वित्तीय वर्ष 2022-23 में राजस्थान की गहलोत सरकार ने बजट में अभूतपूर्व फैसला करते हुए ऐसी घोषणा कर दी, जो संवैधानिक तौर पर मुमकिन ही नहीं थी। गहलोत ने न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को ख़त्म कर अपने कर्मचारियों के लिए फिर से ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू की। करीब साढ़े 5 लाख कर्मचारियों ने इसका जश्न मनाया और देशभर में इसकी तारीफ भी हुई।
अब वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में निगम-बोर्ड आदि के कर्मचारियों भी ओपीएस के दायरे में शामिल कर लिया गया है। यानी 100 फीसदी ओपीएस लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बन गया है। यहां की देखादेखी कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों ने भी ओपीएस का ऐलान कर दिया। लेकिन इसके पीछे का स्याह पहलू दिल-दहलाने वाला है। सच यह है कि ओपीएस के बहाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान के 8 लाख से अधिक कर्मचारियों को गहरे अंधेरे कुएं में धकेल दिया है। वह भी बिना उनकी मर्जी के। आने वाले कुछ सालों में जब यही कर्मचारी रिटायर होंगे तो खून के आंसू रोने को मजबूर होंगे।
ओपीएस का पैसा सरकार को कहां से देना था?
गहलोत सरकार ने ओपीएस लागू की। कर्मचारी साल 2004 से जो राशि एनपीएस में जमा करा रहे थे, अब रुकवा दी गई है। गहलोत का विचार था कि एनपीएस के तहत पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) में जमा कर्मचारियों की अब तक की राशि (करीब 35 हजार करोड़ रुपए) को जीपीएफ यानी जनरल प्रोविडेंट फंड में शिफ्ट किया जाएगा। कर्मचारी जब रिटायर होंगे तो उन्हें यही राशि पेंशन के रूप में दी जाएगी।
फिर पेच कहाँ फंसा?
गहलोत सरकार ने एनपीएस का पैसा लौटाने के लिए पीएफआरडीए को पत्र लिखा, लेकिन पीएफआरडीए ने इसे लौटाने से इनकार कर दिया। पीएफआरडीए ने कहा- ‘पीएफआरडीए एक्ट-2013 व पीएफआरडीए रेग्युलेशन 2015 के तहत राज्यांश व कर्मचारी के अंश की जमा राशि को राज्य सरकार की रेवन्यू रिसीद में लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है।’
इसके अलावा केंद्रीय वित्त सचिव और अब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा कि एनपीएस में जमा पैसा राज्य सरकार को नहीं दिया जा सकता। वित्त मंत्री को तो संसद में कहना पड़ा कि ऐसा करने के लिए संविधान में ही संशोधन करना पड़ेगा।
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केंद्र यह पैसा क्यों नहीं लौटा रहा?
निश्चित रूप से ओपीएस लागू करना मुख्यमंत्री गहलोत का मास्टरस्ट्रोक साबित होता, लेकिन इसे बिना तैयारी के लागू किया गया। यही वजह है कि पेंशन का पेच फंस गया।
अभी एनपीएस के मौजूदा क्लॉज में एग्जिट के 3 विकल्प हैं-
1. वीआरएस लेने पर : यदि कोई कर्मचारी वीआरएस लेता है तो उसे एनपीएस का पैसा मिलता है, लेकिन इसमें भी 80% राशि फिर फंड में रिइन्वेस्ट करनी होती है।
2. रिटायरमेंट पर : ऐसे में कर्मचारी को 40% राशि फंड में रिइन्वेस्ट करनी पड़ती है।
3. कर्मचारी की मृत्यु होने पर : ऐसे में परिवार को फंड में जमा पूरी राशि मिल जाती है।
यानी साफ है- एनपीएस का पैसा राज्य सरकार को लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। यह राशि सिर्फ और सिर्फ कर्मचारी की है। नियोक्ता यानी सरकार की नहीं।
अब कर्मचारियों का क्या होगा?
ओपीएस का असर अभी तो नहीं दिखाई दे रहा, लेकिन कर्मचारियों, उनके परिवार और आने वाली सरकारों के लिए गहलोत गड्ढा खोदकर गए हैं। साल 2004 के बाद नियुक्ति पाने वाले कर्मचारी 2030 के करीब रिटायर होंगे। असली संकट तो तब खड़ा होगा। अब भी जो 500 से अधिक कर्मचारी रिटायर हुए भी हैं, उनकी पेंशन शुरू नहीं पा रही है।
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कर्मचारियों को परेशानी क्या?
पिछले एक साल से कर्मचारियों की न तो एनपीएस में कटौती हो रही है न जीपीएफ में। इसके अलावा स्टेट इंश्योरेंस का पैसा भी नहीं कट रहा। ऐसे में कोई कर्मचारी रिटायर होता है तो उसे कहां से पेंशन मिलेगी- इसकी कोई जानकारी नहीं है।
कहा जा रहा है कि रिटायरमेंट होने के बाद कर्मचारी की पेंशन तभी शुरू हो सकेगी, जब वह एनपीएस खाते में ब्याज सहित जमा अपनी सारी रकम राज्य सरकार को देगा। यही नहीं, यदि सर्विस के बीच में कर्मचारी ने कभी खाते से कुछ रकम विदड्रॉल की हो तो तब से अब तक के ब्याज सहित वह राशि भी कर्मचारी को लौटानी होगी। इसके बाद सरकार जीपीएफ खाते में यह राशि जमा कर उसकी पेंशन शुरू करेगी।
उदाहरण :
- करीब 20 साल की सर्विस के बाद यदि किसी क्लर्क के एनपीएस खाते में 30 लाख रुपए जमा हैं तो रिटायरमेट के बाद उसे ये 30 लाख रु. और इस पर मिला ब्याज सरकार को देना होगा। मान लें कि उसने साल 2012 में खाते से 4 लाख रु. निकाले थे। वह 2030 में रिटायर होता है। ऐसे में उसे 4 लाख रु. और 2012 से 2030 तक का ब्याज सरकार को देना होगा
- इसके बाद पेंशन शुरू होगी।किसी कर्मचारी की मृत्यु 57 साल में हो जाती है। उसके एनपीएस खाते में 40 लाख रु. जमा हैं। ऐसे में परिवार को पेंशन तभी मिलेगी, जब यह राशि सरकार को दी जाएगी।
अब सबसे बड़ी दुविधा क्या है?
- एक जनवरी 2004 के बाद जो कर्मचारी सरकारी सेवा में आए, उनके कांट्रेक्ट में लिखा है कि सरकार उन्हें एनपीएस देगी। लेकिन एनपीएस से बाहर आते वक्त सरकार ने उनसे सहमति नहीं ली। यानी मैं ओपीएस लेना चाहता हूं या नहीं, इसका विकल्प मेरे पास नहीं है
- अभी जीपीएफ से कर्मचारी जीरो परसेंट ब्याज पर लोन लेते थे। अब क्योंकि जीपीएफ में कटौती हो नहीं रही। इसलिए कर्मचारी यह लोन भी नहीं ले पा रहे।
मतलब साफ है- जादूगर गहलोत तो राजस्थान को अंधेरे कुएं में धकेल ही चुके हैं, लेकिन जिन राज्यों ने उनकी देखा-देखी ओपीएस लागू की, वे भी मुश्किल में पड़ गए हैं। हैरानी नहीं होगी, यदि आने वाले दिनों में ओपीएस वापस लेने को लेकर देश में सबसे बड़ा आंदोलन शुरू हो जाए। ओपीएस कर्मचारी लुभावन और ऐतिहासिक जरूर हो सकता है, लेकिन बिना तैयारी के उठाया यह कदम आने वाले दिनों में बहुत भारी पड़ेगा।