True champions aren’t always the ones that win, but those with the most guts
वाकई में! असली खिलाड़ी वो नहीं जो खेल के मैदान में जीत हासिल करता है बल्कि वो होता है जो अपनी जिंदगी और खुद पर पूरा विश्वास रख कर जीत हासिल करता है। वही असली और जाबाज़ खिलाड़ी कहलाता है। इसी कथन का उदाहरण है 106 वर्षीय एथलीट रामबाई। जिन्होंने मात्र दो वर्षों की अवधि में खेल के मैदान में अपनी जगह बनाई।
हरियाणा की 106 वर्षीय पहलवान परदादी रामबाई । जो खेल के मैदान में एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन तीन गोल्ड मैडल लाने का जज़्बा रखती हैं।
इन्होंने हाल ही में उत्तराखंड के देहरादून में 18वीं नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और तीन गोल्ड मेडल अपने नाम किए। एक 100 और दूसरा 200 मीटर की दौड़ में वहीं तीसरा गोल्ड मैडल शॉटपूट में दमदार प्रदर्शन दिखाते हुए हासिल किया।
आपको बता दें इससे पहले उन्होंने 2021 में वड़ोदरा में हुई नेशनल चैंपियनशिप में भाग लेकर चार गोल्ड मैडल अपने नाम करके इतिहास बनाया था। जहाँ उन्होंने 100 मीटर की दौड़ पैंतालीस सेकंड में पूरी कर गोल्ड मेडल जीतकर भारतीय एथलेटिक्स की रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा लिया साथ ही 101 वर्षीय मान कौर के बनाए चौहत्तर सेकंड की रेस के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए लगभग 30 सेकंड में तोड़ते हुए अपना नाम बनाया।
आज वह इंडिया की ओल्डेस्ट एथलीट कही जाती हैं और अपने गांव में वह सबसे बुजुर्ग महिला हैं जिन्हें सभी उड़नपरी दादी के नाम से बुलाते हैं।
रामबाई ने खेल के मैदान में 104 वर्ष की उम्र में कदम रखा था यानी केवल दो वर्ष पहले। इन दो वर्षों में उन्होंने खुद को इस मुकाम पर खड़ा किया है कि वह अपने खेल का अभ्यास सुबह चार बजे उठ कर खेतों के कच्चे रास्तों पर किया करती हैं, लगातार दौड़ और पैदल चलने का अभ्यास करती हैं।
आमतौर पर 80 की उम्र तक पहुंचते ही अधिकतर लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं और उनका चलना फिरना भी मुश्किल हो जाता है लेकिन राम बाई इस उम्र में भी रोजाना 5 से 6 किलोमीटर तक दौड़ लगाती हैं।
यहाँ जो सबसे ज्यादा ख़ास और ध्यान देने वाली बात है वह ये की राम बाई का पूरा परिवार ही खेलों में नाम कमा रहा है। उनकी बासठ वर्षीय बेटी संतरा देवी रिले रेस में गोल्ड मैडल जीत चुकी हैं। उनके सत्तर वर्षीय पुत्र मुख्तयार सिंह 200 मीटर दौड़ में ब्रौन्ज़ मैडल जीत चुके हैं। यहाँ तक की उनकी बहू भी रिले रेस में गोल्ड और 200 मीटर दौड़ मे ब्रौन्ज़ मेडल जीत चुकी हैं।
रामबाई आज जिस मुकाम पर हैं इसका श्रेय वह अपनी इकतालीस वर्षीय पोती शर्मीला सांगवान को देती हैं। ये उनकी पोती ही थी जिन्होंने रामबाई को मान कौर की कहानी बताई और कहा की अगर 100 साल से अधिक उम्र की महिला खेल के मैदान में इतिहास रच सकती है तो आप क्यों नहीं।
बस फिर क्या था रामबाई ने कड़ी मेहनत के दम पर नेशनल लेवल पर जगह बनाई और यह सुनिश्चित भी कर दिया की अगर कुछ कर दिखने का जस्बा है तो उम्र चाहे जितनी भी हो आपके हुनर और कड़ी मेहनत का फल आपको ज़रूर मिलता है।