संसदीय आचरण और राजनीतिक बयानबाजी के बीच फर्क देख पाना राहुल गांधी के लिए संभव नहीं है। वे स्वघोषित दार्शनिक हैं और इसी दार्शनिकता में वे स्वयं को हिंदू ग्रंथों और देवी-देवताओं के मॉर्डन इलस्ट्रेटर के रूप मान कर चल रहे हैं। मॉर्डन इलस्ट्रेटर ही कहना उचित होगा क्योंकि हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए शिव की बारात औऱ चक्रव्यूह का तुलनात्मक अध्ययन करना ठीक वैसा ही होगा जैसे एटम बम बनाने के फार्मूले की तुलना दुर्गा सप्तशती के श्लोकों से किया जाना हो।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद से अगर आपने राहुल गांधी के भाषण और उनमें दिये गये तर्क या ज़ोर शोर के साथ रखे गये तर्कों को नोटिस किया है तो ज़रूर देखा होगा कि आये दिन वे हिंदू धर्म से ली गई एनालॉजी इस्तेमाल करते हैं। शायद उनके ऊपर ख़ुद को हिंदू ग्रंथों के जानकार के रूप में प्रस्तुत करने का भारी प्रेशर है। पांडवों द्वारा जीएसटी लागू न करने से लेकर महाभारत के चक्रव्यूह तक, वे ये बताने का प्रयास कर रहे थे कि कांग्रेस का पक्ष पांडवों का है क्योंकि उन्होंने जीएसटी लागू नहीं की औऱ वे उस चक्रव्यूह से निकलना जानते हैं जो तथाकथित तौर पर कलियुग के कौरवों ने तैयार कर रखा है। राहुल गांधी यह बता रहे हैं कि इस तथाकथित चक्रव्यूह के मध्य में मोदी, शाह हैं तो उनका पक्ष कौरवों का पक्ष माना जाना चाहिए।
विडंबना यह है कि हस्तिनापुर का कार्यकारी राजा बनने के बाद धृतराष्ट्र ने राज्य को अपनी विरासत मान लिया और अपने पुत्र को युवराज। धृतराष्ट्र ने इस राजनीतिक विश्वास को बल दिया कि कार्यकारी राजा का बेटा ही राजा बनेगा तो ही राज्य फल-फूल सकता है। अब इस विचारधारा को वर्तमान राजनीति में रखकर देखें तो राहुल गांधी के लिए समस्या पैदा हो जाएगी और फिर उन्हें कुछ और हिंदू ग्रंथ पढ़ने पड़ेंगे ताकि नई एनालॉजी ढूँढी जा सके।
एक बात यह भी है कि कौरव पुत्र दुर्योधन ने ही सूत पुत्र कर्ण को अपना मित्र बताकर अंग राज्य दान दिया था औऱ समाज में जात-पात का भेद खत्म कर उसे संबल प्रदान किया। ऐसे में सत्ता पक्ष को एक तरफ कौरव बताना और एससी-एसटी के खिलाफ भी घोषित करना, परस्पर विरोधी बयान हैं।
राहुल गांधी ने कहा कि चक्रव्यूह के मध्य में 6 लोग ही होते हैं उसी प्रकार मोदी सरकार के केंद्र में भी 6 लोग ही हैं- नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, अजीत डोभाल, अंबानी और अडानी।
पर उनके सिपाही यानि की उनकी पार्टी के नेता और गठबंधन में सहयोगी दलों को अडानी औऱ अंबानी से कोई गंभीर समस्या दिखाई नहीं देती है। यहां तक की हाल ही में संपन्न हुई मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की शादी में तो कांग्रेस नेताओं सहित करीब-करीब सभी विपक्षी दलों के नेताओं ने शिरकत की थी।
राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक मोदी सरकार को अडानी सरकार घोषित करने का प्रयास किया था पर जब उनकी पार्टी ने कर्नाटक और तेलंगाना में सरकार बनाई तो पूरी खुशी के साथ अडानी के निवेश का स्वागत भी किया।
अडानी द्वारा सबसे बड़ा निवेश राजस्थान में उस समय किया गया था जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार थी। कहने का मतलब यह है कि अगर राहुल गांधी चक्रव्यूह की भाषा समझते हैं तो उनकी पार्टी के सदस्य औऱ गठबंधन में शामिल दल वे सिपाही हैं जो चक्रव्यूह का निर्माण करते हैं।
इस पूरी चर्चा से एक बात समझ आती है कि राहुल गांधी को चक्रव्यूह की समझ नहीं है बस उन्हें अपनी बात समझाने के लिए हिंदू ग्रंथों और देवी-देवताओं को सेक्यूलर बनाना पड़ता है। सदन में अपने तर्क के समर्थन में राजनीतिक ब्लेबरिंग के अलावा उनके पास कोई तथ्य नहीं है। यही कारण है कि वे इसमें वजन बढ़ाने के लिए कुछ शब्द कभी महाभारत से चुरा लेते हैं तो कभी रामायण से।
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