भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी खूब बोले। बोलने की लगभग हर विधा का इस्तेमाल करके बोले। पादरी के साथ मशविरा किया। पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने भाषण दिया। देश को उपदेश दिया। मीडिया को ज्ञान दिया। महिलाओं को सम्मान दिया। महाभारत का सत्य बोला। पुजारी और तपस्वी के बीच का भेद खोला। फिर चुप हो गए। वे चुप हुए तो जॉर्ज सोरोस बोले। उनके साथ उनके मिनियन्स भी बोले। सब ने मिलकर भारत को उसके लोकतंत्र से मिलवाने की शपथ ली है।
अब राहुल गांधी ने फिर से बोलना शुरू कर दिया है। अब वे विदेश में हैं। सूट-बूट पहनकर। दाढ़ी कट गई है। वे बोल रहे हैं। वह भी बंद कमरे में। उन्हें सुनने वाले सुन रहे हैं। वे बोलकर आर्ट ऑफ़ लिसनिंग के बारे में बता रहे हैं। वे केवल बोलते हैं। सुनते नहीं। कैंब्रिज में उन्होंने तमाम विषयों पर बोला। क्या कहा, वह अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। उनके हैंडलर्स ने अभी तक उनके वीडियो जारी नहीं किये हैं। ट्विटर ओर तमाम लोगों ने उनके वीडियो देखने की इच्छा जाहिर की है।
बयानों के गोल चक्कर में घूमते राहुल गाँधी
अभी तक वीडियो सामने नहीं आये हैं। इस बार उनके हैंडलर्स सावधानी बरत रहे हैं। शायद वे पिछली बार की तरह उनके कैंब्रिज वाले वीडियो जारी करके फिर से शर्मिंदा नहीं होना चाहते। वैसे उनके हैंडलर्स और मैनेजर को शर्मिंदा होने की आवश्यकता जान नहीं पड़ती। जब राहुल झूठ बोलकर, प्रोपगैंडा करके, निराधार आरोप लगाकर गलत साबित होकर, बार-बार चुनाव हारकर खुद शर्मिंदा नहीं होते तो उनके प्रबंधकों को उनके कर्मों के लिए शर्मिंदा होने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता।
खैर, वीडियो तो अभी तक जारी नहीं किये गए पर अब टेक्स्ट में आने लगा है कि राहुल वहाँ क्या कह रहे हैं। देखा जाए तो कुछ नया नहीं कह रहे हैं। वही सब कह रहे हैं जो कहते आये हैं। दरअसल इस मामले में राहुल गांधी उन नौजवान छोकड़ों की तरह हैं जिनके फेवरिट फ़िल्मी कलाकार होते हैं। वे अपने फेवरिट फ़िल्मी कलाकार की फिल्में ही देखते हैं ताकि बाद में यह सोच कर पछता सकें कि उन्होंने अन्य कलाकारों की फिल्में न देख कर कितना कुछ मिस किया।
राहुल जी विदेश में भी वही सब कह रहे हैं जो देश में कहते हैं; इंडिया इज नॉट अ कंट्री। इट इज यूनियन ऑफ स्टेट्स। चीन अच्छा है, अमेरिका कम अच्छा है और भारत तो खराब है। भारत में बोलने की स्वतंत्रता नहीं है। विपक्षी नेताओं का गला दबा दिया जाता है। मीडिया को बोलने नहीं दिया जाता। सबके फोन टैप किये जाते हैं। सबके फ़ोन की पेगासस से जासूसी की जाती है। भारत में अब डेमोक्रेसी नहीं बची। देश में आपातकाल लग गया है। नरेंद्र मोदी देश के लिए नहीं बल्कि अपने उद्योगपति मित्रों के लिए काम करते हैं। संविधान खतरे में है इत्यादि। वही सारी बातें जो कई वर्षों से बोलते आ रहे हैं।
राहुल गाँधी ने सिद्ध किया कि वो पप्पू ही हैं
सबको याद है कि पेगासस को लेकर किस स्तर पर बवंडर खड़ा किया गया। उसमें केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी शोर मचाया गया। कपिल सिबल ने जिस तरह के तर्क सुप्रीम कोर्ट में दिए उससे प्रभावित होकर सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी तय की। पेगासस में कुछ नहीं मिला। उसके बावजूद राहुल गांधी यदि विदेश में जाकर वही मामला फिर उठाते हैं तो क्या कहा जाएगा? भारत में विपक्ष को सच बोलने की स्वतंत्रता नहीं है, यह कह कर राहुल गांधी किसे प्रभावित करना चाहते हैं? किससे मदद लेना चाहते हैं? भारत में तो झूठ बोलने की स्वतंत्रता भी है और यही राहुल गांधी उसका पूरा फायदा उठाते रहे हैं।
राहुल गांधी लंदन जाकर लोगों से यह कहना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी को हटाने में हमारी मदद करो? यदि ऐसा है तो यह मणिशंकर अय्यर के पाकिस्तान में वहां के लोगों से किये गए अनुरोध का ही एक्सटेंशन है। यह उस सोच का उदहारण है जिसमें कांग्रेसी सोचते हैं कि ढाई सौ साल भारत पर राज करने वाले अंग्रेज भारतीयों से अधिक आदर डिज़र्व करते हैं इसलिए देश और मोदी की शिकायत उनके सामने करने से कुछ काम बन सकता है। यह उसी सोच का एक्सटेंशन है जिसमें केवल जॉर्ज सोरोस को ही नहीं बल्कि राहुल गांधी को भी लगता है कि लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़कर निकले कुछ गिने-चुने लोगों को दुनिया में लोकतंत्र को परिभाषित करने और सत्ता परिवर्तन करने का अधिकार है, फिर उसके लिए ऐसे लोगों को चाहे जिस रास्ते पर चलना पड़े।