राज्य के संचालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण आप किसे मानते हैं, शासन को या कानूनी व्यवस्था को? देखा जाए तो दोनों ही महत्वपूर्ण भी हैं और एक दूसरे के पूरक भी। सुशासन कभी भी सुदृढ़ कानूनी व्यवस्था के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसके बिना उसमें अराजकता, अन्याय और असामाजिक तत्वों की बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी। कानूनी व्यवस्था और शासन के निर्णय एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और चुनावी दौर में तो इनकी महत्ता और बढ़ जाती है।
सत्ता और विपक्ष द्वारा कानूनी बाधाओं को चुनावी तराजू में तोल कर निर्णय लेना निजी हित साधने के लिए भले ही हो पर यह लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होता है।
हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों में हिंदू मंदिरों पर हमले की घटनाएं देखने को मिली हैं। दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों से ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। राजस्थान में तो पुजारियों के विरुद्ध अपराध और मंदिरों में तोड़-फोड़ की घटनाओं में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। जाहिर है असामाजिक तत्व समाज में हिंसा और अप्रिय घटनाओं के पीछे रहते ही हैं और कानूनों की अवहेलना सामने आ ही जाती है।
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इन घटनाओं को रोका भले ही न जा सके पर ये देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या आई है। क्या कोई ठोस कानूनी कदम उठाया गया है? प्रदेश के संचालन में कानूनी व्यवस्था का योगदान किस स्तर का है और सभी वर्गों के लिए समान रूप से कार्य कर रही है या नहीं। इस पर ध्यान न देने की गलती बड़े आक्रोश और हिंसक घटनाओं के रूप में सामने आ सकती है।
राजस्थान बीते कुछ वर्षों से अपनी लचर कानूनी व्यवस्था के कारण कुशासन का उदाहरण बन गया है। एनसीआरबी के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2021 से 2022 के बीच राजस्थान में अपराधों में 11.61% की बढ़ोत्तरी देखी गई। महिलाओं के विरुद्ध अपराध में तो राज्य देशभर में शीर्ष पर ही है। सांप्रदायिक घटनाओं को रोकने में भी गहलोत सरकार नाकाम रही है। कन्हैयालाल प्रकरण ने राजस्थान की पूरे देश में किरकिरी करवाई थी जब मात्र नुपूर शर्मा का समर्थन करने पर दर्जी कन्हैया लाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी।
पुलिस को पहले से मामले की सूचना होने पर भी कोई कार्रवाई न करना कानून व्यवस्था के प्रति प्रशासन की मशीनरी की प्राथमिकता को दर्शाता है। गहलोत सरकार अपने कार्यकाल में बाड़ेबंदियों और अंतर्कलह से जुझती रही और प्रदेश की कानूनी व्यवस्था ने दम तोड़ दिया। गहलोत को याद रखना चाहिए कि धार्मिक तुष्टिकरण के निर्णय क्षणिक फायदा पहुँचा भी दें तो वो कानून और संविधान के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुजफ्फरनगर दंगे हैं जब 60 हिंदुओं की हत्या हुई थी और समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा अपनी गलत नीतियों के जरिए आरोपितों को बरी कर दिया गया था।
मुजफ्फरनगर दंगे जैसी घटनाओं से गुंडा राज का चेहरा बना उत्तर प्रदेश आज सुदृढ़ कानूनी व्यवस्था की नजीर बना हुआ है। NCRB के आंकड़ों में यूपी में महिलाओं/बच्चों के खिलाफ अपराधों में कमी आई है। महिला व साइबर अपराधों में आरोपितों को सजा दिलाने में यूपी पुलिस ने अपना पहला स्थान बरकरार रखा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अपराध नियंत्रण में उत्तर प्रदेश को अन्य राज्यों की तुलना में और बेहतर बनाने के लिए 3000 करोड़ रुपये की योजना से नया स्वरूप देने का निर्णय लिया गया है। देशभर में ‘योगी मॉडल’ की चर्चा की जा रही है तो इसलिए की योगी सरकार द्वारा धार्मिक तुष्टिकरण नहीं बल्कि राज्य के विकास के लिए निर्णय लिए गए हैं जिनका आधार क़ानून व्यवस्था को माना गया है। गहलोत सरकार को ‘योगी मॉडल’ से सीखना चाहिए कि कैसे कानूनी व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करके उत्तर प्रदेश आज निवेशकों की पहली पसंद बन गया है।
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समाज में सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व मिले यह सुनिश्चित करने के साथ ही सभी वर्गों को समान रूप से कानूनी नियमों में बांधना भी आवश्यक है। श्रद्धा हत्याकांड सामने आने पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का लापरवाही भरा बयान सामने आया था कि ऐसी घटनाएं होती रहती है इस पर एक कौम को निशाना बनाना सही नहीं है। जाहिर तौर पर किसी को भी निशाना बनाना उचित नहीं है लेकिन माननीय मुख्यमंत्री को ये समझना चाहिए कि दोषी को दोषी कहना किसी को निशाना बनाना नहीं होता है।
देश में कई धर्म के लोग निवास करते हैं। इसमें सामंजस्य बने रहने पर भी कई अप्रिय घटनाएं समय-समय पर समाने आ ही जाती हैं। एक-दूसरे की विचारधाराओं में टकराव विद्यमान रहेंगे ही पर इसमें सरकार को अपनी भूमिका पर विचार करना चाहिए। जब तक सरकार तटस्थ निर्णय लेती रहेंगी तब तक असामाजिक तत्व नियंत्रण में रहेंगे। अन्यथा लचर प्रशासनिक व्यवस्था में उनके हावी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
धार्मिक स्थलों पर हिंसा किसी भी लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश का हिस्सा नहीं हो सकता। धार्मिक भावनाओं को भड़काने एवं तुष्टिकरण का परिणाम पाकिस्तान के रूप में सबके सामने है। राष्ट्रप्रथम की भावना जितनी प्रबल होगी धार्मिक हिंसा में उतनी ही कमी देखने को मिलेगी। हालाँकि इसका सबसे पहला कदम सरकारों की ओर से आना चाहिए। वो यह तय करें कि चुनाव और राजनीति के उनके निर्णय अपराधियों को बच निकलने में मदद न कर पाएं।