स्वतंत्र भारत में सुशासन की अवधारणा कहाँ से आई? इसका मूल संवैधानिक प्रावधानों में है जिसके जरिए लोगों की आंकक्षाओं को पूरा किया जा सकता है। दुनिया भर में अधिकतर सरकारों के लिए शासन और प्रशासन सामान्य प्रक्रिया है परंतु सुशासन विशिष्ट है। ऐसे में स्वतंत्र भारत में कितनी सरकारों के शासन को सुशासन कहा जा सकता है? शायद बहुत कम।
यही कारण है कि स्वतंत्रता के पश्चात दर्जन भर से अधिक सरकारों और उनके नेतृत्व के बाद एक सरकार यह दावा करने का नैतिक बल जुटा पाई कि उसके पहले नेतृत्व देने वाले एक प्रधानमंत्री की स्मृति में उनके जन्मदिवस को सुशासन दिवस (Good Governance Day) के तौर पर मनाया जाना चाहिए।
अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तब तक भारत में 12 प्रधानमंत्रियों का शासन समाप्त हो चुका था। ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों है कि वाजपेयी जी के कार्यकाल को सुशासन और भारत के परिवर्तनकारी शासन का सूत्रधार माना गया?
वाजपेयी कार्यकाल के दौरान संसद पर हमला हुआ, भीषण समुद्री तूफान आया, गुजरात को भयंकर भूंकप से भारी नुकसान झेलना पड़ा था और उसी दौरान विश्व तेल के संकट से जूझ रहा था। इन मुश्किलों के बाद भी अटल सरकार ने पीवी नरसिम्हा सरकार द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों को न केवल बरकरार रखा बल्कि उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। प्रश्न यह भी उठता है कि ऐसा करने की नैतिक शक्ति का आधार क्या रहा होगा? शायद भारत के लोकतंत्र में श्री वाजपेयी का असीम विश्वास।
आख़िर उन आर्थिक सुधारों को अगले स्तर तक ले जाने का साहस दिखाना, जिन्हें उनके प्रस्तावक और लागू करने वाले ही छोड़ गए थे, मामूली बात नहीं है।
अटल सरकार को सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी के करिश्माई व्यक्तित्व के लिए ही नहीं बल्कि उनके द्वारा लिए गए राष्ट्र निर्माण के कदमों के लिए भी जाना जाताहै। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था, “व्यक्ति को सशक्त बनाने का अर्थ है राष्ट्र को सशक्त बनाना और सामाजिक विकास के साथ-साथ आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर सशक्तिकरण सुनिश्चित किया जा सकता है।”
इसलिए अटल सरकार के दौरान आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में ऐसे निर्णय लिए गए जिसने देश के लिए आवश्यक परिवर्तन और सुधारों की नींव रखी। ऐसे देश की जो युद्ध के घावों और आर्थिक सामाजिक तंगी से निकलकर विकास की ओर अग्रसर हुआ। बुनियादी जरूरतों के मुद्दों पर जिस सरकार का अधिक जोर रहा। यही कारण है कि देश के बच्चे-बच्चे तक शिक्षा पहुँचाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की गई।
वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान के जरिए अटल सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। इस अभियान के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के हर बच्चे के लिए शिक्षा को अनिवार्य किया गया था। इस अभियान से जो परिणाम मिले वो अभूतपूर्व थे। छात्रों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर में गिरावट आई और भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में तेजी से इजाफा देखने को मिला। इस अभियान के बाद विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में 4 वर्षों के अंतराल में 60% तक की गिरावट दर्ज की गई।
वर्ष 1985, तक देश के करीब 2 करोड़ 50 लाख बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित थे। 2001 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत के बाद ये आँकड़ा तेजी से नीचे आया और वर्ष 2006 तक ये आँकड़ा मात्र 60 लाख तक रह गया। अटल सरकार ने 86वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा को मौलिक अधिकारों में शामिल कर दिया ताकि देश का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रह पाए।
ये बुनियादी विकास के लिए बड़ा निर्णय था परंतु अटल सरकार की दूरदर्शिता देश को उनके आर्थिक क्षेत्र में लिए गए निर्णयों में देखने को मिली चाहे वो उड्डयन (एविएशन) क्षेत्र हो या टेलीकॉम या नियामक संस्थाएँ। NDA सरकार के 2004 तक के कार्यकाल में लिए गए निर्णय आज भी चल रही कई योजनाओं की नींव है।
इन्हीं में से एक निर्णय था हवाई अड्डों के विकास में निजी भागीदारी की योजना। सरकार द्वारा लाई गई ‘ओपन स्काई नीति’ ने भारतीय विमानन क्षेत्र में विकास और विस्तार करने की स्वतंत्रता प्रदान की। इसी कार्यकाल में पहली बार देश से निजी विमानों को दक्षेस देशों के लिए उड़ान भरने की अनुमति भी मिली थी। साथ ही, वाजपेयी सरकार द्वारा ही एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) को बाजार दरों से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
यह तो विदित है कि वाजपेयी कार्यकाल के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर 6-8 प्रतिशत पर स्थिर रही थी वो भी उस समय जब देश आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाओं और वैश्विक मंदी के दौर से गुजर रहा था। विनिवेश मंत्रायल के जरिए वाजपेयी सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया से आर्थिक सुधारों को मजबूत किया। उनके कार्यकाल में करीब 32 कंपनियों को निजी क्षेत्रों के रखरखाव में स्थानांतरित किया गया था।
इनके कार्यकाल में ही राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम (fiscal responsibility act) लाया गया, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की बचत में बढ़ोत्तरी हुई। इसके परिणाम बेहद उत्साहित करने वाले रहे। देश में पब्लिक सेक्टर सेविंग्स वित्त वर्ष 2000 में जीडीपी के -0.8% की तुलना में 2005 तक बढ़कर 2.3 फीसदी तक पहुँच गए। अर्थात, देश का संपूर्ण कर्ज चुकाने के बाद भी सरकारी खजाना खाली नहीं होता।
इसके साथ ही दूरसंचार के क्षेत्र में लाइसेंस फीस हटाकर रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था की गई थी। वर्ष 1999 में वाजपेयी सरकार द्वारा लाई गई दूरसंचार नीति ही दूसरसंचार क्रांति की अग्रदूत रही। जहाँ भारत में 1994 तक मोबाइल फोन भी नहीं थे आज वो ही देश प्रतिदिन डाटा उपभोग के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है।
पावर सप्लाई चेन को बढ़ावा देने के लिए विद्युत अधिनियम लाना हो या ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करना वाजपेयी सरकार ने हर मोर्चे पर विकास की स्वर्णिम रेखा खींची थी।
वाजपेयी सरकार के आर्थिक सुधारों में नियामक संस्थाओं की मुख्य रूप से भूमिका रही जिसमें, 2000 में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की स्थापना महत्वपूर्ण कदम रही। IRDAI के जरिए बाजार में एलआईसी के एकाधिकार को समाप्त किया गया था।
आर्थिक सुधारों का फायदा हर वर्ग को मिले इसके लिए वाजपेयी सरकार द्वारा 2004 में राष्ट्रीय पेंशन स्कीम (NPS) लागू की गई थी। NPS का वास्तविक लाभ 2040 तक दिखाई देगा जब एनपीएस को चुनने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों का पहला बैच सेवानिवृत्त होना शुरू हो जाएगा और सरकारी पेंशन का बोझ कम हो जाएगा।
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वाजपेयी सरकार द्वारा विज्ञान, शिक्षा, आर्थिक क्षेत्रों में कई क्रांतिकारी कदम उठाए गए लेकिन इन्हीं निर्णयों में मील का सबसे बड़ा पत्थर साबित हुआ स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden quadrilateral) जिसमें देश ने राजमार्गों की संभावित विशालता का अनुमान पहली बार लगाया। जो आज भी देश में भारतमाला परियोजना के जरिए आगे बढ़ रहा है। जब स्वर्णिम चतुर्भुज की घोषणा हुई थी तब विशेषज्ञों से लेकर तथाकथित विशेषज्ञों ने इस योजना पर सार्वजनिक रूप से शंका जाहिर की थी परंतु वाजपेयी सरकार ने यह साबित कर दिया कि देश न केवल विशाल योजनाओं के सपने देख सकता है बल्कि उसे पूरा भी कर सकता है।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना थी। 60,000 करोड़ रुपए की लागत से शुरू हुई परियोजना वर्ष 2012 में पूर्ण हुई थी। देश के 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरने वाले स्वर्णिम चतुर्भुज से देश के चार सबसे बड़े शहर नई दिल्ली, चेन्नई, मुंबई और कोलकाता को एक-दूसरे से जोड़ा गया था। विकास की इस राह में गाँव पीछे न छूट जाए इसके लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के जरिए गाँवों को पक्की सड़कों के जरिए शहरों से जोड़ा गया था।
वाजपेयी सरकार के दौरान IRDAI, TRAI, PFRDAI, और सीसीआई जैसी नियामक संस्थाएं मिली। विज्ञान के क्षेत्र में इसी कार्यकाल में विज्ञान और तकनीक पॉलिसी लागू की गई थी जो देश की स्वतंत्रता के बाद विज्ञान के क्षेत्र में मात्र तीसरी पॉलिसी थी। वाजपेयी सरकार के आर्थिक निर्णयों की मजबूती आज भी देश के आर्थिक विकास में नजर आती है।
वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई परियोजनाएं आज भी प्रांसगिक हैं और राष्ट्र निर्माण को आगे ले जा रही है। बुनियादी सुविधाओं से लेकर बेहतरीन आर्थिक सुधार और दृढ़ विदेश नीति को ही सुशासन की संज्ञा दी गई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन और सुशासन दिवस के दिन हम उनके कहे शब्द याद करते हैं जो उन्होंने संसद में कहे थे, “सरकारें आएंगी, जाएंगी लेकिन भारत रहना चाहिए।”
इसलिए, सुशासन की मूल अवधारणा इस विश्वास में है कि योजनाएं और सरकारी निर्णय विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए हों, न कि वोटर निर्माण के लिए।