पूरा देश भीषण गर्मी की मार झेल रहा है। इसी बीच कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जहां 40 डिग्री के तापमान में ये महिलाएं रो-रो कर बेहोश हो चुकी हैं, सड़क पर सामान पड़ा है और इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है ।
अब आपको एक और तस्वीर दिखाते हैं
इसमें भी कुछ महिलाएं है जो दिल्ली के शकूरबस्ती रेलवे स्टेशन के निकट झुग्गियों में रहती हैं। इनसे मिलने राहुल गाँधी पहुंचते हैं और उनकी समस्याएं जानते हैं।
आपको इन दोनों तस्वीरों का अंतर समझाते हैं
पहली तस्वीर है राजस्थान के जैसलमेर की, जहाँ रो रही हिन्दू महिलाएं वो हैं जो परिवार सहित जान और धर्म बचाकर लंबे समय पहले पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए थे। इन हिंदू परिवारों के घरों को बुलडोजर से तोड़ दिया गया है। जैसलमेर राजस्थान का एक ज़िला है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस के नेता मुहब्बत की दुकान चलाने वाले राहुल गांधी हैं।
ऐसा नहीं कि पाकिस्तान से किसी तरह जान बचाकर भारत में शरण लेने वाले इन हिंदुओं का घर केवल जैसलमेर में तोड़ा गया। अभी लगभग पंद्रह दिन पहले पाकिस्तान से आए और राजस्थान के ही जोधपुर में रहने वाले हिंदुओं का घर और पानी स्टोर करने का टैंक तोड़ दिया गया था। अब यह संयोग की बात है कि जोधपुर भी राजस्थान का एक ज़िला है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है।
प्रश्न यह है कि हिंदुओं को पाकिस्तान में प्रताड़ित किया गया तो हिंदुस्तान आकर बसे। लेकिन अगर उन्हें हिन्दुस्तान में प्रताड़ित किया जाएगा तब वे कहाँ जाकर बसेंगे?
पाकिस्तान से भागकर बड़ी संख्या में राजस्थान बॉर्डर के पास के जिलों में आकर बसने वाले इन हिंदुओं की हालत कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। पर अब तो उनके सर से छत भी छीन ली गई। अब क्या?
दुख की बात यह है कि छत छीन लेने का यह काम राजस्थान की कांग्रेस सरकार के आदेश पर हुआ है। जी हाँ, वही राजस्थान जहाँ के बप्पा रावल थे जो बाहर के आक्रमणकारियों को कई बार भारत में घुसने नहीं दिया था बल्कि उन्हें खाड़ी तक ढकेल आये थे। वही राजस्थान जहाँ के राणा प्रताप थे। वही राजस्थान जहाँ के राणा रतन सिंह का राज था।
पर अब कांग्रेस का राज है। वही कांग्रेस जिसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को शकूर बस्ती में तो मुहब्बत की दुकान खोल लेते हैं लेकिन जोधपुर और जैसलमेर में अशोक गहलोत से नफरत का बाज़ार खुलवा देते हैं।
अब आप भी सोच रहे होंगे कि एक ओर तो राहुल गाँधी अपनी राजस्थान सरकार में हिन्दुओं के घर पर बुलडोज़र चलवा रहे हैं और दूसरी ओर ऐसी बस्ती में पहुंचकर पीआर कम्पैन चला रहे हैं जो अवैध है और जिसे ख़ाली करने का फ़रमान सालों से जारी है पर फ़रमान को अदालतों में चुनौती दी जा चुकी है।
जी हाँ, वर्ष 2015 में रेलवे ने इस बस्ती को खाली करने का आदेश दिया था क्योंकि यह जमीन रेलवे की है और इन लोगों ने इस पर अतिक्रमण किया है। उस वर्ष भी राहुल गाँधी ने कहा था कि एक भी झुग्गी को टूटने नहीं दूंगा ..
क्या राहुल गाँधी हर झुग्गी के वासियों से इतनी ही मुहब्बत करते हैं?
नहीं, उनकी यह मुहब्बत ख़ास झुग्गियों के लिए रिज़र्व है। वे हर झुग्गी में मुहब्बत नहीं लुटाते। सूत्रों के अनुसार भी एक पूर्व प्रधानमंत्री का मानना था कि राहुल गाँधी की मुहब्बत पर पहला हक़ देश के अल्पसंख्यकों का है। उनकी यह प्राइवेट मुहब्बत पूरी तरह से रिज़र्व है।
रिज़र्व इसलिए क्योंकि राहुल गाँधी जानते हैं कि शकूर बस्ती भले अवैध है लेकिन उसमें बसे रोहिंग्या मुसलमान अब वैध हैं क्योंकि उनके पास वोट है। पाकिस्तान से आये हिंदुओं के पास वोट नहीं है।
अब आप सोच रहे होंगे कि अवैध लोगों के वोट कैसे वैध हो गये …
इस सवाल के जवाब के लिए हमको थोड़ा सा फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा जहाँ हमें पता चलेगा कि इस वैधता की जड़ें कब ज़मीन में घुसी।
घुसपैठ की क्रोनोलॉजी को समझिए आप!
म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम और बौद्ध दो समुदाय निवास करते हैं। दोनों समुदाय के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है लेकिन असल मोड़ आया वर्ष 1972 के बाद, जहां दोनों समुदायों में कई हिंसक झड़पें हुई, कई लोग मारे गए और यहीं से शुरू हुआ रोहिंग्या मुसलमानों का रोहिंग्या शरणार्थी बनने का दौर।
1980-1990 के दौर से इन्होने बांग्लादेश एवं भारत में घुसपैठ करनी शुरू की। अधिकतर घुसपैठिये बांग्लादेश के रास्ते भारत पहुंचने लगे।
लेकिन तत्कालीन किसी सरकार ने इनसे पैदा हो रहे खतरे की ओर कभी ध्यान नहीं दिया।
भारत में पहली बार लोगों का ध्यान भी इस मुद्दे पर तब गया जब 12 अगस्त 2012 को मुंबई के आजाद मैदान में ये लोग एक भीड़ के रूप में इकट्ठे हुए। इकट्ठे तो ये एक विरोध प्रदर्शन के लिए हुए थे लेकिन किया वही जो करते हैं। ताक़त का प्रदर्शन और दंगे, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना। यहां तक कि अमर ज्योति जवान मेमोरियल को भी नहीं बख्सा गया।
इस पर तत्कालीन यूपीए सरकार क्या कर रही थी? इस दौर में यूपीए सरकार के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद म्यांमार जाकर इन रोहिंग्या को 1 मिलियन डॉलर की मदद बाँट रहे थे
जी हाँ, और इसका असर क्या हुआ?
यही यूपीए शासनकाल था जहाँ म्यांमार से आने वाले इन रोहिंग्या के लिए सबसे सेफ जगह बना भारत। और उस पर भी भारत कोई एक हिस्सा नहीं। उत्तर बिहार से लेकर जम्मू और दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक, इन्हें बाक़ायदा पहुँचाया गया, बसाया गया और बनाया गया।
हैदराबाद में स्थानीय नेताओं और इस्लामिक संगठनों की मदद मिली।जम्मू के लोगों ने तो इनका खुलेआम विरोध किया पर तब शासन कश्मीर के हाथ में था।
चिंताएं तब बढ़ने लगी जब वर्ष 2013 में रिपोर्ट आने लगी कि लश्कर-ए-तैयबा द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को रेडिकलाइज किया जा रहा है। हालाँकि सबसे ज्यादा चिंताजनक था, दिल्ली में इन बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बड़ी संख्या होना
इन्होने दिल्ली में अवैध तरीके से आधार कार्ड, पहचान पत्र, राशन कार्ड बनवा लिए हैं। ये दिल्ली के कई अलग-अलग इलाकों में झुग्गी बनाकर रहते हैं। 2003 में दिल्ली पुलिस ने अवैध घुसपैठियों को पकड़ने के लिए एक सेल बनाया था और इस दौरान करीब 40 हजार अवैध घुसपैठियों को पकड़ा भी गया था।
लेकिन फिलहाल ये सेल अब कम सक्रिय हो गया है। दरअसल, सेल की कम सक्रियता के पीछे की वजह है कि ये अवैध घुसपैठिये ऐसे पहचान पत्र यहां बनवा लेते हैं कि जिससे ये जानना मुश्किल हो जाता है कि वे अवैध घुसपैठिये हैं या देश के नागरिक।
प्रश्न यह है कि ये मुश्किलें किन कारणों से आती हैं, क्या दिल्ली सरकार कुछ एक्शन नहीं लेती?
आगे बताते हैं कि किस प्रकार एक्शन लिया जाता है
दिल्ली सरकार की बात करें तो उन्होंने रोहिंग्या छात्रों को आधार कार्ड, बैंक अकाउंट और भारतीय नागरिकता के प्रमाण पत्र तक बांटकर स्कूलों में फर्जी दाखिला दिला दिया है। देखिए यह वीडियो जिसमें यह रोहिंग्या मुसलमान दिल्ली सरकार से खुश है क्योंकि केजरीवाल सरकार इनको फ्री पानी फ्री घर फ्री बिजली सब देते हैं। वहीं ये रोहिंग्या महिला आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान को इसलिए धन्यवाद कर रही हैं क्योंकि वो इन महिलाओं को ₹10,000 देते हैं
एक रिपोर्ट तो आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान के बारे में यह बताती है कि उन्होंने संस्थागत तरीके से 300 अवैध रोहिंग्या को दिल्ली में बसा दिया है।
केजरीवाल सरकार की रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए क्या नीतियां होंगी इस बात का अदांजा आप इस से लगाइये कि अब स्थानीय लोग इन घुसपैठियों से परेशान हो चुके हैं और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं
तो क्या वर्तमान केंद्र सरकार ने इसके लिए कोई कदम नहीं उठाए?
वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में करीब 40 हजार अवैध रोहिंग्या घुसपैठिये रह रहे हैं।केंद्र सरकार इन रोहिंग्या घुसपैठियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता चुकी है।
‘नेल्ली नरसंहार’ के 40वें वर्ष में अवैध घुसपैठ पर चर्चा देश के लिए आवश्यक है
वहीं वर्ष 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों का भी जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत कभी बतौर नागरिक स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के रास्ते भारत में आ जाते हैं। पर उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा। शाह ने कहा था कि मैं ये साफ कर देना चाहता हूं कि हमें मुसलमानों से नफरत नहीं है और इस बिल का भारत के नागरिक मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। सरकार की योजना सभी अवैध घुसपैठियों को उनके देश डिपोर्ट करने की योजना है।
हालाँकि केंद्र सरकार की इस योजना के खिलाफ कुछ वकील रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों का पक्ष रखने भी पहुंचे। इनमें शामिल थे फली एस नरीमन, प्रशांत भूषण, कोलिन गोनसाल्विस, और सलमान खुर्शीद
वही सलमान खुर्शीद, रोहिंग्या मुस्लिम पर 1 मिलियन डॉलर बांटने वाले
लेकिन केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखा कि , भारत अवैध घुसपैठियों की राजधानी नहीं बन सकता। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के पक्ष में ही फैसला सुनाया। इससे कांग्रेस पार्टी और सलमान ख़ुर्शीद को झटका तो लगा ही होगा। एक तरफ घुसपैठियों के प्रति कांग्रेस पार्टी का ये रवैया था और दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले हिन्दू एवं सिख शरणार्थियों का कांग्रेस ने सदैव विरोध ही किया।
जिस CAA का उद्देश्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के प्रवासियों को नागरिकता देना था कांग्रेस ने उसका पुरजोर विरोध किया है
हिन्दुओं के प्रति कांग्रेस का यह विरोध आजतक झलक रहा है, फिर वह राजस्थान के जोधपुर में हो या जैसलमेर में
तो प्रश्न वही है, मोहब्बत की दुकान शाकूर बस्ती में खुली है पर जोधपुर और जैसलमेर में बंद हैक्या राहुल गाँधी की मोहब्बत की दुकान राजस्थान में बंद है? या फिर अशोक गहलोत नफरत की दुकान चलाते हैं?
चुनाव आते ही गहलोत की रेवड़ियां चालू, पहले से बदहाल राजकीय खजाने पर एक और बोझ