राज्यसभा की सदस्या, लेखिका एवं इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति रक्षाबंधन के दिन अपने बयान के कारण चर्चा में है। रक्षाबंधन के महत्व को समझाते हुए सुधा मूर्ति ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन का इतिहास बहुत समृद्ध है और इसकी शुरुआत मुगल काल में हुई थी।
उन्होंने कहा कि जब रानी कर्णावती खतरे में थीं, तो उन्होंने भाईचारे के प्रतीक के रूप में राजा हुमायूं को एक धागा भेजा और उनसे मदद मांगी। यहीं से धागे की परंपरा शुरू हुई और यह आज भी जारी है।
अपने इसी बयान के कारण सुधा मूर्ति को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल सुधा मूर्ति का यह बयान इसी बनी-बनाई कहानी का हिस्सा है, जिसमें मुगल ही भारत के निर्माता बताए जाते हैं, उन्होंने ही यहां आर्किटेक्चर बनाया और जिसमें मुगलों को किलों से लेकर गार्डन तक का श्रेय दे दिया जाता है। पर भारतवर्ष का इतिहास मुगल काल में नहीं सिमटा हुआ है। पर्व-त्योहार सदियों से भारतवर्ष के इतिहास का हिस्सा रहे हैं और इसके प्रमाण हमारे शास्त्र हैं।
जैसा कि आपको पता है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। साथ ही यह भी याद रखने की आवश्यकता है कि महाभारत के दौरान यह द्रौपदी थीं, जिन्होंने श्रीकृष्ण के हाथों से बहते रक्त को रोकने के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। यानी रक्षा इस सूत्र से बहनें भी भाई की करती हैं। रक्षासूत्र बांधते हुए इस श्लोक का उच्चारण किया जाता है-
यानि की जिस रक्षाबंधन के कारण राक्षसों के राजा बलि इंद्र को नहीं जीत सके और उन्हें इंद्र से समझौता करना पड़ा, उसी रक्षाबंधन को मैं आपकी कलाई पर बांध रहा हूँ। हे रक्षाबंधन! इस व्यक्ति की रक्षा करो , इस व्यक्ति की रक्षा करो।
अब इस श्लोक में व्याप्त कहानी को जानते हैं, जिससे यह समझने में मदद मिलेगी कि भारत में रक्षाबंधन की शुरुआत कहां से हुई। देखिए ये श्लोक भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के 137वें अध्याय में आता है, जिसमें रक्षाबंधन की विधि का उल्लेख किया गया है।
इसमें बताया गया है कि धर्मराज युधिष्ठिर, कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में विजयी होने के बाद, भारत के सिंहासन पर बैठते हैं। युद्ध में लोगों, खासकर अपने रिश्तेदारों की हत्या करके अपने और अपने परिवार पर लगे पाप से छुटकारा पाने के लिए वे ऋषि व्यास से मार्गदर्शन मांगते हैं।
ऋषि व्यास भगवान श्री कृष्ण से इस संबंध में युधिष्ठिर का मार्गदर्शन करने के लिए कहते हैं। फिर, भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को कई व्रत और धार्मिक अनुष्ठान बताकर ज्ञान देते हैं जिन्हें विशिष्ट दिनों पर करने की आवश्यकता होती है। इन घटनाओं के आलोक में, भगवान श्री कृष्ण श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन करने का निर्देश देते हैं।
श्रीकृष्ण बताते हैं कि एक समय की बात है, असुरों के सरदार चक्रवर्ती बलि ने देवताओं के राजा इंद्र के विरुद्ध युद्ध किया। युद्ध में बलि इंद्र से जीत नहीं सका। अपनी हार से निराश बलि अपने गुरु शुक्राचार्य के पास जाकर निराशा व्यक्त की तो गुरु शुक्राचार्य ने बताया कि इंद्र की पत्नी सचिदेवी ने इंद्र की कलाई पर रक्षा बांधी है। इस कारण इंद्र अजेय हो गए हैं। इसलिए एक वर्ष तक यहीं रहो, क्योंकि रक्षा की शक्ति एक वर्ष तक रहेगी।
उन्होंने बलि से कहा कि इंद्र से संधि कर लो और एक वर्ष तक उनसे युद्ध मत करो। बलि ने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया। यही रक्षाबंधन का महत्व है।
इसके साथ ही शास्त्रों में बताया गया है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन दैनिक कार्य समाप्त करने के बाद दोपहर में उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करते हुए कलाई पर रक्षाबंधन बांधना चाहिए। यह कोई भी कर सकता है। इस तरह से हर साल रक्षाबंधन करना चाहिए और बाकी साल भी खुशहाली से बीतेगा।
यह कथा हमें यह भी बताती है कि रक्षाबंधन की जड़ें पुराणों में हैं। इनसे यह समझा जा सकता है कि रक्षाबंधन महज एक सांस्कृतिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक पुराना सनातन धार्मिक अनुष्ठान है।
रही बात सुधा मूर्ति के बयान की, तो उनसे यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि अगर रक्षाबंधन की शुरुआत हिंदू-मुस्लिम बंधन के रूप में हुई तो इस्लामी राष्ट्रों में रक्षाबंधन की परंपरा क्यों नहीं है? ऐसा क्यों है कि रानी कर्णावती द्वारा शुरू परंपरा को आजतक सिर्फ हिंदू समाज द्वारा ही निभाया जा रहा है?
भारत में वामपन्थ की एक परंपरा रही है कि जिन्हें इतिहासकार मानकर हमारी शिक्षा और इतिहास का आधार उनकी कल्पनाओं के आधार पर तैयार कर दिया गया, वह हमारे अवचेतन मस्तिष्क में इस प्रकार बैठ गया है कि हुमायूँ जैसी कहानियों को रखने पर हम एक बार भी विचार नहीं करना चाहते हैं कि क्या वास्तव में तथ्य यही रहे होंगे? यह ऐसा ही है जैसा कुछ ही समय पूर्व यह लेख लिखे जा रहे थे कि महाभारत में युधिष्ठिर सम्राट अशोक से प्रभावित थे; और कौन जानता है कि आने वाले समय में इस झूठ की निरंतर पुनरावृत्ति के चलते लोग इसे ही तथ्य मानकर रखने लगें?
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