जी-20, क्वाड आदि की बैठकें नितांत अनावश्यक बातें हैं जिन पर मैं अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता तो किसी और दुकान पर देखिये। मेरी चर्चा सिर्फ गंभीर बातों पर केंद्रित है और देश में सिर्फ दो ही गंभीर लोग हैं- राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल तो केवल इन्हीं पर बात होगी।
अन्य चिंतकों के बरक्स आम आदमी पार्टी के आम राजनैतिक दल बनने की यात्रा भारतीय लोकतंत्र के लिहाज़ से उत्साहित करने वाली है। अरविन्द जी को बधाई। सामान्य आदमी जो पिछले 10 सालों से बेचैन था कि ये क्या बला आ गयी जो ईमानदारी के नाम पर वोट मांग रही है। ये सरासर ब्लैक मेल था भई। बताइये जरा कौन अपने आप को बेईमान कहता है? ये आम आदमी पार्टी, आम आदमी के समाज के बीच ईमानदार और इज्जतदार होने का फायदा उठा रही थी। माने अरविन्द जी को वोट दो नहीं तो बेईमान काहे जाओगे। दिल्ली के नामालूम कितने मोहल्ले बेईमान मोहल्ले हो गए। गनीमत है कोठियों में रहने वालों को जलील करने के लिए अरविन्द जी ने दिल्ली की झुग्गियों का ईमानदार नगर करके नामकरण नहीं किया। अगर ऐसा होता तो दिल्ली की कोठियां खाली होने लगतीं। दिल्ली की कोठियों में रहने वालों को अरविन्द जी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि जैन साहब और सिसोदिया साहब को जेल भिजवा कर अरविन्द जी ने उनको रुसवाई से बचा लिया।
केजरीवाल और सिसोदिया का भगत सिंह प्रेम
खैर अब जब दिल्ली सरकार के दो मंत्री जेल जा चुके हैं तो आम आदमी को चैन पड़ गया है। ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी की हरकतें आम आदमी देख नहीं रहा था लेकिन जब तक लोकतंत्र का कोई खम्भा न बोल दे, भारत का आम आदमी आश्वस्त नहीं होता। उसको लगता रहता है कि जो वो देख और समझ पा रहा है उसको उसके जैसे बाकी आम लोग क्यों नहीं देख पा रहे या समझ पा रहे। वास्तव में यही एक बात भारत के चिरकालिक लोकतंत्र होने का राज़ है। यहाँ साला डॉक्टरेट की डिग्री ले के बैठे रहो लेकिन नेट पास करके सरकारी लेक्चरर बना आदमी ज्यादा विद्वान माना जायेगा क्योकि उसके पास सरकारी ठप्पा है जिसको समाज विद्वत्ता का थर्मामीटर मानता है। सामाजिक स्वीकृति इस लोकतंत्र में सबसे जरूरी सर्टिफिकेट है। तो लो जी, न्यायालय ने मनीष सिसोदिया को जमानत देने से मना करके इस देश और दिल्ली के आम आदमी का भ्रम और बेचैनी दूर कर दी।
अरविन्द जी की पार्टी में धार्मिकता भी कूट कूट कर भरी हुयी है। महान संत आशाराम जी बापू के अनुयायियों का अनुसरण करते हुए अरविन्द जी की पार्टी ने ‘बापू जी को रिहा करो’ की तर्ज़ पर दिल्ली के सरकारी स्कूल के बच्चों के नेतृत्व में सिसोदिया जी को रिहा करो नामक आंदोलन प्रारम्भ कर दिया है। दिल्ली की गर्भवती महिलाएं सावधान रहें, आम आदमी पार्टी उनके गर्भाधीन बच्चों को आंदोलन में शामिल करने के उपाय ढूंढ रही है। मोहल्ला क्लिनिक की दवाएं खाने वाले (अगर मोहल्ला क्लिनिक में दवा मिलती हो तो) भी अपने हॉस्पिटल बेड से सिसोदिया जी को रिहा करने का आंदोलन कर सकते हैं। पता नहीं क्यों अभी तक आम आदमी पार्टी ने उनको अनदेखा कर रखा है। फिलहाल, आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ने के लिए सिसोदिया साहब और जैन साहब के बलिदान को देश का आन्दोलनजीवी मानस कभी भुला नहीं पायेगा और गुजरात के बाद कर्नाटक में आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से सरकार बनाएगी। जोर और जुल्म के खिलाफ जेल भरो आम आदमी पार्टी का नारा है।
इस देश के आम आदमी के अलावा अगर किसी को आम आदमी पार्टी के आम पार्टी बनने की ख़ुशी होनी चाहिए तो वो कांग्रेस है। आखिर कांग्रेस की खड़ी की हुयी लोकतान्त्रिक परिपाटी पर आम आदमी पार्टी अब जाकर खरी उतरी है। दो नेता जेल में, केजरीवाल खेल में। कांग्रेस से याद आया कि राहुल गाँधी ने इधर बीच एक और भाषण दिया है। ये भइया भी गजब हैं। यात्रा करते हैं, भाषण देते हैं लेकिन जहाँ चुनाव हो रहे हों वहां एकदम नहीं जाते। जॉर्ज सोरोस को भारतीय लोकतंत्र को चलाने के लिए ऐसा ही नेता चाहिए। गाँधी, जयप्रकाश नारायण और माता सोनिया जी के बाद राहुल गाँधी का ही नंबर है जिन्होंने सत्ता की राजनीति को त्याग दिया है। मम्मी का सन्देश कि सत्ता जहर है राहुलजी ने एकदम जीवन में उतार लिया है। बस एक दो चुनावी रैली जो गाहे बगाहे कर देते हैं वो भी त्याग दें तो राहुल जी एकदम भीष्म पितामह हो जायेंगे। पितामह की तरह राहुल जी भी सत्ता के साथ चिपके रहेंगे लेकिन अभिभावक बनकर। वैसे पितामह को देखा जाये तो अभिभावकत्व भी खतरनाक हो जाता है बस आजू-बाज़ू शकुनि जैसा सम्बन्धी और दुर्योधन जैसा वंश होना चाहिए। अब कांग्रेस में शकुनि और दुर्योधन हैं की नहीं ये तो समय ही बताएगा। समय इसीलिए बताएगा क्योकि मैं दीदी और जीजाजी पर टिप्पणी करके परिवार को इस मामले में नहीं घसीटना चाहता। बड़े लोग हैं, मैं काहे जहमत लूँ।
राहुल गाँधी ने सिद्ध किया कि वो पप्पू ही हैं
गंभीर बातों के बीच में एक मजाकिया बात कहनी जरूरी है। तो लीजिये एक मजाकिया बात। ये राहुल जी दस साल पहले वाले केजरीवाल की तरह काहे व्यवहार कर रहे हैं। इनको कोई बताये कि काठ की हांडी एक बार ही आग पर चढ़ती है और केजरीवाल पहले ही चढ़ा चुके हैं। राहुल जी देश की जनता के मन में वही बेचैनी पैदा कर रहे हैं जिसकी बात ऊपर आम आदमी पार्टी के सन्दर्भ में की गयी है। खैर जनता को बेचैन करना काबिल नेताओं का शगल है। वो गाना है न कि ‘तूने बेचैन इतना ज्यादा किया मैं तेरी हो गयी मैंने वादा किया’। अब जब तक जनता राहुल जी की हो जाने का वादा नहीं करती तब तक राहुल जी भी केजरीवाल जी की तरह जनता को बेचैन किये रखेंगे।
राहुल जी के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिए भाषण के बाकी अंशों पर भी टिप्पणी आवश्यक है क्योकि उनके भाषणों में रामायण होती है, महाभारत होती है, पांडव और कौरव होते हैं जिनके माध्यम से वो वर्तमान राजनीति और राष्ट्रनीति पर सारगर्भित टिप्पणियां करते हैं। पता नहीं क्यों उन्होंने कैंब्रिज में कौरव पांडव द्वैत का उपयोग नहीं किया। मेरे दिमाग़ में राहुल गाँधी के भाषण के ऐसे अंश बिलबिला रहे हैं जहाँ महाभारत एकदम फिट हो जाती। राहुल जी पेगासस वाली बात को लाक्षागृह से जोड़ सकते थे, या लोकतंत्र के क्षय को अंधे धृतराष्ट्र से जोड़ सकते थे, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ अपने संबंधों को शकुनि के हस्तिनापुर में आयात और उससे उत्पन्न हुयी परिस्थितियों से जोड़ सकते थे। राहुल जी को कहना चाहिए था कि अगर विदेश नीति के अंतर्गत शकुनिआ साला अपनी दीदी के साथ दहेज़ में आ सकता था तो कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच समझौते को विदेश नीति के प्रस्ताव के तौर पर क्यों नहीं देखा जाता। हिन्दू समाज का बड़ा वर्ग इस प्रकार से अनदेखा किये जाने से राहुल जी से नाराज हो सकता है। राहुल जी के सलाहकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
राहुल गांधी और अपनों की निंदा का सुख
राहुल जी की बात आये और लोकतंत्र खतरे में न दिखे ये ऐसे ही है कि सुबह हो गयी और सूरज न निकले। अभी अभी लोकतंत्र को खतरे से निकालने के लिए जज साहबान ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को ज्यादा जवाबदेह बनाने के लिए सरकार से कानून लाने को कहा है। राहुल जी लोकतंत्र बचाने के लिए कुछ और करना हो तो बताएं, किया जायेगा। राहुल जी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। जैसा लोकतंत्र उनको चाहिए वैसा बनाया जायेगा। दिक्कत से याद आया कि राहुल जी को कश्मीर में आतंकवादी मिले थे लेकिन क्योकि राहुल जी के दिल में हिंसा नहीं थी इसलिए आतंकवादियों ने राहुल जी के साथ कुछ ऐसा वैसा नहीं किया और कट लिए। ये देश और परिवार का दुर्भाग्य है कि राहुल जी जैसा सुपुत्र जिसके दिल में अहिंसा देखकर आतंकवादी भी रास्ता बदल देते हैं समय रहते युवा न हो पाया वरना आज दादी और पापा दोनों दस जनपथ के आश्रम में नाती पोते खिला रहे होते। राहुल जी को उभरते खालिस्तानियों से भी जरूर मिलना चाहिए। वही अब दुबई रिटर्न्ड अमृतपाल सिंह के दिल से हिंसा निकाल सकते हैं। मुझको लगता है अमरिंदर सिंह ने राहुल जी को खालिस्तानियों से नहीं मिलवाया इसीलिए राहुल जी ने उनको किनारे कर दिया। दिल में हिंसा न होना बहुत जरूरी है। 21वीं सदी में दिल से हिंसा निकालना ही वैश्विक नारा हो इसी उम्मीद के साथ मैं अपने अति गंभीर हो चुके लेख को पूर्ण विराम देता हूँ। दिल से हिंसा निकाल कर फिर मिलेंगे।