रूस से व्यापार को रुपए-रूबल में स्थापित करने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक अब आस-पास के देशों से व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भरता खत्म करने के लिए काम कर रहा है। रिजर्व बैंक लगातार दक्षिणी एशिया में सहयोगी देशों के बीच व्यापार सुगम बनाने और क्षेत्रीय समृद्धि लाने का प्रयास कर रहा है।
रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने देश की राजधानी नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अपने वक्तव्य में कहा कि भारत लगातार रुपए में व्यापार, भुगतान माध्यम यूपीआई और डिजिटल करेंसी आदि को लेकर पड़ोसी देशों के साथ सहयोग के लिए तैयार है।
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गवर्नर शक्तिकांत दास IMF द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘दक्षिण एशिया की वर्तमान आर्थिक चुनौतियां और नीति प्राथमिकता (South Asia’s Current Macroeconomic Challenges and Policy Priorities) में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने क्षेत्र के आपसी सहयोग से होने वाले फायदे भी गिनाए।
दास ने कहा कि लगातार बढ़ता हुआ अंतर-क्षेत्रीय व्यापार इस क्षेत्र में नौकरी और समृद्धि की नई संभावनाएं ला सकता है। उन्होंने एक देश से दूसरे देश भेजे जाने वाले पैसों की प्रक्रिया को यूपीआई के माध्यम से आसान करने की बात भी कही।
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इससे पहले भारत, रूस और ईरान से रुपए में व्यापार करने की व्यवस्था लागू कर चुका है और लगातार यूएई, सऊदी अरब समेत कई अन्य देशों से बातचीत में लगा हुआ है। वर्तमान में दुनिया का अधिकांश व्यापार डॉलर में होता है।
इस साल महंगाई को रोकने के लिए अमेरिका के फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में कई बार वृद्धि की गई, जिससे डॉलर के भाव पूरी दुनिया में आश्चर्यजनक रूप से बढ़े हैं और इससे भारत के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर भी प्रभाव पड़ा है। ऐसे में भारत लगातार कई देशों से रुपए और स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने की इच्छा जता रहा है और इसके लिए बड़े स्तर पर प्रयास भी हो रहे हैं।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में पाकिस्तान और श्रीलंका के कर्जों के बोझ की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया के देशों में बाहरी कर्जों के कारण लगातार आर्थिक अस्थिरता का खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में कोरोना महामारी से पूर्व दक्षिण एशिया पर कर्ज $8.2 ट्रिलियन था जो की वर्ष 2021 में $9.3 ट्रिलियन हो गया।
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दक्षिण एशिया के देश बड़े स्तर पर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। कोयले, कच्चे तेल और गैस पर निर्भरता इस क्षेत्र को ऊर्जा सुरक्षा के मामले में अस्थिर बनाती है। ऐसे में अगर भारत और बांग्लादेश के अतिरिक्त अन्य देश भी एकसाथ मिलकर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करें तो इस क्षेत्र में बड़े मुकाम हासिल किए जा सकते हैं।