बहती हवा सा था वो, यार हमारा था वो कहाँ गया उसे ढूँढो। ये कप्तान रवीश कुमार के वो सपोर्ट स्टाफ़ गा रहे हैं जिन्हें पता है कि रवीश को ढूँढने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि रवीश कहाँ गए हैं। पर मौक़ा थोड़ा सा रूमानी होने का है सो हो रहे हैं।
कप्तान का सन्यास तय था पर लोग हैं कि भावुक हो ले रहे हैं। शायद इसलिए कि कप्तान रवीश जैसा कप्तान मिलने में समय लगेगा। वर्षों की साधना के बाद कोई कप्तान रवीश कप्तान बनता है। सपोर्ट स्टाफ़ को कष्ट इस बात का है कि ऐसा कप्तान न जाने फिर कब मिले जो चुटकी में शाहरुख़ पठान को अनुराग मिश्रा बना देता है।
ऐसे करतब करने के लिए वर्षों तक साम्यवाद, समाजवाद, उदारवाद, नव उदारवाद और विक्टिमवाद की भट्टी में गलकर रवीश बनना पड़ता है।
पर सपोर्ट स्टाफ़ में बैठे ये घुटे हुए लोग जानते हैं कि कोई भी खिलाड़ी कप्तान एक बार में सब जगह से सन्यास नहीं लेता। टेस्ट छोड़ दिया तो वनडे खेलेगा। वनडे छोड़ दिया तो फ़र्स्ट क्लास खेलेगा। वो भी छोड़ दिया तो कोचिंग में आ जाएगा और मन और आगे खेलने का रहा तो सिलेक्टर बन जाएगा।
ये समझ पाना मुश्किल है कि आख़िर कल तक रात होते ही फ़ेसबुक पर मिर्जा ग़ालिब बन जाने वाले ये लोग आख़िर रवीश कुमार के लिए क्यों मिर्ज़ा ग़ालिब बने हुए हैं?
कुछ लोग कह रहे हैं कि रवीश कुमार का सन्यास भावुक करने वाला है। लेकिन वो आपको ये याद नहीं दिला रहे हैं कि कप्तान ने ही दिल्ली दंगों के दौरान शाहरुख़ ख़ान को अनुराग मिश्रा बता दिया था, पुलवामा आतंकी हमले की खबर आई भी नहीं थी तब तक इसी चचा रवीश ने बलिदानी सैनिकों के शवों तक पर एजेंडा चलाया था, 21 फ़रवरी की इस पोस्ट को वो अपने फेसबुक पेज से डिलीट भी कर चुके हैं। कारवाँ जैसी ज़हरीली मैगज़ीन के नाम पर NSA अजीत डोभाल के बेटों को D कंपनी नाम दिया। रवीश कुमार की उपलब्धियों की लाइन लंबी है, ऐसे ही नहीं मैग्सेसे अवार्ड मिल जाता है।
दरअसल, भावुक होने से पहले हमें आज खुद से कुछ सवाल पूछने चाहिए। पिछले 10 से 15 साल में रवीश कुमार ने एक रिपोर्टर के तौर पर कौन सी न्यूज ‘ब्रेक’ की है? एंकरिंग के क्षेत्र में उन्होंने कौन से नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं? न्यूज का विश्लेषण करने की उनमें क्या क्षमता है? झूठ बोलकर प्रॉपगेंडा फैलाने के सिवाय पत्रकारिता में रवीश की क्या उपलब्धि है? ख़ासकर 2014 से तो चचा इकतरफ़ा निष्पक्ष चल रहे हैं क्योंकि दूसरा पक्ष देखना उन्होंने उसी दिन से बंद कर लिया था जिस दिन जानता ने 2019 में कांग्रेस की सरकार के फ़्यूज कंडक्टर निकाल लिए थे।
‘D कंपनी’ जैसे नाम ईजाद करने वाले बड़े पाण्डेय जी ने कभी अपने भाई के कारोबार पर बात नहीं की। प्रणय रॉय सर से पाँव तक CBI और फ़र्जीवाडों से डूबे रहे लेकिन इस क्रांतिकारी ने कभी कठिन सवाल नहीं पूछा। दिलों की गहराई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कठिन सवाल पूछने की चॉइस रखने वाले रवीश कुमार ने साल 2019 के चुनाव से पहले समाजवादी हवाई जहाज़ तक की मौज ले ली लेकिन दूसरों को गोदी मीडिया बोलने से वो नहीं रुके।
चचा रवीश के अनुसार सारी मीडिया बिकी हुई है, सब किसी की गोदी में बैठे हुए हैं लेकिन फोर्ड फाउंडेशन के विदेशी सिस्टम से खुद पर फिल्म बनवाते हैं। अमेरिका में जाते ही रवीश कुमार वीब्लॉगर बन जाते हैं, विदेशी धरती पर उनके चेहरे पर चमका ही अलग थी, आख़िरी बार उन्हें इतना खुश तब देखा गया था जब अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के CM बने थे। अमेरिका में अपना सब कुछ सेट करने वाले रवीश कुमार देश के हर एक काम को कूड़ा बताते हैं। यहाँ तक कि NDTV गोदी मीडिया है या था, ये भी उन्होंने तब बताया जब NDTV से उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया।
अपने इस्तीफ़े की खबर वाले वीडियो में रवीश कुमार ने वो सब कुछ कहा है जो रवीश कुमार सोचते हैं। जर्नलिज्म के स्टूडेंट ये ज़रूर देखें, रवीश कुमार और रवीश कुमारवाद दो अलग चीजें हो गई हैं, जैसे कुछ लोग सोशल मीडिया पर सुकरात और असल जीवन में KRK होते हैं, वैसे ही रवीश कुमार और रवीश कुमारियत भी दो अलग चीजें हैं।
आज लोग भावुक हो कर दलील दे रहे हैं कि यही रवीश कुमार जब ग्राउंड रिपोर्ट करता था तब कांग्रेस सरकार थी, अब इन्हें कोई ये बताए कि भाई रवीश कुमार ग्राउंड पर आख़िरी बार ज़मीन पर थे ही तब जब तक कांग्रेस कि सरकार थी, 2014 से तो चचा ने अपने स्टूडियो से ही बिग बैंग की घटना से ले कर तैमूर के डायपर तक की कहानी पर ज्ञान गंगा बहाई है। 2014 से पहले की जिस कापशेरा बॉर्डर की वीडियो सोशल मीडिया पर लोग शेयर कर रहे हैं रवीश कुमार उसी लोकेशन पर आज क्यों नहीं जाते हैं? लोगों का जीवन बदला है लेकिन रवीश अब लोगों के बीच नहीं होते, कैमरा और स्टूडियो में ही उन्हें फ़िरदौस नज़र आने लगा है।
साल 2019 से तो एकदम ही कमाल हो गया, क्रांतिकारी रवीश कुमार ने अपने घर में ही स्टूडियो बना लिया। घर से बाहर आख़िरी बार वो तब देखे गए थे जब वो कानों में ईयरफ़ोन लगा कर अपनी कार में देखे गए थे। फ़ेसबुक पर विक्टम कार्ड खेलते हुए रवीश ने दलील दी थी कि वो सुरक्षा कारणों से ऐसा करते हैं।
पूरी अदब से आतंकी यासिन मलिक का नाम लेने वाले रवीश कुमार के इस्तीफ़े पर सहानुभूति किस बात की है।
आज से हज़ार साल बाद भी अगर ग्रेटर कैलाश की खुदाई की जाएगी तो वहाँ या तो मुग़लों के बिरियानी वाले पतीले मिलेंगे या फिर एनडीटीवी के एक गोदी से दूसरी गोदी में बैठने उतरने के क़िस्से।
NDTV की हटती धूल
अब एनडीटीवी से धूल हटने की बारी आ गई है। ये धूल एनडीटीवी की स्थापना के टाइम से ही जमनी शुरू हो गई थी जब इसने चुन चुन कर ऐसे क्रांतिकारियों को इस चैनल से जोड़ा जिनके या तो कांग्रेस से सीधे संबंध थे, या फिर वो आज़ाद भारत में भी आज़ादी माँग रहे थे या फिर वो किसी ना किसी तरह से नेहरू के नमक में डूबे हुए थे।
अगर आप इस खलबली पर नज़र डालेंगे तो आपको एक से बढ़कर एक नाम मिलते हैं और इनके आपसी संबंध भी मिल जाते हैं। इन क्रांतिकारियों के नाम में अरुंधती रॉय से ले कर बृंदा करात तक शामिल हैं। दूरदर्शन में घोटाले के आरोप झेलने वाले प्रणय रॉय की चचेरी बहन है अरुंधति रॉय, जो टुकड़े टुकड़े गिरोह की गुरु रही हैं।
जिन राधिका रॉय से प्रणय रॉय ने शादी की वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नेता बृंदा करात की बहन हैं। इन बृंदा करात की शादी सीनियर मार्क्सवादी नेता और पार्टी के पूर्व महासचिव प्रकाश करात से हुई।
इसमें शुरू से ले कर अब तक ऐसे नाम शामिल रहे हैं जो या तो सीनियर कांग्रेसी नेताओं के संबंधी रहे या फिर वामपंथी ईकोसिस्टम से किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए थे।
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की पोटेंशियल या ऑलमोस्ट प्रोफ़ेसर निधि राजदान NDTV जॉइन किया क्योंकि उसके पिता महाराज कृष्ण राजदान भारत की सरकारी न्यूज एजेन्सी Press trust of India के एडिटर इन चीफ रह चुके हैं। हालाँकि इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि निधि राजदान का अपना कोई टैलेंट नहीं रहा होगा।
हर रोज़ स्टूडियो से पत्रकारिता पर हमले की दुहाई देने वाले NDTV के लगभग सभी पत्रकार कम से कम अपनी पत्रकारिता के कारण तो पत्रकार नहीं बने थे, इनमें से अधिकांश के डैडी किसी नामी और रुतबे वाली जगह पर थे। एक नाम है विष्णु सोम का, ये हिमाचल सोम के बेटे हैं, जो इटली में भारत के राजदूत रह चुके हैं।
NDTV की सारा जेकोब, जो मोंटेक सिंह अहलूवालिया की बहू हैं। ये वही मोंटेक सिंह हैं जो 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे हैं।
NDTV में एक एंकरनी भी हैं जिनका नाम है गार्गी रावत, इनकी शादी या माफ़ी चाहूँगा इनका निकाह जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक मुख़्तार अंसारी के पोते से हुई है जिसका नाम यूसुफ़ अंसारी है।
और इन सभी से ऊपर एक नाम है अमृता राय का जो कि कांग्रेस के क़द्दावर नेता और हिंदू आतंकवाद के नैरेटिव को चलाने वाले और टंच माल फ़ेम दिग्विजय सिंह की पत्नी बनीं।
तो सारी दुनिया को गोदी मीडिया के टैग देने वाला यह NDTV कब किसकी गोदी में और कहाँ कहाँ नहीं बैठे यह कहानी सार्वजनिक हैं ही।
असल में रवीश कुमार ख़ुद को एनडीटीवी का जर्नलिस्ट मान तो बैठे थे लेकिन असली आत्मा उनकी यूट्यूबर की ही थी, जब वो चेहरे पर लेप लगाए दो कार्टूनों के साथ स्टूडियो में आए, या जब वो बबलू बबलू वाली कविताएँ पढ़ा करते थे।
रवीश जी, आपकी पत्रकारिता में विश्वास करने वाले युवा का हाल मुहब्बत में धोखा खाए हुए लड़के जैसा हो चुका है, वो चाहकर भी अब मोहब्बत करने को राजी नहीं है। उसे अब किसी भी तरह के लिबास में रंगी गई पत्रकारिता और मीडिया में यकीन नहीं रह गया है। वो बदहवास हालात में न्यूज़ डिबेट्स से लेकर आपके लप्रेक, कारवाँ और वायर तक में सत्य ढूँढ रहा है, लेकिन सत्य है कि मिलता नहीं। उसका मन प्रोपेगैंडों से आतंकित है, उसका मानना है कि अगर सस्ती लोकप्रियता के लिए रवीश कुमार प्रोपगैंडा के लिए काम करते हैं, तो फिर किसी और में किस तरह यक़ीन किया जाए?
जाते जाते बस इतना ही कि आज के दिन पर आपको पढ़ने-देखने वालों के दिमाग में बस प्रोपेगैंडा और दिल में ग़ालिब बज रहा है, “ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम, कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले।”