भारत G20 सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहा है लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दिल्ली नहीं आए हैं। G20 सम्मलेन के बीच चीन को अब एक सामरिक एवं कूटनीतिक रूप से बड़ा झटका लगने जा रहा है। चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब एक साथ आये हैं। ये चारों देश एक समझौता करेंगे जिसके तहत रेलवे एवं समुद्री मार्ग के जरिये यूरोप और मिडिल ईस्ट को भारत से जोड़ा जाएगा।
सका उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को एक रेलवे नेटवर्क तथा उन्हें बंदरगाह द्वारा भारत से जोड़ना है। इसका सर्वाधिक लाभ माध्यम वर्ग को होगा। इस रेलवे नेटवर्क से माल ढुलाई समय, लागत और ईंधन के उपयोग में कटौती कर खाड़ी से यूरोप तक ऊर्जा और व्यापार के प्रवाह में भी मदद मिलेगी।
क्या है योजना
यह योजना एक विशाल आर्थिक गलियारा बनाने की है जो मिडिल ईस्ट देशों को रेलवे के जरिये जोड़ेगा और फिर मिडिल ईस्ट को पोर्ट्स एवं शिपिंग के जरिए भारत को जोड़ेगा। इसमें यूरोपीय संघ भी शामिल होगा।
अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “इन तीन क्षेत्रों को जोड़ने से और वाणिज्य (कॉमर्स), ऊर्जा और डिजिटल संचार के प्रवाह से समृद्धि बढ़ाने में मदद मिलेगी”
उन्होंने कहा, “यह वैश्विक बुनियादी ढांचे के लिए एक सकारात्मक एजेंडा और दृष्टिकोण है जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका और हमारे साझेदार पेश कर रहे हैं।”
ज्ञात हो कि यह परियोजना पहली बार इस वर्ष मई में सुर्खियों में आई थी जब चार देशों के शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों ने सौदे पर चर्चा के लिए सऊदी अरब में मुलाकात की।
अब उम्मीद लगाई जा रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट के लिए साझेदारी के एक हिस्से के रूप में इस परियोजना की घोषणा करेंगे।
चीन को मिलेगी टक्कर?
इस परियोजना को चीन की महत्वाकांक्षी योजना बीआरआई का जवाब माना जा रहा है। वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना (अब बीआरआई) को शुरू किया था जिसके तहत चीन ऐतिहासिक सिल्क रूट को फिर से विकसित करना चाहता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान समेत करीब 150 से ज्यादा देश इस योजना का हिस्सा हैं वहीं मिडिल ईस्ट के सऊदी अरब, कुवैत और बहरीन जैसे राष्ट्र भी इसमें शामिल हैं।
हालाँकि चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव सिर्फ स्वयं के हितों की पूर्ति के लिए शुरू किया गया एक विस्तारवाद का जाल है। जिसमें निवेश के नाम पर आर्थिक रूप से कमजोर देशों को कर्ज में फंसा दिया जाता है और फिर मजबूरन उन देशों को चीन की मन मुताबिक समझौता करना पड़ता है अब स्थति ये कि कोई देश चीन से इससे जुड़ना नहीं चाहता है।
भारत कर रहा है मुकाबला लेकिन राहुल गाँधी…?
भारत चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ लड़ रहा है। इसके लिए भारत अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रों से कूटनीतिक समझौते कर रहा है। इसमें वे देश भी शामिल हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं लेकिन सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं हाल ही में आशियान समिट में भी प्रधानमंत्री मोदी ने चीन का नाम लिए बिना चीन की आक्रमकता को लेकर निशाना साधा था।
प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत के इंडो पैसिफिक पहल में भी आसियान क्षेत्र का प्रमुख स्थान है और ग्लोबल साउथ की आवाज को बुलंद करने में हम सबके साझे हित हैं।
कयास ये लगाए जा रहे हैं कि अब भारत, अमेरिका और मिडिल ईस्ट की इस विशाल योजना में इजराइल भी शामिल हो सकता है। इजराइल के बंदरगाहों के जरिए इसे यूरोप से भी जोड़ा जा सकेगा। मिडिल ईस्ट में रेलवे का जाल और भारत से जुड़ने के लिए समुद्री रास्ते, वैश्विक कूटनीति में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है।
ये कदम राहुल गाँधी जैसे नेताओं के लिए भी सबक होने वाला है जो कहते हैं कि भारत के पास चीन के बीआरआई की तरह कोई वैश्विक दृष्टिकोण नहीं है।
दरअसल राहुल गाँधी ने कल यूरोप में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि “चीन दुनिया के लिए एक विशेष दृष्टिकोण प्रस्तावित कर रहा है। वे ‘बेल्ट एंड रोड’ का विचार रख रहे हैं। चीनी ऐसा करने में सक्षम हैं क्योंकि वे वैश्विक उत्पादन का केंद्र बन गए हैं। मुझे हमारी ओर से कोई वैकल्पिक दृष्टिकोण आता नहीं दिख रहा है।”