रक्षाबंधन, वो पर्व, जो भाई-बहन के प्रेम, अटूट रिश्ते और सदैव उसकी रक्षा करने का साक्षी है।
रक्षाबंधन अर्थात रक्षा का बंधन, भाई-बहन का ये पर्व प्राचीनकाल से चला आ रहा है, जिसमें एक रक्षा सूत्र का बहुत महत्व है। हाल के समय में यह पर्व सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं है बल्कि बहन-बहन का भी है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधकर उनसे उनकी आजीवन रक्षा करने का वचन लेती हैं।
राजा बलि को माता लक्ष्मी ने बांधी राखी
रक्षाबंधन के पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक राजा महाबलि के दान से जुड़ा प्रसंग है।
राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और उन्हें पूरी समस्या बताई। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और जब राजा बलि यज्ञ कर रहे थे तब उन्होंने राजा से उनके यज्ञ ख़त्म होने के बाद उनसे तीन पग जमीन भिक्षा में माँग ली।
राजा बलि की महानता और दान के किस्से काफी मशहूर थे। राजा बलि दान के लिए मान गए और भगवान वामन ने दो पग में ही पूरी धरती माप ली, फिर उन्होंने राजा से पूछा कि वो अपना तीसरा पग कहाँ रखें, तब तक राजा भगवान की यह लीला समझ चुके थे। उन्होंने अपना सिर झुका दिया और कहा कि प्रभु तीसरा पांव मेरे सिर पर रख दीजिए।
भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और राजा बलि से वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने वरदान में वामन अवतार को उनके द्वार पर पहरेदार बनने का वरदान माँगा। कहते हैं कि जब कई दिनों तक भगवान विष्णु स्वर्गलोक नहीं पहुंचे, तब माता लक्ष्मी उन्हें ढ़ंढने निकलीं, नारद ने जब माता लक्ष्मी को कष्ट में देखा तो उन्हें राजा बलि को राखी बांधने और उन्हें भाई बनाने का सुझाव दिया।
तत्पश्चात माता लक्ष्मी ने धरती लोक जाकर राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर उन्हें अपना भाई बनाया और उपहार में भगवान विष्णु को माँग लिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।
उस दिन से रक्षाबंधन का त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। सभी बहनें मनपसंद राखी खरीद कर भाई की कलाई पर बांधती है और उसके लम्बी उम्र की कामना करती हैं। बदले में भाई भी बहनों की सदैव रक्षा का वचन देता है।
जब श्री कृष्ण ने की थी द्रौपदी की रक्षा
रक्षाबंधन को लेकर एक दूसरी प्राचीन कथानुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया था तो उनकी उंगली कट गई थी। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़कर रक्त रोकने के लिए उनकी उंगली में बाँध दिया था। उसी वक़्त भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को ये वचन दिया था कि वो सदैव उनकी रक्षा करेंगे।
महाभारत में जब युधिष्ठिर जुए के खेल में हार जाते हैं तो वे अपनी धर्मपत्नी को भी दांव पर लगाकर हार जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि दुर्योधन के कहने पर भरी सभा में दुःशासन द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास करता है और भरी सभा में कोई द्रौपदी के सम्मान की रक्षा का साहस भी नहीं दिखाता।
ऐसे में असहाय द्रौपदी सिर्फ श्रीकृष्ण को याद करती हैं, श्रीकृष्ण उस समय अपनी माया से ही द्रौपदी की रक्षा करने आते हैं।
श्रीकृष्ण साड़ी का पल्लू बढ़ातें जाते हैं, साड़ी की लम्बाई खत्म ही नहीं होती है, दुःशासन साड़ी खींचते-खींचते थक जाता है और थोड़ी ही देर में वहाँ साड़ी का ढेर लग जाता है। भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी की रक्षा का अपना वचन निभाते हैं। कहते हैं कि उस समय से भी रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।
यह त्योहार एक अटूट रिश्ते का सन्देश भी देता है, कई बहनें देश की सीमाओं पर तैनात अपने सैनिक भाइयों के लिए राखी लेकर आती हैं और उन्हें रक्षासूत्र बांधती हैं। यह त्योहार प्रेम और एक अटूट धागे का है जो यह सन्देश देता है कि जब रक्षा की बात आए तो सदैव आगे आना चाहिए, भले वो अपने खून के रिश्ते हों या दूर के।
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