भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार घटती वैश्विक मांग के कारण भारत का चालू खाता घाटा बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में इसके अनुमान से कम रहने की उम्मीद है, जो एक अच्छा संकेत है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि कच्चे तेल का बढ़ता आयात देश के चालू खाता घाटा के बढ़ने के पीछे का एक बड़ा कारण है। चालू वित्त वर्ष में देश का चालू खाता घाटा GDP का 3.1% रहने का अनुमान है।
आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial stability report) शीर्षक से जारी रिपोर्ट में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में घटती मांग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने की बात कही गई है। हालाँकि रिपोर्ट यह भी बताती है कि मजबूत आर्थिक ढाँचे के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को ख़ास नुकसान नहीं होगा।
अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ने के कारण इस वित्त वर्ष में रुपए के मूल्य में भी गिरावट आई है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर पड़ा है। इसके अतिरिक्त यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण कच्चे तेल के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार के घटने का कारण है।
वैश्विक अस्थिरता, मांग में गिरावट है चालू खाता घाटा बढ़ने की वजह
RBI की रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के अप्रैल-नवम्बर माह के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात का चालू खाता घाटा कुल 198 बिलियन डॉलर पहुँच गया। पिछले वर्ष इसी दौरान यह 115 बिलियन डॉलर था। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाता घाटा GDP का 4.4% रहा, इससे पहली तिमाही में 2.2% था।
वित्त वर्ष 2021-22 में यह आँकड़ा 1.2% था। पिछले वित्त वर्ष में यह आँकड़ा इसलिए भी कम था क्योंकि तब आपूर्ति की समस्या थी और चीन समेत कई अर्थव्यवस्थाएं बंद थी। ऐसे में भारत का अधिकाँश आयात सामान्य नहीं रह सका था।
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इसके अतिरिक्त व्यापार घाटे में सबसे बड़ा योगदान देने वाले कच्चे तेल की भी कीमतें नीचे थीं जो कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रिकॉर्ड स्तर पर चली गईं। इसके उलट चालू वित्त वर्ष में चालू खाता घाटा बढ़ने के पीछे का कारण यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने के कारण देश में आयातित वस्तुओं की मांग में वृद्धि हुई है।
यही कारण है कि बाहर से आने वाली वस्तुओं की मांग में तेजी आई। वहीं भारत के अतिरिक्त अन्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करने के कारण भारत के निर्यात में वृद्धि की दर आशा के अनुरूप नहीं रहीं। हालाँकि, भारत ने फिर भी बड़े पैमाने पर आयात किया है।
कच्चा तेल बन रहा व्यापार घाटे का बड़ा कारक
कच्चे तेल के मामले में हमेशा से विदेशी उत्पादन पर निर्भरता देश के बढ़ रहे व्यापार घाटे का प्रमुख कारण रहा है। देश अपनी आवश्यकता का 80% से अधिक तेल सऊदी अरब, इराक, रूस आदि देशों से आयात करता है। ऐसे में भारत के विदेशी मुद्रा का बड़ा बिल कच्चे तेल के आयात से आता है।
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रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे तेल की वैश्विक मांग में भारत का हिस्सा वर्ष 2000 में 3% था जो 2010 तक 3.8% हो गया था। वहीं 2021 में यह बढ़कर 5.2% हो गया है। वर्ष 2022 में विश्व की कच्चे तेल की मांग में 2 मिलियन बैरल प्रति दिन की बढ़ोतरी हुई। ध्यान देने वाली बात है यह है कि इस बढ़ोतरी में पांचवा हिस्सा भारत का था।
तेल की बढ़ती मांग के कारण देश का तेल बिल बढ़ा, जिससे चालू खाता घाटा और बढ़ा है। अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितम्बर) के बीच का देश कच्चे तेल पर 90 बिलियन डॉलर का खर्चा हुआ है। यह 76% की बढ़ोतरी है। इस बीच कच्चे तेल आयात होने वाली मात्रा 15% बढ़ कर 116.6 मिलियन टन हो गई।
इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन विभाग पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस विंग के आँकड़ों के अनुसार, देश में नवम्बर माह में कुल 18.83 मिलियन टन ऊर्जा उत्पादों की खपत हुई । जिसमें सर्वाधिक खर्च डीजल का हुआ।
डॉलर की मजबूती से गिरा रुपया, किन्तु स्थिर
रूस यूक्रेन युद्ध, कोरोना महामारी के प्रभाव और अन्य समस्याओं के कारण पूरी दुनिया में इस वर्ष महंगाई तेजी से बढ़ी है। इस महंगाई को रोकने के लिए अमेरिका की वित्त प्रबंधन संस्था फेडरल रिजर्व (फेड) ने ब्याज दरों को तेजी से बढ़ाया। इस कारण पूरी दुनिया के निवेशकों ने अपना पैसा अमेरिका में लगाने के लिए अन्य सभी बाजारों से पैसा तेजी से निकाला।
इस कारण डॉलर की मांग में तेजी देखी गई और उसका मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेजी बढ़ा। रुपए के अवमूल्यन के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। अन्य वैश्विक मुद्राओं को अगर देखा जाए तो उनमें इस वर्ष सितम्बर माह तक बड़ी गिरावट हुई है। रुपया उन सब में मजबूत रहा है।
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