भारत का मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और FDI को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं के बारे में संदेह व्यक्त किया है।
डॉ राजन ने देश में PLI स्कीम के माध्यम से लगातार बढ़ रहे फोन निर्माण की आलोचना यह कहते हुए की है कि देश में मुख्य रूप से फोन की असेंब्लिंग होती है और वास्तविक मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं का अभाव है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत मैन्युफैक्चरिंग के लिए उपयुक्त देश नहीं है। राजन के इस बयान को समर्थन मिलने के साथ ही उसकी आलोचना भी हुई है। लोगों का तर्क है कि मैन्युफैक्चरिंग के प्रति सरकार द्वारा किए गए प्रयास गंभीर हैं और अच्छे परिणाम भी दे रहे हैं।
इस बात की पुष्टि विश्व की प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी मॉर्गन स्टेनली की एक हालिया रिपोर्ट भी करती है। इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान लगभग 30% होगा, जो वर्तमान स्तर से लगभग दोगुना है।
केंद्र सरकार पिछले कुछ वर्षों से अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव जैसी कई पहलें शुरू की हैं। इसका मकसद जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाना और इस सेक्टर में ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा करना है।
मोदी सरकार ने देश में मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्वेस्टमेंट (पीएलआई) स्कीम को शुरू किया था। लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस योजना को आलोचना की है। उनका कहना है कि इस योजना का कोई वास्तविक प्रभाव दिख नहीं रहा है।
मोबाइल निर्माण क्षेत्र को उदाहरण के तौर पर लेते हुए राजन ने सरकार को सलाह दी है कि इसे दूसरे सेक्टरों में लागू करने से पहले एक बार सोच विचार करना चाहिए। इसके विपरीत मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट बताती है कि मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में सरकार के प्रयास गंभीर हैं और इसके अच्छे परिणाम मिलने लगे हैं।
डॉ. रघुराम राजन का मानना है कि भारत के पास मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दूसरे देशों से मुकाबला करने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल्ड लेबर और टेक्नोलॉजी की कमी है। जबकि मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट बताती है कि इन तीनों दिशाओं में अब भारत आगे बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्तमान में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने पर सरकार के फोकस ने भारत में मोबाइल फोन निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने में मदद की है।
जहां डॉ. राजन का दावा है कि मोबाइल फोन केवल भारत में असेंबल किए जाते हैं, वहीं हाल ही में आई एक खबर बताती है कि चीनी कम्पनी शाओमी तक ने स्थानीय स्तर पर ही मोबाइल के कल पुर्जे लेना चालू कर दिए हैं, बजाय कि बाहर से मंगाने के।
इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) के आंकड़ों के अनुसार, भारत की मोबाइल फोन निर्माण मात्रा 2020 में लगभग 33 मिलियन यूनिट प्रति माह तक पहुंच गई, यह आँकड़ा दर्शाता है कि मात्र पुर्जे जोड़ने के सहारे ही नहीं बल्कि देश में असल निर्माण हो रहा है।
मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट इस बढ़त के पीछे कई कारण रेखांकित करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पास एक बड़ा और कुशल वर्क फोर्स है जो अन्य देशों की तुलना में कम वेतन पर उपलब्ध है। यह लागत में कटौती करने वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए भारत को एक आकर्षक गंतव्य बनाता है। फरवरी 2023 में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 5.6% की वृद्धि हुई, जबकि एक महीने पहले संशोधित 5.5% की तुलना में और बाजार की अपेक्षा 5.1% से अधिक थी।
पिछले नवंबर के बाद से उत्पादन में सबसे अधिक वृद्धि हुई है, जो कारखाने की गतिविधियों में तेजी के कारण है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र द्वारा लिए गए कर्ज में भी वृद्धि हुई है, इस क्षेत्र का बैंक ऋण मार्च 2023 तक 29.4 लाख करोड़ रुपये है। यह पिछले साल के मार्च महीने की तुलना में 10.2% की वृद्धि है।
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दूसरे, रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कई पहलें शुरू की हैं। मेक इन इंडिया पहल, विशेष रूप से, इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सफल रही है।
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2014 में लॉन्च होने के बाद से इस पहल ने करीब 30 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आकर्षित किया है। मैन्युफैक्चरिंग के लिए परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई), जो कि आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख संकेतक है, अप्रैल में 57.2 पर रहा जो कि मार्च 2023 में 56.4 पर था। पीएमआई का 50 से ऊपर रहना मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विस्तार का संकेत देता है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी 2021-22 के लिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने लगभग 3 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान किया है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में एक श्रमिक के लिए औसत मासिक वेतन 11,700 रुपये है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत के पास एक बड़ा घरेलू बाजार है, जो इसे मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाता है। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 तक भारत का मध्यम वर्ग लगभग 50 करोड़ लोगों तक बढ़ जाएगा, जो ऐसी वस्तुओं के लिए बड़ी मांग पैदा करेगा।
रिपोर्ट में भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ से जुड़े आंकड़ों का भी हवाला दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 6.9% की दर से बढ़ा, जो कि कुल जीडीपी ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी से ज्यादा है।
रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि अगले दशक में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र 12-14% प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगा। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा जारी 2021-22 के लिए उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट से पता चलता है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने भारत में कुल कारखाने के उत्पादन में 77.7% का योगदान दिया है।
दिए गए आंकड़े बताते हैं कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और देश की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि यह क्षेत्र रोजगार सृजित कर रहा है और देश में लाखों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है।
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सामने आए इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट के आंकड़े भी यह दर्शाते हैं कि भारत का मोबाइल फोन निर्यात बढ़ा है। देश के लगभग 23 बिलियन के इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में से 11 बिलियन से अधिक निर्यात केवल मोबाइल फोन का हुआ है। यह पिछले पांच वर्षों में लगभग 4 गुना हो गया है।
ऐसे में जब सारे आँकड़े देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि को दर्शा रहे हैं और यह बता रहे हैं कि यह लगातार बढ़ रहा है तब रघुराम राजन का यह कहना कि भारत इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं है उनके पूर्वाग्रह को दर्शाता है। इससे पहले भी डॉ राजन केंद्र सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की आलोचना कर चुके हैं और गलत सिद्ध हुए हैं।
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