देश स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में अमृत काल का उत्सव मना रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राष्ट्रपति भवन स्थित सभी उद्यानों का नाम बदलकर अमृत उद्यान रख दिया गया है। ज्ञात हो कि पहले ये मुगल उद्यान के नाम से चर्चित थे। हालाँकि समय के साथ हुए बदलावों एवं उद्यान की शैलियों को ध्यान में रखते हुए इसका भारतीयकरण कर दिया गया है।
देखा जाए तो प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश औपनिवेशिक मानसिकता त्याग कर ऐसे भारत की कल्पना साकार कर रहा है जिसमें देश में प्रत्येक क्षेत्र का भारतीयकरण हो। इसी क्रम में मुगल उद्यान का नाम अमृत उद्यान रखा गया। इसकी आवश्यकता और औचित्य का राजनीतिकरण करने की आवश्यकता ही नहीं क्योंकि ये मुगल उद्यान मुगलों द्वारा नहीं बनाया गया है ना ही ये उनमे से किसी याद में बना है।
इसमें मात्र कई शैलियों से बने उद्यान में एक शैली मुगल भी थी लेकिन विविधता को दरकिनार करते हुए इसका नाम मुगल गार्डन रखा गया था।
दिल्ली में वायसराय हाउस बनाने के लिए एडविन लुटियन को भारत लाया गया था। उसने रायसीना की पहाड़ी को काटकर वायसराय हाउस बनाया। इसी वायसराय हाउस के आहाते में लिट्यून ने एक बगीचे का भी विकास किया जो भारतीय संस्कृति और फारसी कला का मिश्रण था। इस बगीचे का नाम मुगल गार्डन रखा गया।
भारत स्वतंत्र हुआ तो वायसराय हाउस का नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन रख दिया गया। हालाँकि वायसराय हाउस का नाम तो बदला लेकिन मुगल गार्डन का नाम जस का तस रहा। हालाँकि, समय -समय पर इसका नाम बदलने के लिए मांगे उठती रही लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
यहाँ जो समझने और स्वीकार करने वाली बात है वह यह कि किसी व्यक्ति के लिए भले हो पर एक राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता कभी भी आंशिक नहीं हो सकती। राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में वह तो पूर्ण होती है और सदियों की परतंत्रता के निशान से मुक्त होती है।100-150 वर्ष पुराने इतिहास का महिमांडन कर हम अंग्रेजी निशानियों को देश के ऊपर रखते हुए यह भूल जाते हैं कि ना ही भारत और ना ही उसका इतिहास अंग्रेजों द्वारा रचित था। भारत की संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है। इसमें उद्यान, बगीचे या भवन कोई आयातित वस्तुएं नहीं थी। इसलिए कई बार मुगल गार्डन का नाम पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेद्र प्रसाद के नाम पर रखने की मांग भी उठ चुकी हैं।
वहीं दूसरी ओर उद्यान कला की बात करें तो एडविन लुटियन ने जो डिजाइन तैयार की थी उसमें भारतीय संस्कृति एवं फारसी शैली का मिश्रण था। इसमें भारत में उपस्थित कई प्रजाति के पुष्प लगाए गए थे। खास किस्म की घास कोलकाता से लाई गई थी। स्वतंत्रता के बाद से ही इसमें कई बदलाव हुए।
जैसे भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने यहाँ गेहूँ की खेती करवाई। बारिश के पानी के संरक्षण के लिए पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायण द्वारा यहाँ आवश्यक कार्य करवाया गया। डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने यहाँ आयुर्वेदिक औषधियों के लिए पौधे लगवाए। देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने प्रोजेक्ट रोशनी के जरिए शहरी पारिस्थितिकी स्थिरता पर काम किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करवाया गया।
ऐसे ही अन्य राष्ट्रपतियों ने अपने-अपने कार्यकाल में यहाँ का विकास किया गया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि यह शुद्ध मुगल शैली का उद्यान कैसे रहा? और अगर ऐसा नहीं है तो इस नाम का कोई औचित्य रह ही नहीं जाता है।
हाल ही के दिनों में भारत सरकार द्वारा कई स्थानों, मार्गों और राष्ट्रीय स्मारकों के नाम का भारतीयकरण किया गया है। ये आवश्यक हैं कि हम किसी के द्वारा परोसे गए इतिहास की बजाए हमारे गौरवान्वित इतिहास को याद रखें। इसके लिए आवश्यक है कि देश में स्थित हमारे ऐतिहासिक चिह्न परतंत्रता के निशानों से मुक्त हों। अगर वे औपनिवेशिकता के निशान लिए गुलामी की कहानी कहते रहे तो हमारी स्वतंत्रता मात्र मखौल बनकर रह जाएगी।
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