राहुल गाँधी एक बार फिर इस महीने के अंत में विदेश जा रहे हैं। हालाँकि इस बार उनके विदेश जाने का कारण छुट्टी मनाना या नानी के गाँव जाना नहीं है बल्कि इस बार वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के बिजनेस स्कूल में व्याख्यान देंगे। यह वही विश्वविद्यालय है जहाँ से राहुल गाँधी ने पढ़ाई की है। वे कैम्ब्रिज बिजनेस स्कूल में बिग डाटा और डेमोक्रेसी तथा भारत-चीन संबंधों पर संवाद करेंगे।
इससे पहले यह विचार करना आवश्यक है कि राहुल गाँधी को बार-बार विदेश जाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है या फिर उन्हें बार-बार क्यों बुलाया जाता है?
इसका एक कारण हम यह मान सकते हैं कि शायद वे उस बात को रखने जाते होंगे जो बात विदेश में रहने वाले लोग ना जान पाते होंगे या ना सुन पाते होंगे या उस राष्ट्र से जुड़ी कुछ विशेष बातें, जो केवल उसी राष्ट्र के लोगों के समक्ष ही बोली जा सकती हैं, जिसे मात्र उस राष्ट्र के वासी ही समझ पाएं।
लेकिन तथ्य यह है कि राहुल गाँधी जब भी देश से बाहर निकले उन्होंने वही बातें दोहराई जो वह देश में कहते हैं।
पिछले वर्ष मई 2022 में भी वे कैंब्रिज गए थे। वहाँ उन्होंने कहा था, “हम ऐसे भारत में हैं जहां हमारे पास भारी मात्रा में ध्रुवीकरण है। हमारे पास भरपूर मात्रा में बेरोजगारी है। रोजगार की रीढ़ टूट गई है और आने वाले समय में सामाजिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है। भारत अच्छी स्थिति में नहीं है। बीजेपी ने पूरे देश में मिट्टी का तेल छिड़का है।”
यही बात तो वह भारत में भी कहते हैं तो, क्या यहाँ उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है? या फिर उस बात को रख कर जिस प्रकार की प्रतिक्रिया वह लोगों से चाहते हैं उसमे वह सफल नहीं हो पाते?
ऐसा ही एक प्रयास उन्होंने वर्ष 2017 में कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में किया जिसमें मुख्यत: उन्होंने भारत में क्रोध, घृणा, हिंसा और ध्रुवीकरण पर बात की थी। उन्होंने तब कहा था कि पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है, दलितों की लिंचिंग की जा रही है और मुसलमानों को सिर्फ इसलिए मारा जा रहा है क्योंकि वे बीफ खाते हैं।
यहाँ पर राहुल गाँधी से यह पूछना आवश्यक हो जाता है कि अगर उनके अनुसार वर्ष 2017 में यह स्थिति थी तो इसके बाद के वर्षों में भारत में जो सकारात्मक बदलाव देखे गए क्या किसी विदेशी मंच पर उन्होंने इसकी चर्चा की?
नहीं, इसके बाद वर्ष 2021 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वर्चुअल कार्यक्रम में भी उन्होंने भाजपा एवं आरएसएस से जुड़ी ही बात की और कहा कि उन्हें संसद में बोलने की अनुमति नहीं है, न्यायपालिका से उम्मीद नहीं है, आरएसएस-भाजपा के पास बेतहाशा आर्थिक ताकत है।
राहुल गाँधी की ये बातें पिछले 8 वर्षों में एक ही धुरी पर घूमती हैं, फिर चाहे वे देश में बोल रहे हों या विदेश में। हालाँकि इस बार राहुल गाँधी के आगामी कार्यक्रम के लिए सुखद पहलू यह है कि उन्हें परोक्ष रूप से विश्व के कुछ लोगों से समर्थन मिल रहा है।
यह समर्थन भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक वर्ग के खिलाफ मिल रहा है। एक ओर अडानी समूह पर हमला जारी है तो दूसरी ओर इस बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर भी अन्य प्रतिद्वंदी देश टिप्पणी कर रहे हैं।
इस स्थिति में राहुल कैंब्रिज में जाकर भारत की नकारात्मक छवि पेश करने के लिए किन बातों का सहारा लेंगे, यह तो इस महीने के अंत में ही ज्ञात होगा लेकिन उनके द्वारा कुछ नई बातें कहने की संभावना है।
भारत जोड़ो यात्रा के प्यार मोहब्बत वाले शोर का यह एक नया वर्ज़न होगा। इसी के अनुसार भू राजनीति के विषय में वे भारत-चीन प्रतिद्वंदिता में चीन को मजबूत बता कर आगे रख सकते हैं और इस तनाव से निकलने के लिए कोई गांधीवादी फॉर्मूला जारी कर सकते हैं। इस विषय का हल वे पहले भी दे चुके हैं। तब उनका कहना था कि भारत को सेना की आवश्यकता नहीं है। देश के किसान चीनी सेना से लड़ने के लिए काफी हैं।
सरकार और अडानी पर एक साथ निशाना साधने के लिए वे बिग डाटा का सहारा ले सकते हैं और कह सकते हैं कि डाटा के माध्यम से लोकतंत्र को प्रभावित किया जा रहा है और इससे पूंजीपति वर्ग को फायदा हो रहा है। इसके परिणाम स्वरूप वे इस बात को अपने प्रिय विषय गरीबी से भी जरूर जोड़ेंगे। इस बात की संभावना इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल समिट में गरीबी पर अपनी बात रखी है।
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