मध्य प्रदेश से निकल कर अब राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर रही है। फ़िलहाल भारत जोड़ो यात्रा से अधिक ज़रूरी कॉन्ग्रेस नेतृत्व के लिए राजस्थान में अपने कुनबे को जोड़े रखना लग रहा है। इस बार कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के सी वेणुगोपाल राजस्थान के मोर्चे पर दिखे।
पिछली बार हुई खींचतान में अजय माकन राजस्थान कॉन्ग्रेस प्रभारी थे, जो निज की फ़ज़ीहत के बाद इस्तीफा दे चुके हैं। प्रभारी के बैठक बुलाने पर अगर विधायक दल कहीं और जाकर समान्तर बैठक कर दे तो इस्तीफे के अलावा कुछ बचता भी नहीं। खैर, एक बार फिर राजस्थान में सियासी हलचल, सत्ता उठापटक और ग़द्दार जैसे शब्द हावी हैं और गहलोत-पायलट फिर गुटों में बंटकर राहुल गाँधी के लिए एसेट साबित हो रहे हैं।
राजस्थान में वर्ष 2017 से शुरू हुआ कांग्रेस सरकार का वर्तमान कार्यकाल जो वर्ष 2023 के अंत तक खत्म होने को है, सिर्फ गहलोत पायलट की सत्ता की लड़ाई तक ही सीमित रहा। यहाँ तक कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा के बीच ही कई बार यह संग्राम सामने आ चुका है। विपक्षी दलों को घेरने की रणनीति के बजाय कांग्रेस नेतृत्व को अपने दल के लिए ही रणनीति बनाने में व्यस्त दिखता है।
इन सबके बीच सवाल यह उठता है कि क्या राज्य की सत्ता में बने रहना ही किसी राजनीतिक दल का उद्देश्य है? जिस जनता के विकास के नाम पर सत्ता मिली है, उस जनता का हित इसमें कहाँ है? राजस्थान देश के बड़े राज्यों में से एक है लेकिन पिछले लगभग तीन वर्षों से कानून व्यवस्था की विकट कमी से जूझ रहा है। भौगोलिक सीमाएँ और क्षेत्रीय विविधता अपनी जगह हैं लेकिन सत्ता की ऐसी खींच-तान कोई भी राज्य अधिक समय तक झेल नहीं सकता। शासन और प्रशासन पर ऐसी खींच-तान का बुरा प्रभाव अवश्यम्भावी है।
जिस प्रकार एक-एक करके बचे खुचे कॉन्ग्रेस शासित राज्य, कॉन्ग्रेस के हाथ से छिटक रहे हैं, ऐसे में राजस्थान के लिए कॉन्ग्रेस का चिंतित होना भी लाजिमी है। यह सिर्फ एक राज्य से सत्ता जाना ही नहीं होगा बल्कि ‘कॉन्ग्रेस मुक्त भारत’ नारे को मजबूती मिलना भी होगा।
फ़िलहाल वेणुगोपाल ने दोनों नेताओं के हाथ ऊपर करके तस्वीर ले ली है। इससे भारत जोड़ो यात्रा और उस पर चल रहे राहुल गाँधी को राहत की साँस मिलेगी। हालाँकि, यह कहना मुश्किल है कि हाथ ऊपर कर फ़ोटो खिंचाने का असर कब तक रहेगा? किसी को नहीं पता कि कब जादूगर गहलोत किसी न्यूज़ चैनल के संवाददाता को बुलवाकर पायलट को फिर से कोई उपाधि दे दें।
इन सबके बीच पायलट असमर्थ नज़र आ रहे हैं। उनके पिता राजेश पायलट की स्वाभिमान वाली राजनीति को आगे बढ़ाने के उनके दावे और प्रयास अभी तक असफल ही दिखे हैं। गहलोत के ‘गद्दार’ और ‘कल के बच्चे’ जैसी टिप्पणियों पर पायलट की मौन स्वीकृति से प्रतीत होता है कि वे असहाय हैं और इतने अपमान के बाद भी कॉन्ग्रेस पार्टी में ही मुख़्यमंत्री बनने की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
वहीं कॉन्ग्रेस को अध्यक्ष चुनाव में असहज कर चुके गहलोत समय-समय पर गाँधी परिवार सहित कॉन्ग्रेस नेतृत्व को अपनी शक्ति का अहसास कराते रहेंगे। शायद गहलोत भी जानते हैं कि ‘राजनीति के जादूगर’ जैसे तमगे को पहने रखने के लिए उन्हें ऐसे सियासी खेल रचते रहने होंगे।