आज सुबह ही एक और वीडियो आया है जिसमें फिर से चचा रवीश हमेशा की तरह मुद्दों को नजरअंदाज करते हुए नज़र तो आए लेकिन गोदी मीडिया गोदी सेठ की रट लगाना नहीं भूले।
जहां सुबह सुबह रविश चचा सेठ जी के बारे में और बिज़नेस के बारे में ज्ञान दे रहे थे, वहीं उनके चेले और ट्रोल जिनमें कुछ मेरे मित्र भी शामिल हैं सुबह सुबह मुझे लोल सलाम, माफ़ कीजिएगा लाल सलाम भी करते हैं और मुझे रोज़ की तरह आज भी शर्मिंदगी में डालने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
पिछला वीडियो ट्विटर पर थोड़ा चल गया तो रवीश चचा के स्वयंभू छुटभय्ये ट्रोल मेरे पीछे लग गए, जो कि कोई नई बात नहीं है। लेकिन कमाल ये भी है कि सारी दुनिया से सवाल पूछने वाले रवीश कुमार से सवाल नहीं पूछे जा सकते? रवीश कुमार की शान में गुस्ताखी का भय इनके डिजिटल सेवक दिखाते हैं।
क्या रवीश कुमार जानते हैं कि सोशल मीडिया पर उनके समर्थक सवाल पूछने वालों की Digital लिंचिंग करते हैं। खैर, मै रवीश कुमार के पीछे नहीं पड़ी हूँ, ना मैं उनकी पत्रकारिता पे सवाल उठा रही हूँ, उल्टा, मैंने जैसे कहा – चचा तो मुझे मोटीवेट करते हैं कि मैं अपने कम्युनिस्ट मित्रों की सूजी हुई आँखें खोलूं और उन्हें ऐसी वीडियो से थोड़ा सा ज्ञान दे पाऊँ।
आज के वीडियो में रवीश कुमार ने एक मज़ेदार बात और बोली है, उनका कहना है कि गोदी मीडिया में प्रतियोगिता चल रही है कि कौन सबसे ख़राब माल तैयार करता है। तो रवीश जी आप क्यों इस कंपीटिशन में रोज़ सुबह सुबह कूद जाते हैं? क्यों आप अभिसार और आरफा जैसों के बीच की इस लड़ाई में ये कहते हुए कूद पड़े कि ‘मुझे सब पता है मैं सब जानता हूँ’।
तो चचा, आप भी अभी तक प्रनॉय रॉय की गोदी में, मेरा मतलब है कि NDTV की गोदी में खेल रहे थे। और हमने थोड़ा आपसे प्रश्न पूछे तो आप हमे भी गोदी मीडिया बोलने लगे। अब आप ही बताइए सर, लप्रेक वाले समर और मानसी आपकी वीडियोज़ देख कर बदलाव का रास्ता कैसे खोजेंगे ताकि वो भी कहीं बदलाव की राह देख सकें।
रविश जी आपने गोदी मीडिया पार्ट 2 की बात की, परन्तु पार्ट 1, जिसके मुख्य किरदार आप ही थे अब रीमेक में भी क्या आप ही देखने को मिलेंगे?
वेस्ट से प्रभावित रविश जी को हर चीज़ से दिक्कत है, उन्होंने अब खुद का स्टार्टअप खोल लिया है, अब वो भी बिज़नेस की रेस में जल्द ही शार्क टैंक में अपने इंस्वेस्टर्स ढूंढते नज़र आएँगे, इसी दौड़ में कुछ बिज़नेस जैसे ‘वायर द लॉयर’, ‘न्यूज़ लौंडरी द Fraudry’ की प्रशंसा करते चचा ये क्यों भूल जाते हैं कि पब्लिक अंधी, गूंगी और बहरी नहीं है।
आज सुबह सुबह के वीडियो में रवीश जी आए और हमेशा की तरह आज भी उन्होंने नया कुछ नहीं कहा। आपातकाल और लोकतंत्र की वही दुहाइयाँ दी गई। भारत में पत्रकारिता ख़त्म तो इमरजेंसी के समय भी ख़तम की गई थी रवीश जी, लेकिन आपके लिए लोकतंत्र ख़त्म हो गया है इसलिए शायद आप इतनी सहजता से पत्रकारिता कर पा रहे हैं, बस लोकतंत्र की यही खासियत है कि आप बात फुसफुसाने की कर कर रहे हैं, लेकिन चीख चीख कर।
आपने भी यूट्यूब चैनल खोल ही लिया है, लेकिन आप भी गोदी मीडिया के अलावा कुछ और करते दिखाए नहीं दे रहे। आपकी समस्या असल में ब्लैक गोदी और व्हाइट गोदी की है।
जब भारतीयों की बात आती है तब आपको गोदी मीडिया से समस्या है, लेकिन जब सफ़ेद चमड़ी वाले लोगों से कुछ फ़ायदा पहुँचे, तो आप के अंदर का चंपक कोट और टाई पहनकर न्यूयॉर्क में वी-ब्लोगिंग करता नज़र आता है या फिर उनके पैसे से बनी फ़िल्म में अदाकारी कर मदारियों की वाहवाही बटोरता है।
अब जब बोला गया है तो संदर्भ भी बता दूँ, अभी कुछ दिन पहले चचा अमेरिका में अपने पर बनी फ़िल्म के प्रोमोशन के लिए गए थे। यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि चचा पर बनी फ़िल्म की फ़ंडिंग के तार फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े हैं। हमने इसका सवाल भी पूछा था, कि आख़िर Ford Foundation का आपकी फ़िल्म से क्या संबंध है लेकिन चचा का जवाब आज तक नहीं आया। क्यों चाचा फोर्ड फाउंडेशन को पैसे देने वाला सेठ क्या सफ़ेद गोदी सेठ नहीं है?
आपको शायद मालूम ना हो जो आपको मैग्सेसे अवार्ड मिला था, उसका पैसा RockFeller Brothers फण्ड से आता है, और रॉकफ़िलर परिवार के सफ़ेद गोदी सेठ का पैसा मंगल ग्रह से छपकर नहीं आता। ऐसा क्यों है, कि जब अपने फ़ायदे के लिए सफ़ेद गोदी सेठ कुछ करे तो बढ़िया, और अगर कोई देसी सेठ का कहीं नाम भी आ जाए तो वो गोदी सेठ हो जाता है, ये कैसा विरोधाभास है, ये कैसी पत्रकारिता है?
आप कभी ब्रजेश पांडेय पर बात नहीं करते। आपने यह नहीं बताया कि जिस NDTV को आपने अभी अभी छोड़ा है, उसके Founder प्रनॉय रॉय ने दूरदर्शन में क्या किया था या उनके पीछे CBI क्यों पड़ी हैं? आप NDTV की गोदी में बैठ कर ये सब देखते रहे और जनता को कठिन सवाल की घुट्टी में मशगूल रखते हुए मोटी पगार लेते रहे। अडानी तो आपके लिए गोदी सेठ हो गया लेकिन जब पुराने मालिक के पैसे पर रॉय आपको मोटी सेलरी दे रहा था, तब आपकी क्रांति की पूँछ नीचे हो गई थी?
आपने आज अपने वीडियो में कहा कि न्यूज़ चैनल में लोग झगड़ते हैं और लोग देखते हैं, लेकिन आपका अखाड़ा सबसे सही सर्कस है, यानी यहाँ आप कैमरा और माइक खोलते हैं और जमकर हर किसी से लड़ते हैं , वो भी अकेले, पूरा मोनोलॉग, इकतरफ़ा संवाद। लोकतंत्र की तो आपको आदत है भी नहीं।
ये कहना गलत नहीं होगा लेकिन जिस डाटा से अभी आप हाई स्पीड में हमे नज़र आ रहे हैं, वही डाटा इस्तेमाल करते हुए आपके सारे ही क्रांतिकारी पत्रकार बनते नज़र आये और बात रही आज़ाद पत्रकारिता की तो आज़ाद पत्रकारों के लिए तो 2014 से उन्हें पत्रकारिता में आज़ादी मिली।
वैसे एक बात बताओ , जब अपने आज सुबह वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया था तो रिलायंस जियो का कौनसा प्लान यूज किया था? मने बस इसलिए पूछ रहे हैं कि वो भी तो किसी गोदी सेठ का ही है, एक काम करो चचा अपने सफ़ेद गोदी सेठों से बोलो और अपने लिया अमेरिका से कोई इंटरनेट का इंतज़ाम डेरेक्ट करवा लो।
ऐसा अच्छा नहीं लगता कि जिस अंबानी से आपको इतनी नफ़रत है उसी के इंटरनेट से 1 GBPS वाला प्लान ले कर उसे ही गाली भी देते हो। आपको चे ग्वेरा, मार्क्स, लेनिन सबकी क़सम।
आज सुबह जिन जिनका नाम आपने लिया है- चाहे वो वायर हो, न्यूज़लौंड्री हो, स्क्रोल हो या कारवाँ हो, ये सभी आज तक कहाँ थे? बोल के लब आज़ाद हैं तेरे, ये इस से पहले क्यों नहीं कुछ बोल पाए थे? इन्हें और आप सभी को तो मोदी जी को शुक्रिया कहना चाहिये था जिन्हें रोज़ गाली दे कर इन सभी का करियर चमका है।
आपकी समस्या है कि अंबानी और अड़ानी को सारे प्रोजेक्ट दिये जाते हैं, तो चचा आपको नवी मुंबई, जामनगर भेज दें क्या, ये बोलकर कि अरे अंबानी अपनी तेल खोदने वाली मशीन हटाओ इधर से यहाँ रवीश चचा फावड़े और कुदाल से तेल खोदने वाले हैं, या आज यहाँ तेल भारी मशीन नहीं बल्कि वायर का सिद्धार्थ वरदराजन खोदेगा?
बात भारत की होती है लेकिन उदाहरण चचा हमेशा यूरोप से ले कर आते हैं, हिटलर का आज फिर उन्होंने अपने वीडियो में ज़िक्र किया है, मज़े की बात यही है कि अगर सच में आज हिटलर होता तो, और अगर सच में भारत में फ़ासिस्म आ जाए तो यही सब स्टूडियो क्रांतिकारी कहाँ होते।
बात यही है, ये भी जानते हैं कि ये जितने मर्ज़ी आरोप लगा सकते हैं, जिसे मर्ज़ी उस पर हिट जॉब कर सकते हैं… चिल्ला चिल्ला कर बताया जा रहा है कि इस देश में उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा और आजकल बारबार अमेरिका के चक्कर लगा कर एक ख़ास तरह के नरेटिव पर लगातार काम किया जा रहा है।