आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस नेता राहुल गांधी हमेशा की तरह चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी प्रियंका वाड्रा ही रैली में दिखाई दे रही हैं। राजस्थान में तो शायद अशोक गहलोत ने राहुल गांधी द्वारा चुनाव प्रचार न करने की शर्त रख दी है। ऐसा नहीं होता तो राहुल गांधी वहाँ चुनाव प्रचार करते हुए दिखाई देते। आख़िर राजस्थान राजनीतिक रूप से बड़ा राज्य है और कांग्रेस यहां सत्ता में भी है।
तो फिर ऐसा क्या कारण है कि राहुल गांधी न तो अभी तक यहां पहुंचे हैं नहीं राजस्थान नेतृत्व उनकी कमी महसूस कर रहा है?
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्य की राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं। यही कारण है कि पिछले 4 वर्षों में लगातार विरोध झेलने के बाद भी वे ऐन-केन प्रकारेण अपने पद पर बने हुए हैं। यहां तक की सचिन पायलट से विवाद के बाद भी वे उनके साथ मिलकर आगामी चुनावों का प्रचार कर रहे हैं पर राज्य में राहुल गांधी की अनुपस्थिति शायद इसलिए है कि गहलोत उनसे चुनाव प्रचार करवाने के लिए सहमत नहीं हैं।
ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी अपनी उपस्थिति से कोई चुनावी रूख मोड़ने की क्षमता रखते हैं पर पार्टी के साथ खड़ा होना अलग बात है। हर पार्टी चाहती है कि उसका प्रमुख नेता उसके लिए चुनावों में प्रचार करे पर पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस पार्टी के मज़बूत नेता अपने अपने राज्यों में राहुल गांधी को देखना नहीं चाहते।
विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार में राहुल गांधी को स्टार प्रचारक न बनने देने का काम शायद सबसे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया था। 2017 में विधानसभा चुनाव के समय पंजाब की राजनीति के जानकारों का कहना था कि कैप्टन साहब ने पार्टी हाईकमान को सीधे तौर पर बता दिया था कि वे चुनावों में राहुल गांधी की भूमिका नहीं देखते। राहुल गांधी को चुनावों के दौरान पंजाब से दूर रखा गया और कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव भी जीत गए थे। उन्होंने केवल राहुल गांधी को ही नहीं बल्कि प्रियंका वाड्रा को भी बच्चे बताते हुए कहा था कि राहुल गांधी को एक नेता के रूप में अभी काफी सुधार करने की आवश्यकता है।
पिछले लोकसभा चुनाव के समय राजस्थान सरकार द्वारा कुंभाराम योजना को कुंभकरण योजना बताने वाले राहुल गांधी का वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर चलता है। पार्टी के सबसे बड़े राजनेता के रूप में राहुल गांधी के साथ उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता सांमजस्य बैठाने में परेशानी महसूस कर रहे हैं। यह बात मज़बूत क्षेत्रीय कांग्रेसी राजनेता के मामले और अधिक उभर कर आती है।
अशोक गहलोत भी वरिष्ठ नेता हैं और उनका कुर्सी प्रेम तो जगजाहिर है। उन्हें पता है कि दिल्ली का नेतृत्व राहुल गांधी को आगे बढ़ाना चाहता है और अगर उन्होंने अधिक समय तक इसे टालने का प्रयास किया तो उनका हाल भी अंत में कैप्टन अमरिंदर की तरह ही हो सकता है।
वैसे भी राहुल गांधी पहले भी उन्हें मुख्यमंत्री पद त्याग कर पार्टी प्रेसिडेंट बनने का कह चुके हैं। तब से लेकर अबतक अशोक गहलोक ने ऑउट ऑफ वे जाकर राहुल गांधी और उनके द्वारा भेजे गए नेताओं को राजस्थान की राजनीति से बाहर रखा है।
गहलोत के पास ऐसा करने का कारण भी है। कैप्टेन अमरिंदर सिंह ही नहीं बल्कि उनका प्रयोग पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश में भी दोहराया गया और पार्टी को सफलता मिली। बिहार हो, गुजरात हो, पंजााब या राजस्थान कांग्रेस के नेता ही राहुल गांधी को राजनीति के लिए सही नहीं मानते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस नेतृत्व या कहें कि परिवार राहुल गांधी को किसी भी प्रकार रेलवेंट बनाए रखना चाहता है पर पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें इस प्रकार नहीं देखते हैं। उनके लिए जबतक वे भ्रमण और यात्राओं के जरिए पार्टी को चर्चा में रखने का प्रयास करते हैं तब तक ठीक है पर चुनावी यात्राओं के लिए राहुल गांधी अभी भी अबोध हैं।
हालांकि यह बात न तो राहुल गांधी स्वीकार करेंगे न ही उन्हें आगे बढ़ाने वाला परिवार। वो सिर्फ उत्तराधिकारी है, जिसे योग्यता की नहीं अवसरों की आवश्यकता है, बार-बार एक्सपेरिमेंट करने के अवसरों की।
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