखती हो बल्कि इसके बिना जीवन का आनंद उठा संकू। और ऐसा उन्होंने सिर्फ कहा नहीं बल्कि इसे जिया भी।
टीवी धारावाहिकों से अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले इरफान ने सभी तरह के किरदारों को करना स्वीकार किया। उनकी एक छवि बन रखी थी कि वे एक गंभीर अभिनेता हैं। वो पैरेलल सिनेमा (यदि आज है) या यूं कहें कि मेथड एक्टर ज्यादा थे। हालाँकि इरफान ने कई रोमांटिक रोल भी बड़े परदे पर निभाए। खुद उनके अनुसार उन्हें रोमांस पसंद था। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि; जीवन में जो परेशानियां हैं उन्हें हल्का बनाने का काम रोमांस ही करता है इसलिए रोमांस से भरे किरदार उन्हें पसंद थे।
करियर की शुरुआत में ही उन्हें मीरा नायर के साथ ‘सलाम बॉम्बे’ में काम करने का मौका मिला हालांकि ऊँचे कद के कारण उनका रोल काट दिया गया लेकिन मीरा नायर ने इसकी भरपाई ‘दी नेमसेक’ फिल्म में उन्हें मुख्य किरदार देकर की थी। ‘दी नेमसेक’ में उनके अभिनय को जमकर सराहा गया था। उनका किरदार अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में पढ़ाता है लेकिन उसका दिल अभी भी भारत में है। ये किरदार उनके वास्तविक व्यक्तित्व से दूर नहीं था क्योंकि वो भी कहते थे कि वो भारत से बाहर कही नहीं रह सकते हैं।
इरफान ने छोटे किरदारों को भी अपनाया तो बड़े परदे पर भी अपनी कलाकारी दिखाई। वे भारत एक खोज, चाणक्य, चंद्रकांता जैसे टीवी सीरियल्स में नजर आए। इसके बाद कई फिल्में में छोटे-छोटे रोल निभाते गए और उनकी पहचान बनती गई। उसके बाद तो मकबूल जैसी फिल्मों ने उन्हें एक गंभीर अभिनेता के रूप में स्थापित कर ही दिया था। द वॉरियर, पान सिंह तोमर, हासिल, द लंचबॉक्स, मदारी, जुरासिक पार्क, लाइफ ऑफ पाई, द जंगल बुक और भी बहुत सारी अवॉर्ड विजेता फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया था।
अभिनय इरफान के लिए कमाई का जरिया तो था ही साथ ही वो इसे पूरी तरह से जीते थे। उनका कहना था कि; एक एक्टर के लिए इससे ज्यादा दयनीय स्थिति नहीं हो सकती जब वे कोई किरदार निभाए और उससे अपने आपको जुड़ा हुआ महसूस न करे और मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी जिंदगी में ऐसा दिन कभी न आए।
इरफान ने अभिनय में अपनी जिंदगी के करीब 3 दशक बिताए। इस दौरान उनको बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड में काम करने का मौका मिला। वे लंबे अरसे तक ‘स्टारों’ से भरी दुनिया में बिना किसी ‘गॉडफादर’ के बने भी रहे और अपनी दमदार उपस्थिति भी दर्ज करवाई। दो ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्मों का हिस्सा रहने के बाद भी इरफान के सर पर ‘स्टारडम’ नहीं था। दरअसल उनका व्यक्तित्व और उनके उसूल उनके प्रोफेशन पर हमेशा हावी रहे। यही कारण है कि वर्ष 2016 में जब हॉलीवुड फिल्म निर्माता क्रिस्टोफर नोलन की चर्चित फिल्म ‘इन्सेप्शन’ में उन्हें काम करने का मौका मिला तो उन्होंने इसे ठुकरा दिया क्योंकि वे तब ‘द लंचबॉक्स’ एवं ‘डी-डे’ की शूटिंग में तारीखें दे चुके थे।
इरफान का किसी विवाद से नाता रहा हो, ऐसा याद नहीं आता। उनका कहना था कि एक आदर्श समाज वो है जहाँ कला की कद्र होती है। इससे ज्यादा भी हो समाज में ‘हीरो’ के बारे में औरों से अलग विचार रखते थे। उनका कहना था कि एक फिल्म एक्टर और क्रिकेटर किसी का आदर्श नहीं हो सकता। हाँ बेशक वो मनोरंजन करते हैं और देश के लिए जरूरी हैं लेकिन वो हीरो नहीं है। बिना थके हुए जो दूसरों का जीवन बदलने का काम कर रहे हैं वो हीरो है।
इरफान को जानने वाले कहते हैं कि अपने किरदारों से अलग वो एक जिंदादिल और मजाकिया इंसान रहे। उन्होंने हमेशा अभिनय, कला और रिश्तों को जिया। इरफान अपने आखिरी समय में भी कैंसर से जूझते हुए काम कर रहे थे। अंग्रेजी मीडियम के निर्देशक होमी अदजानिया ने फिल्म की शूटिंग का एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि; मैंने उनसे पूछा था कि जब वो इलाज करवा रहे हैं तो फिल्म की शूटिंग क्यों जारी रखना चाहते हैं? इस पर वो बोले कि- मैं मरा नहीं हूं ना…तो मुझे जिस काम से प्यार है वो करके जिंदा रहने दो।
आखिरी दिनों में कैंसर का पता लगने पर इरफान ने लिखा, “अभी तक मैं एक खेल का हिस्सा था। एक तेज भागती ट्रेन में सवार था। मेरे सपने थे। योजनाएं थी। मैं पूरी तरह सब में बिजी था। तभी ऐसा लगा कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा मुझे रोका, वो टीसी था। उसने बोला- आपका स्टेशन आने वाला है, आप नीचे उतर जाएं। मैं परेशान था। कह रहा था कि नहीं नहीं मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है। उसने कहा कि नहीं, आपका सफर यहीं तक था। कभी-कभी ये सफर ऐसे ही खत्म होता है।”
इरफान ने अपनी जिंदगी का हर पल अभिनय और कला के नाम कर दिया। उन्होंने कहा था कि; मैंने कभी भी ऐसी छवि बनाने की कोशिश नहीं कि जहाँ लोग मेरे चेहरे या स्टाइल से प्यार करे बल्कि मैं ऐसी जगह बना रहा रहूँ जहाँ मैं इन सब बातों पर निर्भर ना रहूँ। बेशक इरफान अपने लिए कला जगत में वो अलग जगह बनाने में कामयाब रहे। आखिरी में इरफान को याद करते हुए उनका एक डायलॉग याद आया, “मैं समझता हूँ कि आखिर में सब कुछ जाने देने का नाम ही जिंदगी है पर सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जब आपको अलविदा कहने का मौका नहीं मिल पाता”।