राहुल गाँधी यात्रा कर चुके हैं और कल वो देश का मनोरंजन करने के लिए संसद में उपलब्ध थे। मनोरंजन के मामले में राहुल गाँधी ने देश को शायद ही कभी निराश किया हो और कल का दिन भी कोई अपवाद नहीं था। राहुल गाँधी की बातों में तथ्य ढूंढना वैसा ही है जैसे भंडारे के मटर पनीर में पनीर ढूंढना। फिर भी राहुल गाँधी ने जो भी संसद में कहा उसका सर्वेक्षण करना बनता है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि राहुल गाँधी का महत्व है बल्कि इसलिए क्योंकि संसद की गरिमा, संसदीय बहस का महत्व है। ये जानना जरूरी है कि राहुल गाँधी नामक व्यक्ति इस देश की संसद को मजाक बनाने पर तुला है।
राहुल गाँधी की पार्टी शायद अडानी के बारे में आई एक रिपोर्ट और उसके बाद शेयर बाजार में जो हुआ, उस मुद्दे पर संसद में बहस करना चाहती थी। कम से कम समाचार पत्रों के माध्यम से मेरे जैसे साधारण व्यक्ति को यही पता चला। सरकार बहस के लिए तुरंत तैयार हुयी और मेरे जैसे को ये अपेक्षा थी कि पिछले कुछ हफ़्तों में अडानी साम्राज्य के साथ शेयर मार्किट में जो कुछ हुआ उससे जुड़े प्रश्नों के बारे में साधारण जनता को सामान्य भाषा में राहुल गाँधी से कुछ जानने को मिलेगा। आखिर विद्वान लोगों का पिछले कुछ दिनों से ये कहना था कि राहुल गाँधी अपनी पप्पू कि छवि से बाहर निकल आये हैं। विद्वानों के इस दावे के पीछे दो मान्यताएं थी। पहली कि राहुल गाँधी वास्तविक जीवन में पप्पू यानि मूर्ख नहीं हैं और दूसरी ये कि बीजेपी ने उनको पप्पू सिद्ध करने के लिए अथाह पैसे खर्च किये। संसद में अडानी मुद्दे के ऊपर बहस ने राहुल गाँधी को विद्वानों को सही साबित होने का मौका दिया था।
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राहुल गाँधी का अडानी के मुद्दे पर पूरा वक्तव्य सुनने के बाद मैं अभी तक सोच रहा हूँ कि इस आदमी ने क्यों मुँह खोला। अब मेरे सामने ये भी स्पष्ट है कि इस मामले में सरकार बहस के लिए क्यों तैयार हुयी। सरकार इस मुद्दे को ये स्थापित करने के लिए उपयोग करने वाली है कि विद्वान गलत हैं और राहुल गाँधी पप्पू ही हैं। पूरे भाषण में राहुल गाँधी का कहना वही था जो वो पिछले आठ सालों से कह रहे हैं। उनकी बातों में कोई आंकड़ा नहीं था, सिर्फ आरोप थे कि अडानी को मोदी ने फायदा पहुंचाया और अग्निवीर योजना आरएसएस के ऑफिस में बनी। अडानी को मोदी ने फायदा पहुंचाया कहने के पीछे उनका तर्क ये था कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अडानी को एयरपोर्ट बनाने के ठेके मिले, रक्षा क्षेत्र में ठेके मिले और विदेश में ठेके मिले। अग्निवीर योजना आरएसएस ने बनाई, ये कहने के पीछे भगवान जाने उनके पास कौन से आंकड़े या दस्तावेज थे। अब थोड़ा आंकड़ों पर गौर करते हैं लेकिन राहुल गाँधी की कथा को प्रमाणित करने की जिम्मेदारी मेरी नहीं है इसलिए मैं सिर्फ एक मामले को रेखांकित करूँगा।
पाठकों को मालूम हो कि दिसंबर 2022 में देश के विभिन्न समाचार पत्रों में देश के आधिकारिक सूत्रों के हवाले से छपी खबर के अनुसार देश में हवाई अड्डों की संख्या 2014 में 74 से बढ़ कर 140 हो गयी थी। राहुल गाँधी के आंकड़ों के अनुसार अगर ये सभी हवाई अड्डे अडानी ने बनाये तो निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी सरकार की जांच होनी चाहिए। जहाँ तक हवाई अड्डों के निर्माण से सम्बंधित नीति में परिवर्तन की बात है जिसके कारण राहुल गाँधी के अनुसार सिर्फ अडानी को फायदा पंहुचा तो राहुल गाँधी की पार्टी नीति में परिवर्तन की घोषणा होते ही नीति को कोर्ट क्यों नहीं ले गयी। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने सात एयरपोर्ट अडानी को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के अंतर्गत प्रतियोगिता के माध्यम से मैनेज करने के लिए दिए हैं जिससे भी अगर राहुल गाँधी या किसी और को कोई तकलीफ है तो वो कोर्ट क्यों नहीं गया।
जहाँ तक रक्षा क्षेत्र की बात है तो बहुत ढूंढने पर भी मुझको कोई ऐसी सूचना नहीं दिखी जो इस बात की पुष्टि करती हो कि भारत सरकार ने अडानी डिफेन्स से सेनाओं के लिए क्या खरीदा है। अगर राहुल गाँधी को आपत्ति अडानी के रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में कारोबार करने से है तो मैं ये समझ पाने में असमर्थ हूँ कि राहुल गाँधी किस आधार पर किसी उद्योगपति को किसी क्षेत्र में आने से रोक सकते हैं। इसमें भी अगर अडानी को किसी तरह से तरजीह दी गयी है तो भी अब तक मामला न्यायालय में होना चाहिए था। अगर अडानी द्वारा किसी कंपनी को खरीदे या बेचे जाने का मुद्दा है तो भी ऐसी प्रक्रियाओं की देखरेख के लिए देश में स्वायत्त संस्थाएं हैं। अगर राहुल गाँधी को ऐसी किसी संस्था के कार्यकरण में नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने के बारे में कोई सूचना है तो राहुल गाँधी ऐसी किसी सूचना को देश से क्यों छिपा रहे हैं। उनको ऐसी कोई सूचना संसद के माध्यम से देश के सामने रखनी चाहिए थी। राहुल जी के भाषण में ऐसी कोई सूचना रही हो ऐसा मुझको सुनते वक्त नहीं लगा। ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी ने कल का अपना भाषण कन्हैया कुमार से लिखवाया था इसीलिए उनके भाषण में वस्तुनिष्ठ प्रश्न और आंकड़े कम और सलीम जावेद की फिल्मों की हीरोइन का डायलॉग ज्यादा था। चाहे राहुल गाँधी ने भाषण खुद से लिखवाया हो या कन्हैया कुमार से, उनके भाषण की क्वालिटी ये सिद्ध करती है कि विद्वान राहुल गाँधी के बारे में गलत हैं और राहुल गाँधी पप्पू ही हैं। ये बात उनकी अग्निवीर योजना पर कही गयी बात से सिद्ध हो जाती है। सवाल ये उठता है कि क्या राहुल गाँधी को पता भी है कि भारत में योजनाएं कैसे बनती हैं।
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राहुल गाँधी अडानी की कंपनियों के साथ शेयर बाजार में जो हुआ उस मुद्दे पर बात करने के नाम पर भारत सरकार द्वारा विगत वर्षों में बनायीं नीतियों पर सवाल उठा कर क्या सिद्ध करना चाहते थे ये सिर्फ राहुल गाँधी और उनकी पार्टी के लोग ही बता सकते हैं। आखिर चर्चा का मुद्दा भारत सरकार की नीतियां तो थीं नहीं। इसके बाद भी अगर इन नीतियों में राहुल गाँधी की पार्टी को कोई बदनीयत दिख रही थी तो कांग्रेस पार्टी के नेता कोर्ट क्यों नहीं गए या जनता के सामने इन मुद्दों से सम्बंधित कागजात जनता के सामने क्यों नहीं रखे गए। राहुल गाँधी से ये भी सवाल पूछना बनता है कि अडानी मुद्दे से जुड़े ज्यादा गंभीर प्रश्नों को उन्होंने क्यों नहीं उठाया। आखिर तस्वीर तो उनके जीजा जी की भी अडानी के साथ है और उनकी पार्टी की राज्य सरकारों ने अडानी को कई प्रोजेक्ट दिए हैं।
राहुल गाँधी के भाषण सुन कर अपना समय बर्बाद करने के बाद सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा व्यक्ति संसद में घुसने देने और बोलने देने के लायक भी है। क्या पिछले कई वर्षों से राहुल गाँधी नाम का ये व्यक्ति भारत की लोकतान्त्रिक संस्थाओं को चुटकुले सुनाने की जगह में नहीं बदल रहा है। क्या सरकार से वास्तविक सवाल न पूछकर ये व्यक्ति लोकतंत्र को कमजोर नहीं बना रहा। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अब इस देश की लोकतान्त्रिक जनता को इस व्यक्ति से और इसकी मालिकाना हक़ वाली पार्टी से पूछना चाहिए। क्या इस देश का विपक्ष राहुल गाँधी जैसे पप्पू के पीछे चलेगा?