रविवार, 17 जुलाई को भारत के रिज़र्व बैंक ने एक आधिकारिक बयान जारी किया। इसमें रिज़र्व बैंक ने 500 रूपये के नोट गायब होने वाले दावे को खारिज कर दिया है। कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा था। यह रिपोर्ट्स सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर छापी गयी।
अब RBI ने स्पष्ट किया है कि RTI से जो जानकारी मिली है उसका गलत मतलब निकाला गया है और मीडिया रिपोर्ट्स सही नहीं हैं।
क्या है पूरा मामला
पूरा मामला शुरू होता है ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ द्वारा छापी गई एक रिपोर्ट से। इस रिपोर्ट का आधार एक आरटीआई में प्राप्त जानकारी बताई गयी। बताया गया कि आरटीआई के तहत मनोरंजन रॉय नामक व्यक्ति को यह जानकारी मिली थी। हालाँकि इस रिपोर्ट में और अन्यत्र भी इस आरटीआई की मूल कॉपी को नहीं दिखाया गया है।
इसके अनुसार 500 रुपये के 8,810.65 मिलियन नए नोट जारी किए गए थे लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को 7260 मिलियन नोट ही प्राप्त हुए । इस डाटा के अनुसार 1760.65 मिलियन नोट अर्थव्यवस्था से गायब हैं। जिनकी कीमत 88,032.50 करोड़ रुपये आंकी गयी। ज्ञात हो कि भारत में तीन जगह हैं जहां नोट की प्रिंटिंग की जाती है।
पहला नासिक में और अन्य दो बेंगुलरू, देवास में स्थित हैं। दावा किया गया कि आरटीआई के अनुसार नासिक से वर्ष 2016- 2017 के दौरान 1662 मिलियन नोट आरबीआई को सप्लाई किए गए थे।
बेंगुलरू से 5195.65 मिलियन नोट और देवास से 1953 मिलियन नोट आरबीआई को सप्लाई किया था। यानी तीनों को मिलाकर 8810.65 मिलियन नोट लेकिन इनमें से 7260 मिलियन नोट ही रिजर्व बैंक को प्राप्त हुए।
यह भी दावा किया गया कि आरटीआई के अनुसार अप्रैल 2015 से दिसंबर 2016 के दौरान नासिक यूनिट ने 500 रुपये के नए 375.450 मिलियन नोट छापे थे। लेकिन आरबीआई के पास लेकिन 345 मिलियन नोट का ही रिकॉर्ड है। उस वक्त रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन थे।
लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक आधिकारिक वक्तव्य जारी कर इस दावे को ख़ारिज करते हुए 500 रूपये के नोट से जुड़े सभी प्रकार की अफवाहों पर विराम लगा दिया है।
RTI की हुई गलत व्याख्या: RBI
आरबीआई ने अपने जवाब में कहा कि प्रेस से छापे गए नोट और आरबीआई को आपूर्ति किए गए बैंक नोटों के मिलान के लिए एक मजबूत व्यवस्था है।
RBI के अनुसार जो नोट प्रिंटिंग प्रेस में छपते हैं और RBI को मिलते हैं, उनका पूरी तरह से मिलान किया जाता है। बैंक नोट्स की छपाई, उसके स्टोरेज और वितरण की प्रोटोकॉल के तहत पूरी देखरेख की जाती है। केंद्रीय बैंक ने साफ-साफ कहा है कि उसके पास सभी नोटों का पूरा हिसाब है। इसलिए लोगों से अनुरोध है कि ऐसे मामले में रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर प्रकाशित होने वाली सूचनाओं पर ही भरोसा करें।
आरटीआई एक्टिविस्ट पहले भी कर चुका है ऐसा दावा
यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी मनोरंजन रॉय ने आरबीआई और नोटों के डेटा में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। तब यह आंकड़े यूपीए सरकार के कार्यकाल से लिए गए थे।
2018 की रिपोर्ट के अनुसार, रॉय ने वर्ष 2000-2011 के लिए आरटीआई से डेटा प्राप्त किया और दावा किया कि 23,000 करोड़ से अधिक रूपये गायब हो गए। हालाँकि इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने रॉय की याचिका खारिज कर दी थी। हैरानी की बात ये थी कि तब इस पूरे प्रकरण को एनडीटीवी ने नोटबंदी से जोड़ने का प्रयास किया था।
एनडीटीवी ने रॉय के वकील के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा कि याचिका के निपटारे के 75 दिनों के भीतर ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की।
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