इन दिनों पंजाब की अर्थव्यवस्था का हाल बहुत खराब है। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के बावजूद पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार प्रचार में बेहिसाब पैसा बहा रही है। एक आरटीआई के अनुसार, पंजाब सरकार ने इस साल मार्च से मई तक मीडिया को ₹38 करोड़ के विज्ञापन दिए हैं।
करोड़ों के विज्ञापन
आरटीआई के जवाब में मिली जानकारी के अनुसार, भगवंत मान और आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सरकार बनाने के बाद मीडिया को विज्ञापन देने में ही ₹38 करोड़ फूंक डाले।
पंजाब सरकार से बेशुमार विज्ञापन लेने की फेहरिस्त में लोकल अखबारों से लेकर मशहूर टीवी चैनल मौजूद हैं। आजतक और एबीपी न्यूज जैसे बड़े मीडिया संस्थानों को अकेले ही करोड़ों के विज्ञापन मिले लेकिन लगे हाथ दरिद्र एनडीटीवी के दो चैनलों को भी विज्ञापन नसीब हो गए।
केजरीवाल मॉडल
राज्य में सरकार बनते ही मीडिया को विज्ञापनों की बंदर-बाँट का क्रांतिकारी आइडिया, मुख्यमंत्री भगवंत मान को किस महापुरुष ने दिया होगा इस पर अधिक विमर्श की जरूरत नहीं दिखती।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर अकसर आरोप लगते रहे हैं कि वे योजनाओं के क्रियान्वन में इतना खर्चा नहीं करते जितना विज्ञापनों पर बहा डालते हैं।
2 मई, 2022 में एक आरटीआई के द्वारा जानकारी के अनुसार “विज्ञापन और प्रचार” एवं “अन्य शुल्क” पर दिल्ली सरकार का खर्च 2012-13 और 2021-22 के बीच लगभग 44 गुना बढ़ गया। 2012-13 में जहां कुल खर्च ₹11.18 करोड़ था तो वहीं 2021-22 तक यह बढ़कर ₹488.97 करोड़ हो गया।
बायो-डिकम्पोजर के विज्ञापन पर खर्चे
2020 में, दिल्ली सरकार ने एक योजना की घोषणा की जिसके तहत पराली जलाने की समास्या से निजात के लिए बायो-डिकम्पोजर का इस्तेमाल होना था।
एक रिपोर्ट के अनुसार, आप सरकार ने इस बायो-डिकम्पोजर के छिड़काव पर 2020-21 और 2021-22 में ₹68 लाख खर्च किए तो वहीं इस योजना के प्रचार-प्रसार में ₹23 करोड़ की राशि खर्च कर डाली।
कोविड महामारी के दौरान जमकर बहाया पैसा
कोविड महामारी के दौरान जब देश का हर राज्य ऑक्सीजन सिलेंडरों की उपलब्धत्ता से जूझ रहा था तब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार विज्ञापनों पर पैसा बहा रही थी। केजरीवाल सरकार ने वर्ष 2020-21 के दौरान टीवी चैनलों, समाचार पत्रों और रेडियो में विज्ञापन पर ₹293 करोड़ खर्च कर डाले।
अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का अपनी ‘विज्ञापनों की राजनीति’ में अटूट विश्वास है। विज्ञापनों के पैसे से मुख्यधारा की मीडिया भले ही चुप हो जाए लेकिन जमीनी हकीकत बदलने के लिए यह नाकाफी है।