राजस्थान में राहुल गांधी देर से पहुँचे, यह समस्या नहीं है पर देर से भी वो तैयारी के साथ नहीं पहुँचे, यह समस्या है। राहुल गांधी ने चुनावी भाषण में वो ही दोहराया जो वे अमूमन बाकि राज्यों के चुनाव में कहते आए हैं। जातिवादी राजनीति के लिए जातिगत जनगणना, अडानी एवं रेवड़ियां बांटती योजनाएं उन विषयों का प्रमुख कथ्य रहा जिनपर राहुल गांधी ने बात की।
राहुल गांधी शायद यह भुल गए कि यह लोकसभा चुनाव नहीं है। यह विधानसभा चुनाव है जिसमें राज्यगत अलग-अलग समस्याएं होती है औऱ अलग-अलग मुद्दे।
राजस्थान, जहां वर्तमान में कांग्रेस सरकार है क्या उसके जनमानस की अपेक्षाएं राहुल गांधी नहीं समझ पाएं? यही कारण है कि उन्होंने अपने भाषण में एक भी ऐसे मुद्दे पर बात नहीं की जिनके इर्द–गिर्द राज्य का चुनाव केंद्रित है। सबसे पहले तो राहुल गांधी राज्य की बदतर कानून व्यवस्था एवं अपराधों की रोकथाम को लेकर बात कर सकते थे। मणिपुर और उत्तर प्रदेश के संज्ञान में बार-बार भारत माता को याद करने वाले राहुल गांधी राज्य की कानून व्यवस्था और जघन्य अपराधों पर बात क्यों नहीं कर पाए। क्या राजस्थान में अपराधों से पीड़ित लोगों के लिए आवाज उठाना आवश्यक नहीं है?
कांग्रेस पार्टी के उत्तराधिकारी ने जातिगत जनगणना की बात करके ओबीसी प्रतिनिधित्व की बात की। हालांकि राजस्थान में बढ़ती बेरोजगारी में किस प्रकार वो किसी भी वर्ग का प्रतिनिधित्व करेंगे इसके बार में चर्चा की जानी चाहिए थी। जातिगत आरक्षण मिलने के बाद भी कौन से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे, जबकि राज्य की सरकारी भर्तियां धांधलियों और पेपर लीक जैसी समस्याओं से घिरी हुई हैं। राज्य का युवा नौकरियों की आस में बैठा है। घोषणा पत्र में भर्तियां निकालना काफी नहीं है उन्हें इस बात का आश्वासन चाहिए कि उनकी मेहनत किसी धांधली की भेंट नहीं चढ़ेगी।
एक राजनेता के तौर पर राहुल गांधी को इसलिए विफल कहा जाता है कि वे जनमानस को पढ़ पाने में असमर्थ हैं। जनता की भावनाओं को समझ कर निर्णय लेने वाला नेता न सिर्फ जमीन से जुड़ता है बल्कि उसकी योजनाओं और कार्यों में भी यह परलक्षित होता है। अब राहुल गांधी जिन मुद्दों पर बात करते हैं उन्हें सुनकर यही लगता है कि वे जनता की नहीं बल्कि केवल अपने भाषण की बात सुनते हैं और उसी पर बात करते हैं।
जिन उम्मीदों के साथ राजस्थान की जनता ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता दी थी वो कितनी पूरी हुई है? राहुल गांधी किसान, एमएसपी और देश के दो धड़े में होने की बात कर रहे हैं पर वे इस मुद्दे को संबोधित करने में विफल रहे हैं कि क्यों राजस्थान देश का सबसे अधिक कर्जदार राज्य है और किस प्रकार कांग्रेस राज्य को कर्ज से बाहर निकालने में काम करेगी?
पर्यटन से समृद्ध राजस्थान में नौकरियों की क्यों कमी है, सांस्कृतिक धरोहर और सभ्यता संजोए राज्य में महिला अत्याचार चरम पर क्यों है? और विकास की योजनाओं पर सरकार क्यों काम नहीं कर रही है?
इन सवालों को बीते कार्यकाल का हिस्सा मानकर भुला भी दें फिर भी आगामी सरकार में कांग्रेस इनपर किस प्रकार कार्य करेगी, इसका जिक्र राहुल गांधी को करना चाहिए था।
चुनावी रैलियां और सभाएं आगामी सरकार का विजन पेश करने के लिए ही तो होती है। अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि लोकसभा में कांग्रेस की सरकार बनने पर वे जातिगत जनगणना करवाएंगे। प्रश्न यह है कि फिलहाल राजस्थान में चुनाव और यहां पर कांग्रेस की सरकार आती है तो वे क्या करेंगे?
यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जनता के मुद्दों पर बात नहीं करते हैं। वे अपने 2-4 मुद्दे चुनते हैं औऱ देशभर में उनपर ही बात करते हैं। राजस्थान के चुनावों में अंतिम समय उपस्थिति दर्ज करवाने पहुँचे राहुल बाबा की ओर इशारा कर जनता अब भी यही कह रही है कि इन चुनावी वादों में हमारे लिए क्या है?
यह भी पढ़ें- राजस्थान कांग्रेस को क्यों महसूस नहीं हो रही स्टार प्रचारक राहुल गांधी की कमी?