भारतीय रेलवे एक बार फिर अतिक्रमण हटाने को लेकर चर्चा में है। उत्तर रेलवे प्रशासन ने दिल्ली में अवैध बनी मस्जिदों को नोटिस जारी कर 15 दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है। रेलवे के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर निर्धारित समय सीमा के भीतर अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तो वे अपनी जमीन पर कब्जा करने के लिए जरूरी कार्रवाई करेंगे। वहीं इसके जवाब में दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह कार्रवाई तथ्यों और कानून के विरुद्ध है।
तर्क यही दिया गया कि ये वर्षों पुरानी मस्जिद हैं, ऐतिहासिक मस्जिद हैं और धार्मिक-सांस्कृतिक परिदृश्य का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं। प्रश्न ये है कि क्या धार्मिक/मज़हबी आस्था के नाम पर अतिक्रमण स्वीकार्य हो जाएगा? इस प्रश्न का उत्तर अगर उस भूमि पर रहने वाले लोगों से पूछा जाए तो वे इससे सहमत दिखेंगे और परिणाम स्वरूप मामला न्यायपालिका के समक्ष पहुंचेगा। संभव है कि न्यायपालिका भी लोगों की भावनाओं को आगे रखे क्योंकि फिलहाल अवैध रूप से बसे लोगों की भावनाओं को भी वैध ही माना जाता है।
जहाँ अतिक्रमण के साथ धार्मिक भावनाओं का मामला न हो वहां ये मानवीय पहलू हो जाता है। हल्द्वानी के मामले में यही देखा गया, वर्षों से रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण कर हज़ारों लोग बस गए और जब हाईकोर्ट ने हटाने का आदेश जारी किया तो सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय पहलू देखते हुए रोक लगा दी।
अतिक्रमणकारियों का हटाने का ये प्रयास किसी स्थानीय या राज्य प्रशासन द्वारा नहीं किया जा रहा है बल्कि भारत के सबसे बड़े संस्थान भारतीय रेलवे द्वारा किया जा रहा है और वर्षों से किया जा रहा है तथा देशभर में किया जा रहा है।
जब अंग्रेजों ने भारत की रेलवे प्रणाली का निर्माण किया तो उन्होंने एक विशाल नेटवर्क की परिकल्पना की। परिणामस्वरूप उन्होंने भविष्य के विस्तार के लिए इस प्रकार भूमि तय की कि वर्षों बाद भी भूमि की आवश्यकता पड़े तो समस्या न हो। हालाँकि अक्सर जब रेलवे को उस ज़मीन की ज़रूरत होती है तो उस पर अतिक्रमण पाया जाता है।
भारत के 68 रेलवे डिवीजनों सहित सभी 17 जोनल रेलवे इस समस्या का सामना करते हैं। रेलवे की उत्पादन इकाइयों की जमीन भी अतिक्रमण की जद में है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान में भारतीय रेलवे के पास 4.86 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से 782.81 हेक्टेयर भूमि अतिक्रमण के अधीन है।
इस समस्या के लिए हरियाणा और गुजरात के मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि अतिक्रमण के लिए रेलवे के अधिकारी जिम्मेदार हैं। वहीं जब रेलवे द्वारा विभिन्न शहरों में लोगों के जबरन क़ब्ज़े से अपनी ज़मीन वापस लेने के प्रयास किया जाता है तो एक विरोध न्यायपालिका की ओर से ही किया जाता है। यह सबसे बड़ा विरोधाभास है।
दूसरा विरोध वहां अवैध रूप से बसे लोगों की ओर से किया जाता है।
लोगों की ओर से यह विरोध इसलिए किया जाता है क्योंकि उन्हें अधिकारों की गलत परिभाषा पढ़ाई या सिखाई जाती है। वे भीड़ और संख्या को अधिकारों की गारंटी के अनुक्रमानुपाती समझते हैं। उनमें अवैध रूप से बसे होने के बाद भी न्यायालय तक पहुंचने का आत्मविश्वास झलकता है।
इस आत्मविश्वास की पृष्ठभूमि में वोट बैंक की राजनीति की अहम भूमिका रहती है। हल्द्वानी मामले में कांग्रेस के स्थानीय विधायक अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आये थे। कोलकाता में कलकत्ता हाईकोर्ट के लगभग तीस वर्ष पुराने ऑर्डर के बावजूद लेक गार्डेंस में बहुत बड़ी ज़मीन को क़ब्ज़े से नहीं छुड़ाया जा सका क्योंकि सत्ताधारी दल के सांसद तक मौक़े पर जाकर उसका विरोध करते हैं। वहीं राजधानी दिल्ली में रेलवे की भूमि पर बस्तियाँ परमानेण्ट हो चुकी हैं।
दरसअल, स्थानीय सरकार के सहयोग के बिना अतिक्रमण के खिलाफ कोई भी अभियान नहीं चलाया जा सकता। इसलिए कुछ राज्य सरकारों द्वारा अपने वोट बैंक को बचाने के इन अभियानों को अलग-अलग बहानों का हवाला देकर टाल दिया जाता है।
इसका परिणाम ये है कि दिल्ली स्थित उत्तर रेलवे की 158 हेक्टेयर भूमि अतिक्रमण के अधीन है जो भारत में सबसे अधिक है और इसके बाद कोलकाता स्थित दक्षिण पूर्वी रेलवे है, जिसकी 140 हेक्टेयर भूमि आधिकारिक तौर पर अतिक्रमण का शिकार है। पिछले तीन वर्षों में रेलवे ने सबसे अधिक अभियान भी कोलकाता स्थित पूर्वी रेलवे में चलाये हैं, जबकि गोरखपुर स्थित उत्तर पूर्वी रेलवे ने सबसे अधिक 14.45 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया।
इस पूरे विमर्श में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह लड़ाई राज्य के अस्तित्व को लेकर भी है क्योंकि राज्य अपनी जमीन के हक़ के लिए संघर्ष कर रहा है। यह संघर्ष किसलिए? राज्य के नागरिकों को सुविधा देने के लिए।
अक्सर रेलवे में अधिक भीड़भाड़ होने से अव्यवस्थाओं की तस्वीरें सामने आती रहती हैं। इन तस्वीरों की तुलना विकसित राष्ट्रों के रेलवे से की जाती है परन्तु उस वक़्त इस तथ्य को किनारे कर दिया जाता है कि इन राष्ट्रों में रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण नहीं किया जाता है और ना वहां की न्यायपालिका और वोट बैंक की राजनीति इस अतिक्रमण को हटाने में बाधा बनती हैं। एक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना उसके संसाधनों पर अतिक्रमण के साथ नहीं की जा सकती है।
भारतीय रेलवे ने दिया दशकों पुरानी 2 मस्जिदों को हटाने का आदेश, 15 दिन में होगा एक्शन