‘ऐसा आसान नहीं लहू रोना, दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ’। कप्तान रवीश कुमार के लिए चचा मिर्ज़ा ग़ालिब यही पंक्तियाँ लिखकर चले गए। अब रवीश कुमार भी चले गए हैं तो मिर्ज़ा ग़ालिब याद आए हैं।
आख़िरकार बहुत इंतज़ार के बाद एनडीटीवी के क्रांतिकारी एवं सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कुमार ने एनडीटीवी से अपने इस्तीफ़े की घोषणा कर दी है। बहुत इंतज़ार था मगर क्रांतिकारी कप्तान ने इस फ़ैसले के लिए प्रणय रॉय के इस्तीफ़े का इंतज़ार किया। अब एक हंगामा देखने को मिल रहा है कि रवीश कुमार ने पत्रकारिता की जो इबारत लिखी है वह दुनिया जहां और दौर ए जहाँ के लिए मुश्किल साबित होगी। मुख्यधारा की मीडिया और कुछ दीगर नाम इस बहस में तमाम क़िस्म के गद्य लिख रहे हैं। सवाल यह है कि इस उम्र में दिये गये एक इस्तीफ़े पर इतनी बहस किस कारण?
जब आप किसी संस्थान को छोड़कर कहीं और जाते हैं तो वहाँ सफल होंगे या नहीं यह आपकी मार्केट वैल्यू पर निर्भर करता है। आज रवीश कुमार की मार्केट वैल्यू क्या है?
भावुक होने से पहले हमें खुद से कुछ सवाल पूछने चाहिए। पिछले 10 से 15 साल में रवीश कुमार ने एक रिपोर्टर के तौर पर कौन सी न्यूज ‘ब्रेक’ की है? एंकरिंग के क्षेत्र में उन्होंने कौन से नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं? न्यूज का विश्लेषण करने की उनमें क्या क्षमता है? झूठ बोलकर प्रॉपगेंडा फैलाने के सिवाय पत्रकारिता में रवीश की क्या उपलब्धि है?
विचार करने योग्य है कि पचास वर्ष की अवस्था को छूते ही यह पत्रकार किसी मीडिया संस्थान को कितना फायदा दिला सकते हैं? रवीश कुमार आज से 10-12 साल पहले पत्रकारिता के हीरो थे। वह आज के हीरो नहीं हैं।
आज लोग मीडिया में स्थापित हो चुके कई और नामों को सुनना पसंद करते हैं और इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वह रवीश कुमार की फैलाई नकारात्मकता का विकल्प तलाश चुके हैं। रवीश कुमार का सूर्य अस्त हो चुका है। यूट्यूब पर इनके दस मिलियन फॉलोअर हो भी जाएँ, तब भी इनके भीतर कोई नया नैरेटिव तय करने की क्षमता नहीं है। और यदि है भी तो उन पर हावी नकारात्मकता उनसे वह करवाने नहीं दे रही।
सवाल एक यह भी है कि रवीश कुमार अब आख़िर कहाँ जाएँगे? अँग्रेजी बोलने या लिखने में वह कप्तान उतना पारंगत नहीं है और हिन्दी में एनडीटीवी जैसा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कोई और चैनल नहीं है, जो बिना शर्त इन्हें नौकरी पर रखने को तैयार होगा।
कुल मिलाकर संभावना यह हैं कि रवीश कुमार, आरफा खानम शेरवानी या राणा अयूब जैसे हो जाएँगे, जिन्हें लोग केवल गाली देने के लिए याद करते हैं। आज इन लोगों की जो स्थिति है, उसे देखकर यह मत समझिएगा कि इनका भविष्य बहुत उज्ज्वल है। इनकी रोटी केवल इसलिए चल रही है, क्योंकि ये एक एजेंडा को सर्व करते हैं। एजेंडा पत्रकारिता बहुत दिनों तक चलने वाली चीज नहीं होती।
रवीश कुमार की मार्केट वैल्यू उतनी ही है जितना राइट विंग के लोगों ने उन्हें गाली देकर बनाई है। एनडीटीवी से बाहर निकलने के बाद रवीश के सामने कई चुनौतियाँ होंगी।