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Home » ‘आपदा में अवसर’ NDTV पर सटीक बैठ रही कहावत
प्रमुख खबर

‘आपदा में अवसर’ NDTV पर सटीक बैठ रही कहावत

Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalDecember 1, 2022No Comments4 Mins Read
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एनडीटीवी
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आज से ठीक दो दिन पहले गौतम अडानी ने कहा था कि NDTV को टेकओवर करना उनका कर्त्तव्य है। इसके एक दिन बाद यानी बीते कल बुधवार को अडानी द्वारा एनडीटीवी के बाकी बचे शेयर्स को खरीदने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई।

अडानी समूह का यह प्रस्ताव 5 दिसम्बर की डेडलाइन के साथ खुला रखने की घोषणा की गई थी। हालाँकि, अन्तिम समय में एनडीटीवी बोर्ड ने इसे स्वीकार कर लिया।

इससे पहले 23 अगस्त को एनडीटीवी की 29.18% हिस्सेदारी अडानी समूह के पास आने के बाद ही चर्चा जोरों पर थी कि क्या ये लोग अडानी की छाया तले उसी की जड़ों को काटते रहेंगे?

पिछले तीन महीनों से इसके हर पहलू के ऊपर विचार किया गया होगा। योजनाएँ बनाई गई होंगी। कैसे और क्या कहकर एनडीटीवी अडानी को सौंप दिया जाए, जिनके खिलाफ ही लिख-बोल कर सालों से टीआरपी बटोरी हो।

यह कार्य भी प्राइम टाइम शो की तरह रवीश को दिया गया। पिछले एक दशक में एनडीटीवी की घटती विश्वसनीयता और रवीश की पत्रकारिता में गिरती नैतिकता दोनों ही समानुपाती  रहे हैं।

रवीश का सन्देश

रवीश का आज का ट्विटर संदेश देख हम भी यू-ट्यूब पर पहुँच गए, जिसे रवीश ने अपना नया पता बताया है। सोचा था, रवीश कुमार भोकर फाड़के रोते हुए प्रसंशकों की पीड़ा समझकर थोड़ा गम्भीर और भावुक नजर आएँगे। मारे चिंता के माथे पर शिकन होगी लेकिन ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।

अमेरिका के परफेक्ट क्लाइमेट में रवीश का रंग और भी साफ हो गया है। भारत में हर एक चुनाव में मोदी-हिंदुत्व की जीत के बाद एनडीटीवी पर बैठ मनहूसियत फैलाते हुए और उम्र के साथ इकोसिस्टम के बढ़ते बोझ से चेहरे पर निकले झुर्रियों को रवीश ने वहाँ महीने भर में मात दे दी। बाल भी सलीके से सजाए हुए दिख रहे हैं। साथ ही मंद-मंद मुस्कुरा भी रहे हैं।

आखिर क्यों ना मुस्कुराएँ, क्या बच गया था एनडीटीवी में? अब यूट्यूब पर बैठकर और भी बड़े स्तर पर लफ्फाजी करने का समय आ गया है। वैसे भी टीवी पर बैठकर टीवी चैनल्स को ही गरियाना थोड़ा मुश्किल काम है। अब स्वछन्द होकर यूट्यूब से टीवी चैनल्स और गोदी मीडिया को गरियाने पर लोग अपने गिरेबान में झाँकने के ताने तो नहीं मार पाएँगे।

एक बात, जिसमें कोई संदेह नहीं है कि रवीश कुमार न केवल एनडीटीवी बल्कि एक पूरे इकोसिस्टम का हिंदी भाषा में प्रतिनिधित्व करते हैं। एक जैसी विचारधारा वाले ऐसे कोई भी हिंदी या अंग्रेजी भाषा के पत्रकार नहीं होंगे, जिन्होंने पत्रकारिता में रवीश को पिता के समतुल्य ना माना हो। तो आज सभी अपनी-अपनी कृतज्ञता दिखाते हुए रवीश कुमार को ट्रिब्यूट दे रहे हैं, सहानुभूति जता रहे हैं। इससे रवीश कुमार की चर्चा और भी बढ़ गई है।

यहाँ गौर करने वाली बात है कि वर्षों से रवीश को इकोसिस्टम द्वारा मसीहा बनाया जा रहा है। वरना एक अकेला व्यक्ति अपने ही संस्था से बड़ा कैसे हो गया? रवीश एनडीटीवी डूबते नाव से कूदने वाला वह आखिरी चूहा है, जिसे जबरदस्ती शेर की तरह फेयरवेल दिया जा रहा है।

एक ठीक-ठाक तबका जिन्होंने बुरे वक्त में भी एनडीटीवी और रवीश का साथ नहीं छोड़ा, उनका भी अब टीवी से पलायन हो जाएगा। एनडीटीवी की हिस्सेदारी बेचते समय रवीश की सहमति ना ली गई हो, यह असम्भव है। कैलकुलेशन कर  इकोसिस्टम से मिले अमेरिकी डॉलर और यूट्यूब की कमाई मिलाकर एनडीटीवी से ज्यादा तो कमा ही लेंगे तो हामी भरना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा होगा।

इकोसिस्टम को पहुँचती चोट को देखते हुए अडानी समूह के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गई। प्रणव रॉय भी डेडलाइन ख़त्म होते-होते इसे बेचकर निकल गए। वैसे इनके पास कानूनी रूप से अडानी को दी गई हिस्सेदारी को चुनौती देने का विकल्प मौजूद ही था, लेकिन सवाल है कि अडानी ने भी अपना प्रस्ताव वापस ले लिया तो, इनके हाथ से एक सुनहरा मौका निकल जाता और ढहते जा रहे एक संस्था को बेच कुछ मुनाफा कमा लेना कहीं हानिकारक नहीं है। बाकी बहाने तो हैं ही कि विचारधारा में समझौता करना इनके आदर्शों के खिलाफ है।

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    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

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