अपने दल के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलकर निकलने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य मुस्कुराते हुए नजर आए। पत्रकारों द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि; अखिलेश जी के साथ हर विषय पर बात हुई। इन विषयों में रामचरितमानस का विरोध भी शामिल है। उनके इस वक्तव्य के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थकों और सहयोगियों द्वारा उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस का विरोध और मुखर हुआ। अब मामला चौपाई के अर्थ निकालने से आगे जाकर पुस्तक को ही फाड़कर जलाने तक पहुँच गया है।
मौर्य के समर्थकों और सहयोगियों ने खुलकर रामचरितमानस के पन्ने फाड़े। ऐसा करते हुए वे वीडियो भी बना रहे हैं और उन वीडियो को सोशल मीडिया पर फैलाया भी जा रहा है। इसका विरोध हो रहा है और चूँकि विरोध हिंदू समाज की ओर से हो रहा है इसलिए लिखे या बोले गए शब्दों तक सीमित है। हिंदू समाज का विरोध ऐसा ही होता है। समाज सर और तन की जुदाई वगैरह में विश्वास नहीं रखता क्योंकि अपने धर्म और धार्मिक ग्रंथों पर उसका विश्वास बड़ा पक्का है। सनातन धर्म और उसके ग्रन्थ अलग-अलग समय में अलग-अलग तरह की परीक्षा से गुजारे जा चुके हैं।
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एक वृहद हिंदू समाज को अपना विरोध व्यक्तियों तक सीमित रखने में कभी गुरेज नहीं रहा। यह दृष्टिकोण हिंदू समाज का निज पर विश्वास दर्शाता है। इसके साथ ही यह भी दर्शाता है कि राजनीतिक विमर्शों में वृहद हिंदू समाज व्यक्ति को उसके समाज या उसकी जाति से अलग रखने में सक्षम है। ऐसा किसी भी तरह की विवशता के कारण नहीं है। इसके पीछे युगों-युगों की सांस्कृतिक सीख का बड़ा हाथ है। यदि ऐसा न होता तो बात आये दिन सर और तन वगैरह तक पहुँचती रहती क्योंकि अलग-अलग तरीकों से जितना खुलकर हिंदू समाज का अपमान किया जाता है उतना किसी और समाज का नहीं होता।
कुछ लोग हिंदुओं के मौखिक विरोध को कायरता या राजनीति से जोड़ते रहते हैं। यह उनका अपना दृष्टिकोण है पर ऐसे विरोध की समीक्षा की जाए तो इसके पीछे सांस्कृतिक और सभ्यतामूलक कारण ही मिलेंगे। वैसे भी, यदि संपूर्ण समाज किन्हीं दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ऐसा करता है, तो भी यह सोच उस सोच से तो अच्छी ही है जो दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोगों के सर उनके तन से जुदा करने में नहीं हिचकता। हाल के वर्षों में यह हमने बार-बार देखा है और परिणामों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि मौखिक विरोध में बुराई नहीं है।
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अब कुछ बातें समाजवादी पार्टी की राजनीति पर। स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके सहयोगियों तथा समर्थकों द्वारा रामचरितमानस जलाये जाने के बीच खबर आई कि समाजवादी पार्टी ने दल की कार्यकारिणी गठित की और स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि परिवार की मालिकाना वाली समाजवादी पार्टी में निर्णय लेने का काम अखिलेश यादव करते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को उनके रामचरितमानस के विरोध और उनके सहयोगियों द्वारा मानस को जलाने के लिए पुरस्कृत किया है?
यह ऐसा प्रश्न है जो अखिलेश यादव से किया जाना चाहिए और उनके उत्तर की अपेक्षा भी की जानी चाहिए। अभी नौ महीने पहले की ही बात है जब यही अखिलेश यादव भीषण धार्मिक हो चले थे और उनके सपने में भगवान श्रीकृष्ण आते थे। तब चुनाव का मौसम था शायद इसलिए यह जरूरी था कि भगवान कुछ समय निकालें ताकि अखिलेश के सपनों में आकर उन्हें गाइड करें और अब चुनाव का मौसम नहीं है इसलिए अखिलेश के सपनों में अब स्वामी प्रसाद मौर्य आते हैं जो उन्हें अपने कर्मों से हिंदू समाज में फूट के फुटेज दिखाते हैं।