राहुल गांधी एक बार फिर विदेशों में हैं और भारत की निंदा करने में व्यस्त हैं। उनके इस पूरे कैम्पेन को ऐसा लिबास पहनाया गया है जिसमें बदल-बदल कर भी सिर्फ़ मोहब्बत की दुकान ही सामने आती है। मोहब्बत की दुकान के इस पूरे कांग्रेसी कैम्पेन को सिर्फ़ मोहब्बत के साथ ही नहीं पेश किया जा रहा है, साथ में ये भी कहा जा रहा है कि जो नफ़रत मोदी सरकार ने भारत में समुदायों के बीच बढ़ाई है, कांग्रेस उसमें मोहब्बत बाँटने का काम कर रही है।
सत्ता पाने की कांग्रेसी भूख इतनी प्रबल हो चुकी है कि उसे इसके लिए विदेशों में भारत की आलोचना और झूठ बोलने से परहेज नहीं है। अगर कांग्रेस के इस “मोहब्बत की दुकान” कैम्पेन की गहराई में जाएँ तो आपको ये ईसाइयों की पुस्तक बाइबिल से प्रेरित नज़र आएगा, जहां राहुल गांधी को मसीहा के रूप में दिखाया गया है जो कि विरोधियों द्वारा (यानी भाजपा) सताए जाने पर भी समाज में मोहब्बत बाँटकर उसे जोड़ रहा है। यानी प्यार और नफ़रत की एक काल्पनिक जंग चल रही है और राहुल गांधी इस जंग को मोहब्बत से जीतने वाले हैं।
कांग्रेस जब मोहब्बत की दुकान का नैरेटिव बोने का प्रयास कर रही है तब वो अपने ही परिवार और पार्टी के कुकर्मों पर पर्दा डालने की भी कोशिश कर रही है। मोहब्बत की दुकान की वास्तविकता ये है कि कांग्रेस का इतिहास रहा है कि किस तरह से उन्होंने हर उस आदमी को ठिकाने लगा दिया जिसने उनकी ताक़त को चुनौती दी। ये सिर्फ़ आज की बात नहीं है बल्कि नेहरू से ले अब तक यही कांग्रेस का चरित्र रहा है।
इस परिवार की नफरत की राजनीति का इतिहास कुछ ऐसा है कि इंदिरा गांधी ने देश को आपातकाल में झोंक दिया और 19 महीने तक विपक्षी नेताओं और तमाम भारतीयों पर अत्याचार किए। संविधान में मन मुताबिक़ बदलाव किए। असल में चुनाव के ठीक पहले मोहब्बत की दुकान का ये सारा ढोंग एक सोची-समझी रणनीति है, जो भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच दरार पैदा करने के लिए रची गई है। इसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीयों को गुमराह कर सत्ता हासिल करना है। हक़ीक़त यही है कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी मोहब्बत की दुकान नहीं बल्कि नफ़रत का मेगा मॉल चला रहे हैं।
एक नज़र डालते हैं कुछ क़िस्सों पर जो बताते हैं कि आज के बाद से ही इस एक परिवार ने सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत का बाज़ार ही चलाया है
भारत का विभाजन और पत्रकारों का दमन
भारत का विभाजन कौन भूल सकता है? देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू विभाजन के बाद आलोचना को स्वीकार नहीं कर सके और उनकी नीतियों के खिलाफ कार्टून प्रकाशित करने के लिए आर्गेनाइजर मैगज़ीन पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना काफ़ी नहीं था। बाद में चेन्नई की क्रॉसरोड्स पत्रिका पर उनकी नीतियों की आलोचना प्रकाशित करने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। SC ने जब इन प्रतिबंधों को रद्द कर दिया तो नेहरू ने, संविधान लागू होने के एक साल के भीतर ही इसमें संशोधन किया और इसके द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता पर ही नकेल कस ली।
कलाकारों को जेल में डालने वाली नफ़रत
साल उन्नीस सौ इक्यावन में गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को सिर्फ़ इसलिए जेल में डाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने नेहरू को ‘कॉमनवेल्थ का दास’ और ‘हिटलर’ बोल दिया था।
सुल्तानपुरी ने लिखा था,
“मन में ज़हर डॉलर के बसा के
फिरती है भारत की अहिंसा
खादी की केंचुल को पहनकर
ये केंचुल लहराने न पाए
ये भी है हिटलर का चेला
मार लो साथी जाने न पाए
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू
मार लो साथी जाने न पाए”
उन्नीस सौ बासठ के युद्ध में चीनी सैनिकों से मिली हार के बाद एक गांधीवादी व्यक्ति धर्मपाल को उनके दो सहयोगियों- नरेंद्र दत्ता और रूप नारायण के साथ गिरफ्तार किया गया और तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया। उनका अपराध ये था कि उन्होंने नेहरू से इस हार के लिए नैतिक रूप से इस्तीफ़ा देने की माँग लोकसभा में रखी थी।
नेहरू-गांधी परिवार की अपनों से भी नफ़रत
जब सरदार पटेल की मृत्यु हुई, तो नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले नौकरशाह अपने निजी खर्च पर ऐसा कर सकते हैं। राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की उपेक्षा की और दाह संस्कार के लिए चले गए। बाद में, जब 1963 में राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु हुई, तो जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति राधाकृष्णन को पटना में राजेंद्र प्रसाद के अंतिम संस्कार में शामिल होने में असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखा और नेहरू ने राधाकृष्णन को पटना न जाने की सलाह दी। उस वक्त भी डॉ एस राधाकृष्णन ने नेहरू की बात को नज़रअन्दाज़ किया और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अंतिम संस्कार में शामिल हुए ।
इंदिरा का आपातकाल
जिस तरह से आपातकाल लगाया गया और विपक्षी नेताओं और आम भारतीयों पर अत्याचार किए गए, उससे इंदिरा गांधी की देशवासियों के लिए मोहब्बत साफ़ दिखती है। 19 महीनों के लिए नागरिकों के अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और लोगों के बिना किसी कारण के गिरफ्तारी हो रही थी। कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी की कहानी उस नफरत का उदाहरण है जिसे कांग्रेस की मोहब्बत की राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है। स्नेहलता को जेल में जो यातनाएँ दी गईं उसकी जेल से निकालने के कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई।
मेनका गांधी का निष्कासन
संजय गांधी की 23 वर्षीय विधवा को संजय गांधी की मृत्यु के बाद पीएम हाउस से उनके 1 वर्षीय बेटे के साथ निकाल दिया गया। अगर मेनका गांधी के शब्दों में कहें तो उन्हें सोनिया गांधी के दबाव के कारण निकाला गया था।
“जब बड़ा पेड़ गिरता है“
राजीव गांधी ने तो सिखों की हत्या का मजाक तक ये कहकर बनाया था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। इंदिरा की हत्या के बाद देशभर में कांग्रेस के नफ़रती समर्थकों ने सिखों की हत्या की और आज राहुल गांधी कहते हैं कि वो मोहब्बत की दुकान चला रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से सीता राम केसरी को हिंसक तरीक़े से हटाना कोई कैसे भूल सकता है? केसरी के साथ धक्का-मुक्की की गई और उनकी धोती तक कांग्रेसियों द्वारा खींच ली गई। ये वो लोग थे जो उनके स्थान पर सोनिया गांधी को अध्यक्ष के रूप में स्थापित करना चाहते थे। बताया जाता है कि उन्हें बाथरूम में भी बंद कर दिया गया था।
पीएम पीवी नरसिम्हा से विश्वासघात
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की मृत्यु के बाद, कांग्रेस पार्टी ने राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया। पूर्व प्रधानमंत्रियों के दिल्ली में ही दाह संस्कार की परंपरा के विपरीत, कांग्रेस के दिग्गजों ने राव के परिवार पर दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार न करने के लिए दबाव डाला और हैदराबाद में उनके अंतिम संस्कार करने की बात कही। सोनिया गांधी या उनके बच्चों ने राव के अंतिम संस्कार में शामिल होने की भी जहमत नहीं उठाई और उन्होंने स्पष्ट रूप से उन्हें दिल्ली में राजकीय अंतिम संस्कार से वंचित कर दिया। बाद में स्थानीय टीवी स्टेशनों ने उनके आधे जले शरीर के दृश्यों को प्रसारित किया और यह साबित किया कि कैसे राव को उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें उस सम्मान से वंचित रखा गया था जिसके वो योग्य थे।
राम मंदिर से परेशान राहुल गाँधी के सैम पित्रौदा
फिरोज गांधी क्यों कांग्रेस की इस मोहब्बत से वंचित हैं?
आपको हैरानी नहीं होती कि राहुल गांधी ने पिछले 12 सालों में एक बार भी अपने दादा की समाधि पर जाने की कोशिश क्यों नहीं की? राहुल गांधी, उनकी बहन और मां के साथ उन्होंने सिर्फ 4 बार ही फिरोज गांधी की समाधि के दर्शन किए हैं। आख़िर ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि जिस आदमी ने इस परिवार को अपना सरनेम गांधी दिया, उस आदमी के सभी निशान मिटा दिए गए और वो प्रयागराज के कब्रिस्तान में भुला दिया गया। क्या फिरोज गांधी को मोहब्बत नहीं चाहिए?
प्रणब मुखर्जी से भी नाराजगी
आजीवन कांग्रेसी रहने वाले प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया, तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही इस समारोह में शामिल नहीं हुए। प्रणव दा के लिए इस परिवार की मोहब्बत क्यों नहीं जागी?
जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि ये मोहब्बत की दुकान कथा बाइबिल की कहानी का ही कांग्रेसी वर्जन है, लव एंड हेट जैसे अब्राहमिक शब्दों का बार बार इस्तेमाल किया जाना, भारत में सत्ता परिवर्तन की प्रक्रियाओं का ही हिस्सा है। यानी साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। इन शब्दों का बार बार इस्तेमाल भारत में अब्राहमिक धर्मों के मानने वालों के बीच राहुल गांधी के कथन को बढ़ाने में मदद करता है।
इसके अलावा, ये शब्द पश्चिमी देश की मीडिया को भी लुभाते हैं। ये वो लोग हैं जो 2014 से पहले से ही भारत में हस्तक्षेप कर रहे थे और वर्तमान सरकार पर ‘हिंदू मिलिटेंट’ जैसे नैरेटिव थोपने के काम में लगा हुआ है।
जब सत्ता पलटने की साज़िश में शामिल इकोसिस्टम को किसी देश में अपने प्रयोग करने होते हैं तो उनके बीच लव-हेट-व्यंग्य आदि शब्दों के इस्तेमाल की मात्र भी बढ़ जाती है। हालाँकि भारत एक ऐसा देश है जहां की आबादी पर ये सब तरीक़े काम नहीं करते। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 2024 में कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य भाजपा को दो सौ बहतर से कम सीटों में समेटना है ताकि पूर्ण बहुमत की बात ही ख़त्म हो जाए और भाजपा एंटी इनकंबेंसी का शिकार होती रहे।
यूगोस्लाविया और यूक्रेन में हाल ही के संघर्षों से देखा जा सकता है कि दुनिया भर में सत्ता परिवर्तन में जुटी हुई ताक़तें किस तरह से किसी देश के शक्ति के स्तंभों को ही समाप्त कर देना चाहती हैं। 2014 से 9 वर्षों के अनुभव में हमने देखा है कि कैसे पीएम मोदी का नेतृत्व भारत की सबसे बड़ी ताकत बन गया है और इस बात की तस्दीक़ ये तथ्य करता है कि पिछली दो सरकारें पूर्ण बहुमत वाली सरकारें थीं।
The Caravan ने चोरी के पोस्टर से फैलाया एजेंडा, अब मांगी माफी
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से इंफ़्रा से ले कर लोगों के आम जन जीवन को सुलभ बनाने वाले कई बड़े फ़ैसले लिए गए और वो धरातल पर भी दिखे, लेकिन कांग्रेस ने लोगों को इनके ख़िलाफ़ भड़काने में ही अपनी भूमिका निभाई। पिछले 9 वर्षों में भारतीय रेलवे में हुआ बड़ा परिवर्तन सफलता की कहानी कहता है और हाल ही में बालासोर में हुई दुर्घटना के बाद इसका राजनीतीकरण इस बदलाव के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने के लिए किया जा रहा है। इन वर्षों में आरबीआई, और बैंकिंग सिस्टम जैसे संस्थानों और अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों के संबंध में आर्थिक प्रगति पर भी कई बार हमला किया गया है। मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता की कहानी आंतरिक सुरक्षा में मिली कामयाबी है, लेकिन अब हो सकता है कि इसे भी निशाना बनाने का प्रयास किया जाए।