केंद्र सरकार ने गांधी परिवार के NGO ‘राजीव गांधी फाउंडेशन‘ (RGF) और ‘राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट‘ का फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया है।
सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाले दोनों ट्रस्टों पर विदेशी फंडिंग कानून के उल्लंघन का आरोप है। इस मुद्दे को देख रहे एक अधिकारी ने बताया कि जुलाई, 2020 में गृह मंत्रालय की एक समिति द्वारा की गई जांच के आधार पर यह निर्णय लिया गया है।
राजीव गाँधी फाउंडेशन की अध्यक्ष है सोनिया गांधी
मामले से जुड़े अधिकारी ने बताया है कि FCRA लाइसेंस रद्द करने की सूचना आरजीएफ के अधिकारियों को दे दी गई है। आरजीएफ की ओर से मामले पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अभी आरजीएफ की अध्यक्ष कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं।
इस ट्रस्ट के ट्रस्टियों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल हैं। गौरतलब है कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर दशकों बाद किसी गैर-गाँधी मल्लिकार्जुन खड़गे का चयन हुआ है।
साल 1991 में हुई थी आरजीएफ की स्थापना
आरजीएफ की स्थापना साल 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के एक महीने बाद हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यह फाउंडेशन स्वास्थ्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महिलाओं और बच्चों, विकलांगता सहायता व शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है।
ट्रस्ट पर नियमों के उल्लंघन के आरोप
आरजीएफ जुलाई, 2020 में जांच के दायरे में आई, जब गृह मंत्रालय ने गांधी परिवार की राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ), और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट (आरजीसीटी) की जांच के लिए एक मंत्रालयी समिति का गठन किया। इस जांच कमिटी में गृह मंत्रालय, ईडी, सीबीआई, और इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी शामिल थे। इन दोनों ही संगठनों पर मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट और FCRA के नियमों के गंभीर उल्लंघन का आरोप है।
क्या है FCRA
फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) रजिस्ट्रेशन की शुरुआत मूलतः साल 1976 से हुई थी, 2010 में इसमें संशोधन किया गया था। एफसीआरए द्वारा विदेशों से आए धन पर नजर और नियंत्रण रखा जाता है, ताकि विदेशी पैसों का देश की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले या भ्रष्टाचार के कामों में इस्तेमाल ना हो पाए।
एफसीआरए रजिस्ट्रेशन के बाद ही कोई NGO या संस्था विदेशों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकती है। शर्त यह है कि वो पैसा देशहित में लगना चाहिए, एफसीआरए संस्था या NGO को विदेशों से पैसे प्राप्त करने से रोक सकती है।
ट्रस्ट के उद्देश्य और फंड विशाल, पर लाभार्थी न के बराबर
2020 में खुलासा हुआ था कि राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को भारत की केन्द्र सरकार के 7 मंत्रालयों, सरकारी विभागों समेत चीन से लेकर आयरलैंड और लक्जमबर्ग तक दुनियाभर की विभिन्न सरकारों से लेकर, रिलायंस, टीवीएस, जीवीके जैसे उद्योगों, SBI और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से लेकर निजी व्यक्तियों, निजी ट्रस्टों और पता नहीं किस किससे चन्दा मिला था!
इतने बड़े नेटवर्क और फंडिंग के बावजूद आरजीएफ परियोजनाओं, काम के मामले में एकदम फिसड्डी साबित हुआ। आरजीएफ की योजनाओं से प्रति वर्ष 200 छात्र और, प्रति वर्ष 500 परिवार भी लाभान्वित नहीं होते हैं। इसलिए राजीव गांधी फाउंडेशन शक के घेरे में था कि आखिर इतने फंड का आरजीएफ करता क्या है? कहाँ जाता है यह पैसा ?
आरजीएफ देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा प्रभावित बच्चों के लिए इंटरएक्ट स्कॉलर शिपयोजना चलाता है। इसके तहत 1993 से प्रतिवर्ष केवल लगभग 80 छात्रों को ही मदद दी गई है!
इसके आलावा आरजीएफ ‘राजीव गांधी कैम्ब्रिज छात्रवृत्ति कार्यक्रम चलाता है। 1994 के बाद से इसने ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों के करीब 140 छात्रों को भारत आने के लिए टिकट दिए, करीब 60 भारतीय छात्रों को विदेश में बीए (ऑनर्स) में दूसरी डिग्री लेने के लिए फंड दिया और 2014 के बाद कैम्ब्रिज में चयनित लगभग आधा दर्जन पीएचडी छात्रों को छात्रवृत्ति दी। पर कुल तीन अलग-अलग ट्रस्टों ने मिलकर इतना खर्चा किया! कितनी बड़ी संख्या है न!
ऐसे ही आरजीएफ ने 1991 के बाद से केवल लगभग 5000 आपदा प्रभावित परिवारों को मदद की है, और 9000 मरीजों को मुफ्त दवाएं मुहैया कराई हैं। देश की सरकार, संस्थाओं, निजी मदद, अन्य देशों की मदद के बावजूद आरजीएफ प्रतिवर्ष 200 आपदा प्रभावित परिवारों की मदद भी नहीं कर सका?
देश में ऐसे बहुत से छोटे NGO हैं जो बहुत कम फंडिंग और बेहद सीमित संसाधनों में ऐसे ही कार्यक्रमों के तहत आरजीएफ से कई गुणा अधिक सामाजिक कार्य करते हैं। आरजीएफ अपने वित्तीय विवरण में इन परियोजनाओं पर करोड़ों रुपयों का खर्च दिखाता है, पर उसका प्रभाव नगण्य है। इसीलिए आरजीएफ पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं।
आरजीएफ को पसंद है चीनी सरकार से चन्दा लेना
2020 में हुए खुलासे से पता चला था कि चीनी सरकार ने 2006 में ‘राजीव गांधी फाउंडेशन’ को 10 लाख रुपए का दान दिया था। भारत में तत्कालीन चीनी राजदूत सुन युक्सी ने कांग्रेस पार्टी के राजीव गांधी फाउंडेशन को 10 लाख रुपये का दान दिया था।
इसके अतिरिक्त राजीव गांधी फाउंडेशन के वार्षिक विवरणों से और भयावह बातें सामने आई थीं। चीनी दूतावास और चीन सरकार वर्ष 2006 से लगातार कांग्रेस के राजीव गांधी फाउंडेशन को दान दे रही थी। राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा दाखिल किए गए रिटर्न के अनुसार, वर्ष 2006-2007 में, चीन सरकार ने राजीव गांधी फाउंडेशन को 90 लाख रुपये का दान दिया था।
देश की सत्ताधारी पार्टी के ट्रस्ट का एक खतरनाक पड़ोसी देश से इस तरह करोड़ों का दान लेना राष्ट्रीय हितों से सीधा खिलवाड़ था।
कुख्यात आतंकवाद पोषक जाकिर नाइक से भी रहा है फाउंडेशन का लिंक
2016 में राजीव गाँधी फाउंडेशन उस समय विवादों में आ गया जब खुलासा हुआ कि आतंकवाद के पोषक जाकिर नाइक के संगठन ‘इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन’ से भी 2011 में कांग्रेस के राजीव गाँधी फाउंडेशन ने 50 लाख रुपए का दान स्वीकार किया था।
इसे लेकर भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया था कि विवादित इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के एनजीओ द्वारा आरजीएफ को 50 लाख रुपए का कथित दान उसकी ‘राष्ट्र-विरोधी’ गतिविधियों को ‘आश्रय’ देने के लिए ‘रिश्वत’ था।
जाकिर नाइक पर अवैध धर्मान्तरण, आतंकवाद की सॉफ्ट व्याख्या, और आतंकवादियों के उसके संगठन से लिंक के अनेक आरोप हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जाकिर नाइक के संगठन ‘इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन‘ पर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति खतरा मानते हुए UAPA के तहत 2016 से बैन लगाया हुआ है।
ऐसे में राजीव गांधी फाउंडेशन को भारत विरोधी चीन सरकार और ऐसे खतरनाक संगठनों से दान मिलना कांग्रेस की मंशाओं पर सवाल उठाता रहा है, जिसके बाद हालिया कार्रवाई के तहत इसकी विदेशी फंडिंग निरस्त कर दी गई है।