राहुल गांधी ने औपचारिक रूप से अयोग्य घोषित होने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेस की। वैसे वे प्रेस कॉन्फ्रेस करते ही रहते हैं पर इसबार यह खास वार्ता थी जिसमें वे अपने गांधी परिवार के गौरव और ‘सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट’ के साथ बैठे थे। प्रेस कॉन्फ्रेस में जवाब देने में समय ना जाया करते हुए उन्होंने अपनी दो तिहाई ऊर्जा अपने आपको गांधी बताने और उसकी महत्ता समझाने में लगानी ही उचित समझी।
इस दौरान राहुल गांधी ‘ओफेंडेंड’ भी नजर आए। उनके लिए यह मानना बेहद मुश्किल हो रहा था कि किस तरह गांधी परिवार के सदस्य को भारतीय अदालत द्वारा सजा सुनाई जा सकती है? अपनी सजा को उन्होंने लोकतंत्र से जोड़ दिया है। उनपर सवाल उठाने वाले भी लोकतंत्र विरोधी हैं। गांधी परिवार का सदस्य होने के नाते वे इतना हक तो रखते हैं कि किसी जाति का अपमान कर सकें। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का तो यही मानना है। उनका कहना है कि नेता रैलियों में आवेग में ऐसी बाते कहते रहते हैं इसमें उन्हें सजा देना कहां तक सही है। राहुल गांधी का अंध समर्थन कॉन्ग्रेस नेता ही नहीं बल्कि विदेश में बैठे वोक भी कर रहे हैं। यह सब भी मात्र इसलिए क्योंकि राहुल के पीछे गांधी लगा है।
राहुल गांधी को सजा भले ही पहली बार हुई हो पर किसी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग उनके लिए नई बात नहीं है। चौकीदार चोर है, हिंदूओं को आतंकवादी बताना, गरीबी एक मानसिकता है, मेक इन इंडिया को रेप इन इंडिया कहना, पीएम मोदी खून की दलाली कर रहे…सूची बेहद लंबी है। अगर समय रहते ही राहुल गांधी अपनी गलतियों की माफी मांग लेते तो आज कोर्ट द्वारा मुजरिम और लोकसभा द्वारा अयोग्य सांसद करार नहीं दिए जाते।
वैसे उन्होंने माफी मांगी थी, वर्ष 2018 में। तब कोर्ट ने उन्हें इस तरह के अपमानजनक बयान को न दोहराने की सलाह भी दी थी पर वे ठहरे गांधी और गांधी किसी की नहीं सुनते।
राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि और एमके गांधी से गोद लिए सरनेम की विरासत को राहुल अपने लिए देश में सर्वोच्च स्थान का पेटेंट करा चुके हैं। इसलिए उनका दंभ से भरा व्यवहार मात्र विरोधी दल के नेता के प्रति नहीं अपनी पार्टी के चयनित प्रधानमंत्री के प्रति भी दिखाई देता था। राहुल गांधी की सजा के बाद से ही वर्ष 2013 में उनके द्वारा अध्यादेश फाड़ने की बात को लगातार याद किया जा रहा है पर यह बात कोई नहीं कर रहा कि अध्यादेश फाड़कर राहुल गांधी ने कौन से लोकतंत्र की रक्षा की थी? क्या यह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अपमान नहीं था?
प्रियंका वाडरा सही कहती हैं; यह राहुल गांधी की गलती नहीं है कि वो गांधी परिवार में जन्म लिए हैं। अब जन्म लिया है तो वे माफी तो नहीं मांग सकते। हां, अगर वो नेहरू परिवार में जन्म लेते तो उन्हें माफी की महिमा पता होती।
राहुल गांधी का अयोग्य घोषित किया जाना महज एक औपचारिकता थी
बीते दिनों में बहुत कुछ हुआ है। राहुल गांधी ने अपने आपको तपस्वी बताया है। वो ही एकमात्र नेता हैं जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़े हैं और इसकी रक्षा करने के लिए ही उनको 2 वर्ष की सजा सुनाई गई है। कम से कम कॉन्ग्रेसी नेताओं की अंतरात्मा की आवाज तो यही कहती है। वे मानने को तैयार ही नहीं है कि कोर्ट द्वारा उन्हें वास्तव में उनके अपमानजनक व्यवहार के लिए सजा सुनाई जा सकती है। संभव है कि यह भावना उस विशेषाधिकार से आती है जो उन्होंने गांधी परिवार में जन्म के साथ प्राप्त हुई है।
देश को तीन प्रधानमंत्री देने वाला गांधी परिवार आज देश चलाने में भूमिका चाहता है। जनता उनका समर्थन करे या न करें पर वे मान बैंठे हैं कि लोकतांत्रिक मूल्य उनके पक्ष में हैं क्योंकि वह गांधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। यह सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट उन्हें जनसेवक बना ही नहीं पाता है। राजनीति में अपनी पारी शुरू करने के साथ ही राहुल गांधी ने कई बेतुके बयान दिए हैं। उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल उठाए जा सकते हैं, पर नहीं उठाए जाते।
राहुल गांधी की सजा के विरोध में कॉन्ग्रेसी सत्याग्रह कर रहे हैं और काले कपड़े पहन रहे हैं पर यह सब वो सरकार के विरुद्ध क्यों कर रहे हैं? सजा तो कोर्ट द्वारा सुनाई गई है।
वो कभी स्वयं को मार देते हैं, कभी स्वयं को भारत की आवाज के लिए लड़ने वाला बताते हैं। वो चीन पर झूठ फैलाते हैं तो विदेश में जाकर वहां भारत में दखल के लिए आह्वान देते हैं। इन सब के बाद भी कहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र की रक्षा उनके द्वारा की जा रही है। विडंबना यह है कि उनके अनिश्चित व्यक्तित्व एवं राजनीतिक अकुशलता के बाद भी वो देश की राष्ट्रीय पार्टी के नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आते हैं। उनकी बातों का मतलब न समझ पाने वाले लोग भी उनके सामने बैठकर गर्दन हिलाते नजर आते हैं तो इसलिए कि उन्हें राहुल गांधी के विशेषाधिकार का पता है।
राहुल गाँधी की झूठ बोलने की आदत लोकतंत्र के लिए खतरा है
राहुल गांधी कॉन्ग्रेस को उबारते हैं या इसका संपूर्ण खात्मा कर देते हैं, यह उनका पारिवारिक सरोकार है पर प्रश्न यह है कि उनके सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट को देश क्यों एंटरटेन करे? 19 वर्ष की उनकी राजनीतिक विफलता को उनका राजनीतिक सफर क्यों करार दिया जा रहा है?
यह सब गांधी परिवार और गांधीवादी दर्शन के नाम पर हो रहा है। किसी को उनके अपमानजनक शब्दों के लिए सजा देना किस तरह गांधीवादी दर्शन के विरुद्ध है इस बात की व्याख्या विशुद्ध रूप से कॉन्ग्रेसी नेताओं द्वारा ही की जा सकती है। आखिर एक वो ही तो हैं जो राहुल गांधी के छुपे हुए करिश्माई नेतृत्व को देख पाए हैं।