70 वर्षों तक ब्रिटेन की राष्ट्राध्यक्ष महारानी एलिजाबेथ ने सितम्बर 8, 2022 को अपने ग्रीष्मकालीन आवास बालमोरल पैलेस में आखिरी सांस ली।

महारानी एलिजाबेथ ने वर्ष 1952 में ब्रिटेन की महारानी की गद्दी संभाली थी। वे ब्रिटिश इतिहास में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता सम्भालने वाली राष्ट्राध्यक्ष थीं।
इस लम्बे शासन के दौरान महारानी ने शीतयुद्ध, ब्रिटेन-अर्जेंटीना का युद्ध, अपने कई परिवारी-जनों की मृत्यु और ब्रिटेन के 15 प्रधानमंत्रियों की नियुक्ति को देखा।
अब उनके अंतिम क्रियाकर्म की तैयारियां चल रहीं हैं, अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर लन्दन के वेस्टमिन्स्टर हॉल में रखा जाएगा। लन्दन के एब्बे चर्च में उनका अंतिम संस्कार का कार्यक्रम उनकी मृत्यु के दो सप्ताह के भीतर पूरा कर लिया जाएगा।
इस मृत्यु से ब्रिटेन की राजनीति के साथ-साथ कॉमनवेल्थ देशों की राजनीति में भी बदलाव देखने को मिलेंगे। महारानी एलिजाबेथ के पास ब्रिटेन की महारानी होने के साथ -साथ ही कनाडा, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य 11 कॉमनवेल्थ देशों के राष्ट्राध्यक्ष की जिम्मेदारी भी थी।
ब्रिटेन पर प्रभाव : राजनीति और आम जीवन
ब्रिटेन की महारानी की मृत्यु के पहले की आखिरी तस्वीरें उनके नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस को नियुक्त करने की ही हैं। ब्रिटेन के आम जीवन और राजनैतिक जगत में महारानी का काफी महत्व है। ब्रिटेन की मुद्रा पर महारानी की तस्वीरें हैं। इन सबको बदलना पड़ेगा।

काफी जगहों या सुविधाओं के नाम महारानी के नाम पर हैं। ब्रिटेन के पासपोर्ट, ब्रिटेन के राष्ट्रगान और अन्य कई चीजों में बदलाव की भी आवश्यकता पड़ेगी।
ब्रिटेन की राजनीति पर ब्रिटिश शाही परिवार के प्रभाव को बताती शाही परिवार की वेबसाइट रॉयल.यूके के अनुसार ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्ष को राजनीतिक विषयों में पूर्णतया निष्पक्ष रहना होता है और इसके साथ ही वे चुनावी प्रक्रिया भाग में नहीं ले सकते।

ब्रिटिश शाही परिवार का किसी भी राजनैतिक मुद्दे पर रुख ब्रिटिश जनसंख्या के बड़े हिस्से को प्रभावित करता है, आम तौर पर ब्रिटेन में यह राय है कि राष्ट्राध्यक्ष किसी भी सरकारी फैसले या मामले में अपना हस्तक्षेप नहीं करता।
हालाँकि, इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि विभिन्न मौकों पर महारानी ने अपनी गद्दी का इस्तेमाल कई सरकारी फैसलों में कुछ बदलाव कराने के लिए किया है।
ब्रिटिश समाचार पत्र दी गार्जियन के अनुसार 1973 में ब्रिटेन की महारानी ने अपने रसूख का इस्तेमाल अपनी निजी सम्पत्ति को लोगों की नजरों से बचाने में किया था, इससे यह बात स्पष्ट होती है ब्रिटेन के राजनैतिक फैसलों में महारानी या तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष की महती भूमिका हो सकती है और वे इसमें सम्मिलित भी हो सकते हैं।

समाचारों के अनुसार महारानी की मृत्यु के बाद बनने वाले ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्ष किंग चार्ल्स, ब्रिटेन की महारानी के जीवित रहते हुए कई सरकारी फैसलों के लिए मन्त्रियों को पत्र लिखकर लॉबीइंग किया करते थे।

अब आधिकारिक तौर से सत्ता उन्हीं के हाथों में होगी जिससे उनका प्रभाव निश्चित रूप से कई गुना बढ़ जाएगा जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका दृष्टिकोण मात्र ही ब्रिटिश राजनीति को काफी प्रभावित करेगा।
कॉमनवेल्थ का भविष्य
कॉमनवेल्थ, जो कि अधिकतर उन 56 राष्ट्रों का समूह है जिन पर कभी ब्रिटेन ने शासन किया था, का भविष्य भी अब नए तरीके से निर्धारित होगा। ब्रिटेन को मिलाकर कॉमनवेल्थ के 14 राष्ट्र अब भी अपना राष्ट्राध्यक्ष ब्रिटेन की महारानी को मानते हैं। इन देशों की सरकारों की सलाह पर महारानी इन राष्ट्रों के गवर्नर जनरल की नियुक्ति करतीं हैं।
कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैण्ड आदि इनमें में से प्रमुख राष्ट्र हैं, इसके अतिरिक्त बहामास, ग्रेनेडा, पापुआ न्यू गिनी आदि राष्ट्र भी इसमें सम्मिलित हैं।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार अब जबकि महारानी का निधन हो चुका है, तब इनमें से कई राष्ट्र अपना स्वतंत्र राष्ट्राध्यक्ष चुनने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं, हालांकि इस बात के कोई पुख्ता संकेत नहीं है। कई कैरेबियन राष्ट्रों जैसे कि जमैका आदि में ब्रिटिश राजशाही को अपना प्रमुख मानने के खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं।

हालिया कुछ सालों में मालदीव और बारबाडोस ने अपनी कॉमनवेल्थ सदस्यता के बारे में बड़े फैसले लिए हैं, मालदीव जहाँ 2016 में कॉमनवेल्थ की सदस्यता छोड़कर 2020 में इसमें पुनः शामिल हो गया था, वहीं बारबाडोस ने अपने राष्ट्र के प्रमुख के तौर पर महारानी एलिजाबेथ को हटा कर एक गणतांत्रिक प्रमुख को स्वीकार किया था।

हालांकि, भारत के कॉमनवेल्थ के छोड़ने या इसमें बने रहने के बार में कुछ नहीं कहा जा सकता है, भारत सरकार की तरफ से भी इस सम्बन्ध में कोई बयान सामने नहीं आया है।
महारानी और उनसे जुड़े विवाद
महारानी के जीवन में उनसे जुड़े विवादों की भी कमी नहीं हैं, भारत में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ यह भी सवाल कर रहे हैं कि उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कभी भी ब्रिटेन के द्वारा भारत के साथ किए गए अत्याचारों की माफी नहीं मांगी।
जलियांवाला बाग नरसंहार, जहाँ सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर अंग्रेजो ने गोलियां बरसाई थीं, के बारे में महारानी ने सिर्फ यह कहा है कि यह एक कठिन समय था, उन्होंने इसमें मरने वालों के प्रति किसी माफी का सार्वजनिक ऐलान कभी नहीं किया।
इसके अतिरिक्त बंगाल में 1940 के दशक में पड़े भयंकर अकाल, जिसमें यह सिद्ध हो चुका है कि यह एक प्राकृतिक आपदा ना होकर अंग्रेजों के द्वारा जानबूझ कर किया गया अपराध था जिससे 30 लाख लोग काल के गाल में समा गए, के बारे में भी कोई माफी या खेद ला इजहार नहीं किया।

ब्रिटेन की राजकुमारी और महारानी की बहू डायना की आकस्मिक मृत्यु के बाद भी महारानी पर उनके सार्वजनिक रूप से सामने ना आने के कारण काफी प्रश्न उठाए गए थे।
लोगों ने उन पर यह आरोप लगाया कि वे राजकुमारी डायना के आम जनमानस से मिलने-जुलने और अन्य कारणों से उनसे नाखुश थीं जिसके कारण वे डायना के एक कार दुर्घटना में मारे जाने के बाद जनता के सामने नहीं आईं।
अब आगे क्या?
महारानी की मृत्यु के कुछ ही समय के भीतर उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स को ब्रिटेन का नया राष्ट्राध्यक्ष घोषित कर दिया गया है। अब महारानी के अंतिम संस्कार की तैयारियां की जा रहीं हैं। भारत समेत कई राष्ट्रों ने इस निधन पर शोक जताते हुए अलग अलग समयावधि के लिए राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।