आत्ममुग्धता से ग्रस्त देश के दो ऐसे नेता हैं जो स्वयं को किसी स्थान पर झुकते हुए नहीं देख सकते। एक हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दूसरे कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी। दोनों का स्वपन भी एक है, राजनीतिक तमाशा और उद्दंडता के रास्ते चलकर देश की सत्ता पर काबिज होना। दोनों नेता प्रतिपक्ष से लड़ने के लिए राजनीतिक शुचिता का त्याग करने के लिए जाने जाते हैं। दोनों को अपनी इस राजनीति के लिए न्यायालय के सामने भी जाना पड़ा है। यह अलग बात है कि केजरीवाल अपने विवादों से सही समय पर माफी माँगकर निकलने में कामयाब रहे पर लगता है राहुल गांधी इन विवादों से लंबे समय तक जुड़कर रहेंगे।
इस बात की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि मोदी सरनेम विवाद में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने कुछ ऑब्जरवेशन प्रस्तुत किए हैं। कोर्ट ने तीन सबसे महत्वपूर्ण बात कही है- 1. राहुल गांधी बिल्कुल अस्तित्वहीन आधार पर राहत पाने की कोशिश कर रहे हैं। 2. राहुल गांधी ने खुद स्वीकार किया है कि चुनावी भाषण में तो ये सब होता रहता है, ये कहना उनकी नैतिक कमी को दर्शाता है। 3. चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने के लिए गलत बयान दिया गया था जो कि नैतिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
इसे राजनीतिक समझ की कमी कहें या विपक्ष का निचला स्तर की कांग्रेस प्रवक्ता इसे मोदी सरकार की साजिश बताकर प्रचारित कर रहे हैं जबकि मामाला तो मोदी सरनेम वाले एक बड़े समाज की भावनाओं से जुड़ा है। खैर, यह उनका काम है। फिलहाल मामले की समझ रखने वाले कह सकते हैं कि राहुल गांधी ने अपने बयान से समस्त मोदी समुदाय को आहत किया था। वे इसके लिए माफी मांग सकते थे। हालांकि वो ऐसा करेंगे नहीं। इसका कारण उनकी हमेशा की तरह चारित्रिक कमजोरी नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक समझ है। यही बात उन्हें अरविंद केजरीवाल से अलग करती है।
केजरीवाल ने अरुण जेटली पर आरोप लगाने के बाद माफी मांगी थी क्योंकि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर थे और उन्हें पता था कि वो फंस चुके हैं। उन्हें पद, सरकार और पार्टी टूटने का खतरा था। सुरक्षित रास्ता अपनाते हुए केजरीवाल ने माफी मांगी और इसके बाद से गाली देने के लिए विधानसभा के मंच का प्रयोग करते आए हैं।
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मोदी सरनेम मामले में कोर्ट ने तय किया है कि मानहानि हुई है। जाहिर है इसके जवाब में माफी भी मांगी जानी चाहिए। पर राहुल ऐसा करेंगे नहीं। क्योंकि केजरीवाल के विपरीत उन्हें इससे फायदा है। यह उन्हें मौका देता है अपनी अयोग्यता को नैतिक संघर्ष में बदलने का। कभी ट्रक चालक, कभी पंचरवाला तो कभी किसान बनने का खयाल राहुल गांधी को 53 वर्ष की आयु में ऐसे ही नहीं आया है। ये सारे काम वे इसलिए नहीं कर रहे कि उन्हें भारत को समझना है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने ऊपर अयोग्य होने के ठप्पे को मिटाना है। ये सारे काम उन्हें मौक़ा दे रहे हैं अपनी ‘अयोग्य सांसद’ की छवि का प्रयोग करते हुए लंबे समय तक राजनीतिक प्रचार करने का।
कोर्ट की टिप्पणी तल्ख थी, सटीक थी और किसी भी नेता की समझ को झकझोरने के लिए काफी थी। पर राहुल गांधी इसे नहीं समझेंगे और यह भी तय है कि वे आगे भी माफी नहीं मांगेंगे। संवेदनाएं प्राप्त करने के इस खेल में राहुल सब करेंगे सिवाय माफी मांगने के।
अपनी राजनीतिक यात्रा में यह पहला मामला नहीं है जब कांग्रेस के नबी ने अपनी नैतिकता का त्याग किया है। यह पार्टी के अनुसार परंपरागत है बस राहुल कुछ कदम आगे निकल गए हैं। 10 आपराधिक मामलों के लंबित होने के बीच अपने आपको जमीनी नेता स्वीकार करवाने की जिद करना संघर्ष नहीं बल्कि उनकी कमजोरी है। राजनीतिक विफलताओं ने उनके कुंठित व्यवहार को जन्म दिया है। उनका मानना है कि गांधी परिवार से होने के कारण उन्हें अन्यों से अधिक बोलने की आजादी होनी चाहिए। कोर्ट द्वारा उनके भाषण की मर्यादा का आकलन उनके खिलाफ साजिश से अधिक कुछ नहीं है।
राजनीति में यह सब होता रहता है, का गैर-जिम्मेदारी से भरा रवैया राहुल गांधी की राजनीतिक समझ की कमी को दर्शाता है। कांग्रेस और गांधी परिवार से जुड़े होने के कारण राजनीति में नैतिकता का ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं है। वह नैतिक रूप से ठीक नहीं भी होंगे तब भी राजनीति करेंगे। यही बात वे देश-विदेश में भारत और केंद्र सरकार पर टिप्पणी करके साबित करते रहते हैं।
दूसरी ओर उनके समर्थकों का तो यह भी मानना है कि आजतक किसी को मानहानि मामले में इतनी कठोर सजा नहीं मिली है। पहले तो यह तथ्यात्मक रूप से ही गलत है। पर इसे सही मान लिया जाए तो क्या इससे राहुल गांधी की नैतिकता बरकरार रहती है?
वर्तमान राजनीति का स्तर राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर आरोप-प्रत्यारोप से हटकर व्यक्तिगत नफरत तक पहुँच गया है। इसके बाद भी व्यक्तिगत विरोध राहुल गांधी को किसी समुदाय के प्रति अपमानजनित व्यवहार करने का अधिकार नहीं देता है। राजनीति का यह अलग नया स्तर है, जिसमें राहुल गांधी नैतिकता का त्याग कर जननेता बनने का प्रयास कर रहे हैं।
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