देश के केन्द्रीय बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों को चेताया है कि जो कम्पनियाँ अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में बड़े स्तर पर व्यापार करती है, उन्हें कर्ज देने में सावधानी बरतें। इसके पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिम के देशों और रूस के बीच की तनातनी है।
पश्चिमी देश लगातार रूस पर आर्थिक दबाव डालने के लिए उसकी व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगाने का प्रयास कर रहे हैं। यह जानकारी समाचार पत्रों ने रिजर्व बैंक गवर्नर की 16 नवम्बर को बैंकों के साथ हुई बैठक के हवाले से दी है।
पश्चिमी देश रूस को दुनिया के आर्थिक सिस्टम से अलग-थलग करने के लिए लगातर कदम उठा रहे हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने विदेशी बैंकों में रूस के खाते भी सीज कर दिए हैं। अधिकांश पश्चिमी देशों की कम्पनियाँ रूस से अपना बोरिया बिस्तर समेट चुकी हैं।
भारतीय कम्पनियाँ भी इससे अछूती नहीं हैं। भारतीय टेक कम्पनी इनफ़ोसिस, जिसका रूस समेत दुनिया के कई देशों में व्यापार है, लेकिन लगातार पश्चिमी देश दबाव बनाते रहे हैं कि वह रूस की राजधानी मॉस्को स्थित अपना दफ्तर बन्द कर दे।
RBI ने क्या कहा?
यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस को वैश्विक आर्थिक तंत्र से बाहर करने के उद्देश्य से उसके द्वारा SWIFT जैसी व्यवस्थाओं के इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है। रूस भी अब अधिकांश देशों में रूबल में ही व्यापार कर रहा है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गत 16 नवम्बर, 2022 को देश के प्रमुख बैंकों के अधिकारियों के साथ एक बैठक की जिसमें उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की। इसमें उन्होंने बैंकों को चेताया है कि वह ऐसी कम्पनियों को ऋण देने में सावधानी बरतें जो पश्चिमी देशों में बड़े स्तर पर व्यापार में संलग्न हैं।
भारत और रूस भी रुपए और रूबल में व्यापर कर रहे हैं। इस व्यवस्था में एक भारतीय और एक रूसी बैंक में आपस में भागीदार बनते हैं। पश्चिमी देशों की निगाहें इन बैंकों पर कभी भी टेढ़ी हो सकती हैं। पश्चिमी देश लगातार रूस से व्यापार करने वाली कम्पनियों पर दबाव बनाते रहे हैं कि वह अपना धंधा रूस से समेट लें।
भारत लगातार युद्ध के बाद भी रूस से तेल खरीद रहा है। इस पर कई पश्चिमी देशों ने नाराजगी भी जताई है। जबकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बार-बार रणनीतिक स्वायत्तता एवं अपने नागरिकों के हितों को सबसे ऊपर रखने को सरकार की प्राथमिकता बताया है। रूस, भारत का पाँचवा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है।
पश्चिमी देश अपना रहे दोहरा रवैया
अमेरिका, यूके समेत अन्य पश्चिमी देश बाकी देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर दबाव बना रहे हैं कि वह रूस के साथ व्यापार न करें। वहीं इन्हीं देशों की कई बड़ी कंपनियाँ लगातार रूस में व्यापर करके बड़ा मुनाफा कमा रही हैं।
ब्रिटिश तेल कम्पनी ब्रिटिश पेट्रोलियम, रूस की अहम तेल कम्पनी रोसनेफ्ट में बड़ी हिस्सेदार है पर युद्ध के शुरू होने के 11 महीने बाद तक इसको अभी रूस में व्यापर करने से पश्चिमी देश नहीं रोक सके हैं।
अमेरिका के प्रतिष्ठित येल विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर जेफ्री सोंनेफिल्ड की टीम के द्वारा की गई खोज के अनुसार जुलाई माह तक लगभग 1,000 अलग-अलग देशों की कम्पनियाँ रूस में व्यापार कर रही थीं। इनमें से ऐसी 25 अमेरिकी कम्पनियाँ है जो कि रूस में युद्ध के पहले के समय की तरह ही व्यापार कर रही हैं।
जर्मनी की कम से कम 21 कम्पनियाँ अभी भी रूस में व्यापार कर रही हैं।
वहीं जर्मनी, स्विट्जरलैंड, पोलैंड और अन्य नाटो देश जो कि रूस का बड़े स्तर पर अन्तरराष्ट्रीय मंच पर विरोध करते आए हैं, इन सभी देशों की कम्पनियाँ रूस में व्यापार कर रही थीं।
भारत-रूस व्यापार सम्बन्ध
रूस, भारत का पुराना और सबसे विश्वसनीय व्यापारिक भागीदार रहा है। अहम रक्षा सामग्री भारत को देने के अलावा रूस युद्ध के बाद से अन्तरराष्ट्रीय बाजार में ऊँची कीमतों के बावजूद भारत को बड़ी छूट पर कच्चा तेल देता आया है। इससे भारत को स्थानीय स्तर पर महंगाई पर लगाम लगाने में मदद मिली है।
ऐसे में भारत का एकाएक रूस से व्यापार खत्म कर देना भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों को बड़े स्तर पर नुकसान पहुँचा सकता है। भारत ने रूस की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खुलकर आलोचना भी नहीं की है। यह भारत और उस के बढ़ते रिश्तों का प्रमाण है।