राना अय्यूब (Rana Ayyub) हाल ही में UNESCO के मंच पर भारत के ख़िलाफ़ जमकर बयानबाज़ी कर के आई हैं। इस मंच पर वो गैंगस्टर अतीक अहमद को ‘क़ानून निर्माता’ बताना भी नहीं भूलीं। देश में ठीक उसी वक़्त अतिक अहमद को ‘रॉबिनहुड’ बताया जा रहा था।
जॉर्डन नीली (Jordan Neely) नाम के एक अश्वेत डांसर की 1 मई को अमेरिका में हत्या कर दी गई। एक क़िस्म की मॉब लिंचिंग, उसकी मौत के बाद वहाँ पर White Supremacist और कुछ अमेरिकी आरोप लगा रहे हैं कि जॉर्डन नीली कुछ ग़लत करने वाला था और ये लोग उसे रोकने वाले थे।
ऐसा ही कुछ अमेरिका में ‘Super predator theory’ (सुपर प्रीडेटर थ्योरी) में भी कहा गया था कि सारे अश्वेतों को जेल में डाल दो वरना ये हिंसक क़िस्म के लोग सबको मार डालेंगे। लेकिन राना अय्यूब के लिए विदेशी धरती पर और शायद अपने असली अन्नदाताओं से इस घटना पर सवाल करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।
गुजरात दंगों का झूठ बेचने वाली राना अय्यूब
गुजरात दंगों के झूठ से अपना करियर बनाने वाली वाशिंगटन पोस्ट की स्तंभकार राना अय्यूब फिर चर्चा में है। एक बार फिर राना अय्यूब ने विदेशी धरती पर विदेशियों के सामने भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने का काम किया है।
कश्मीर की तुलना फ़िलिस्तीन से करने वाली राना अय्यूब की ये एंट्री उस घटना की याद दिलाती है जब फ़िलिस्तीन मुक्ति संगठन के प्रमुख यासिर अराफ़ात को बंदूक़ के साथ संयुक्त राष्ट्र में घुसने का मौक़ा दिया गया था।
यूनसेस्को में अपनी इस स्पीच के बारे में आदत से मजबूर हो कर राना अय्यूब ने कुछ गप्पें भी मारीं, जैसे कि अपने ट्विटर अकाउंट से ये दिखाना कि UN ने सिर्फ़ उन्हें ही बुलावा भेजा है और ये भी कि उन्हें United Nations General Assembly ने बोलने के लिए बुलाया है। जबकि सच ये है कि राना अय्यूब को संयुक्त राष्ट्र महासभा हॉल में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन ये प्रोग्राम संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित नहीं किया गया था। राना उन सभी वक्ताओं में से एक थी, जिन्हें World press Freedom day की 30वीं वर्षगांठ मनाने के लिए यूनेस्को द्वारा आमंत्रित किया गया था।
इस कार्यक्रम के अनुसार, राना अय्यूब 4 लोगों के एक पैनल का हिस्सा थी और इसमें कुल पचास मिनट का टाइम रखा गया था, जबकि 2 मई को कुछ ट्वीट कर के ये दिखाने की कोशिश की थी कि ये पूरा कार्यक्रम ही उन्हें सुनने के लिए रखा गया है। ये प्रोग्राम UNGA के हॉल में ज़रूर रखा गया था लेकिन इसकी मेजबानी संयुक्त राष्ट्र द्वारा नहीं की गई थी।
ऐसे ही कुछ दिन पहले राहुल गांधी भी ब्रिटेन जा कर ये साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि उन्हें ब्रिटेन की संसद द्वारा सांसदों को संबोधित करने के लिए इन्वाइट किया गया था जबकि हक़ीक़त कुछ और ही थी।
झूठ और भारत विरोधी प्रॉपगैंडा राना अय्यूब का इतिहास और वर्तमान रहा है। शायद भविष्य भी हो क्योंकि विदेशों में भारत के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते टाइम भी राना ने इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि चंदा चोरी और धन उगाही के लिए उनकी जाँच चल रही है। Nobel prize वालों ने भी राना अय्यूब को ‘इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट’ बोला है और राना ने इस आर्टिकल में कहा है कि मिसइनफार्मेशन वो ख़तरा है जिसे सच बताया जा रहा है। यानी USP ही झूठ बोलना है, वो भी आज झूठ को कोस रही है।
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राना अय्यूब पर चंदा चोरी का रहा है आरोप
राना अय्यूब अपने फ़र्जीवाडों के बारे में इन लोगों को क्यों नहीं बताती हैं? फरवरी 2022 में ED ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट का उल्लंघन करने के मामले में अय्यूब की 1.77 करोड़ रुपए की सम्पति कुर्क कर ली थी। ED ने कहा था कि इंटरनेट से चैरिटी के नाम पर राना ने जो पैसे जुटाए वो पैसे उन कामों पर खर्च नहीं किए गये जिनके लिए जुटाए गए थे और राना ने उन पैसों में से बड़ा हिस्सा अपने पिता और बहन के खाते में ट्रांसफ़र कर दिये थे। इसके साथ साथ 50 लाख रुपये की FD भी करवाई और चैरिटी के लिए सिर्फ़ 29 लाख रुपये का इस्तेमाल किया था। अब जिस पत्रकार पर इतने आरोप लगे हों वो मानवाधिकारों का हवाला दे तो किसी को समस्या भी क्या होनी चाहिये?
किसी को लोगों का पैसा खाने से रोकना कोई अच्छी बात थोड़े ही है। राना अय्यूब ने अदालत को बताया और अदालत ने भी यह एक्सेप्ट किया कि दस-बारह करोड़ तो छोटी मोटी रक़म होती है। जब ED इनसे पूछताछ करती है तो ये इसे प्रेस फ्रीडम पे हमला बताकर तुरंत वाशिंगटन पोस्ट पर पर्चा छाप देती हैं।
Unesco में राना अय्यूब ने अपनी स्पीच में कहा कि भारत में मुस्लिमों पर हमले होते हैं, पत्रकारों पर केस किए जाते हैं, और आख़िर में कहती हैं कि उन्हें भारत से मोहब्बत है। 2016 की बात है जब पाकिस्तान के PM नवाज़ शरीफ़ ने एक आतंकवादी बुरहान वानी को ‘युवा नेता’ कहा था। राना अय्यूब उस से भी एक कदम आगे चली गई और गैंगस्टर अतीक अहमद को ‘लॉ मेकर’ बताया।
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वैसे कई बार तो मुझे भी लगता है कि राणा अय्यूब को भारत से मोहब्बत है क्योंकि जिस क़िस्म की कहानियाँ उनके बारे में इंटरनेट में, या सोशल मीडिया पर सुनने को मिलती हैं, उस से तो यही अंदाज़ा लगता है।‘Free Press is Under Attack in India‘ का राग राना अय्यूब पहले भी कई बार गा चुकी हैं।
जब भी उन्होंने कुछ लिखा है, हमेशा भारत के ख़िलाफ़ ही उनकी आवाज़ निकली है, हिंदुओं के ख़िलाफ़ उनकी नफ़रत उनके वाशिंगटन पोस्ट से ले कर ट्विटर अकाउंट तक भरी पड़ी है। इसके बाद भी विक्टिम कार्ड खेलना और ख़ुद को पीड़ित दिखाना राना अय्यूब के एरिया ऑफ एक्स्पर्टीज़ हैं।
यही नहीं, जिस ‘गुजरात फाइल्स’ को बेचकर आज वो वाशिंगटन पोस्ट में मुस्लिमों की आवाज़ बनने का दावा करती हैं, उसमें गोधरा हिंसा और गुजरात दंगों पर राना ने जमकर झूठ बेचे हैं। इतने आरोप, जो आज तक साबित भी नहीं हो सके लेकिन राना ने मान लिया है कि वो सब सच है और लोग भी ऐसा ही मानें।
उनके ख़ुफ़िया रिकॉर्डिंग और टेप, जिन्हें आज तक किसी ने ना देखा और ना सुना, वो भी आज तक पब्लिक नहीं हुए। एक ख़याली आरोपों की दुनिया बुनकर राना अय्यूब ने उसी को सच मान लिया है ।
हरेन पांड्या की हत्या के लिए जब राना अय्यूब की किताब सबूत के तौर पर रखी गई थी तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्दी बताए हुए कहा था कि इस बकवास किताब में सिर्फ़ अनुमान और आरोप हैं लेकिन कहीं भी सबूत नहीं हैं। कोर्ट ने कहा था कि किसी इंसान के विचारों को साक्ष्य नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके, राना ने अपनी इस किताब को अपने माथे पर चिपकाया और ये किताब उसका हर मंच पर पहुँचने का कार्ड बन गई।
राना को जिस बात के लिए सबसे ज़्यादा सराहना मिली वो थी – पीएम मोदी से नफ़रत, हिंदुओं से नफ़रत और भारत से नफ़रत!
राना अय्यूब की ‘पत्रकारिता’ कितनी विश्वसनीय है, इसका एक उदाहरण तो पश्चिम बंगाल में नन रेप केस की कहानी है। पुलिस की जांच शुरू होने से पहले ही राना अय्यूब ने ऐलान कर दिया था कि नन के साथ हिंदुओं ने बलात्कार किया था। बाद में जाँच में पता चला कि बलात्कारी एक बांग्लादेशी था और राना के ही समुदाय का था, उस पर भी बड़ी बात ये थी कि वो एक अवैध अप्रवासी मुस्लिम था।
ऐसे एक नहीं बल्कि सैकड़ों मामले हैं जब राना ने बिना सबूत के हिंदुओं को आतंकवादी या हत्यारा या बलात्कारी बताने की कोशिश की।भगवा आतंकी, हिन्दू आतंकी, फ़ासिस्ट मोदी, इन कुछ गिने चुने शब्दों के बीच ही राना अय्यूब के जर्नलिज्म का करियर घूमता है।
इसके अलावा, अगर वो वास्तव में साहसिक पत्रकार होती तो विदेश में इस बात पर ज़रूर सवाल पूछती, कि जो अमेरिका हर किसी के मानवाधिकार का प्रोटेक्टर होने का दावा करता है, उसके यहाँ ब्लैक्स की क्या स्थिति है, वहाँ न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार सड़क पर क्यों थे, वहाँ पर गन वॉयलेंस के केस चरम पर क्यों हैं? वहाँ डिनर पार्टी में देश के राष्ट्रपति अपने मीडिया चैनल्स का मजाक क्यों बनाते हैं? वहाँ की मीडिया कितनी स्वतंत्र है?