आमतौर पर डेरा सच्चा सौदा का नाम लेने के साथ ही कुछ लोगों के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान आ जाती है। इसकी वजह संभवतः ये है कि इस संगठन के प्रमुख राम रहीम पर बलात्कार का आरोप सिद्ध हुआ था और वो लम्बे समय से जेल में थे। एक संगठन के तौर पर डेरा सच्चा सौदा लम्बे समय से विवादों में रहा है।
इतिहास के तौर पर देखें तो 26 अप्रैल, 1948 को मस्ताना बलोचिस्तानी ने इसकी स्थापना की थी। ये बाबा सावन सिंह (राधा स्वामी सात्संग बेसा) के शिष्य थे और बाबा सावन सिंह के बाद उनके संगठन के चार टुकड़े हो गए थे। इनमें से एक के प्रमुख मस्ताना बलोचिस्तानी थे और उनकी मृत्यु के बाद संगठन तीन और भागों में टूटा, जिसमें से एक के प्रमुख गुरमीत राम रहीम बने और मुख्यालय सिरसा (हरियाणा) में बना। आज इस संगठन के 46 आश्रम बताये जाते हैं।
ये लोग किन आदर्शों का पालन करते हैं, उसके आधार पर देखें तो इनके तीन सिद्धांत हैं – निरामिष भोजन (मांस-मछली-अंडा आदि) न खाना, नशा-तम्बाखू और शराब आदि न प्रयोग करना, और अनैतिक यौन संबंधों से दूर रहना। कभी कहीं अगर “धन-धन सतगुरु, तेरा ही आसरा” सुनाई दिया हो, तो वो इसी डेरा सच्चा सौदा का वाक्य है।
जब 1990 के लगभग गुरमीत राम रहीम ने इस संगठन का काम-काज संभाला, तभी से ये संगठन थोड़ा मुखर, आसानी से नजर आने वाला भी बन गया है। मई 2007 में ही पंजाब में खालसा सिखों और डेरा समर्थकों के बीच हिंसक दंगे भड़क उठे। इसकी वजह थी कि एक प्रचार में जिस रूप में गुरमीत राम रहीम दिखे थे, खालसा सिखों का कहना था कि उसमें गुरमीत राम रहीम ने गुरु गोविन्द सिंह की नक़ल की है। अकाल तख़्त ने डेरा सच्चा सौदा बंद करवाने की बात की और अख़बारों ने तब इन दंगों को 1970 के सिख-निरंकारी दंगों या 1980 के आतंकवाद जैसा बताया था।
जब अगस्त 2017 में गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के जुर्म में सजा हुई तो पंचकुला में हजारों की भीड़ ने इकठ्ठा होकर हंगामा किया था। इन दंगों में कथित रूप से तीस लोगों की मौत हुई थी। इस दंगे की आंच दिल्ली तक भी पहुंची थी और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने दंगों से हुई क्षति की भरपाई के लिए डेरा सच्चा सौदा की संपत्ति जब्त करने के आदेश भी दिए थे।
राजनैतिक रूप से भी डेरा सच्चा सौदा मुखर रही है और राजनैतिक दलों के प्रति इन्होने खुलकर समर्थन और विरोध जताया है। पुरानी कांग्रेस सरकारों को डेरा सच्चा सौदा का समर्थन रहा है और 2007 से पहले से ही कांग्रेसी भी डेरा सच्चा सौदा को सुविधाएँ भी देते रहे हैं, जिसमें डेरा प्रमुख (यानि गुरमीत राम रहीम) को जेड प्लस सुरक्षा शामिल थी। बाद में जब शिरोमणि अकाली दल राज्य में ज्यादा रसूख दिखने लागी उस दौर में कांग्रेसियों का डेरा से मोहभंग होने लगा और डेरा समर्थकों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी, ऐसा मानकर डेरा ने भी समर्थन कम किया जिसका नतीजा 2009 के संसदीय चुनावों में नजर आया।
पंजाब चुनावों से ठीक पहले 2012 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुरमीत राम रहीम से मिलने गए तो कांग्रेस के सिख वोट बैंक पर इसका असर दिखा। ऐसा भी माना गया कि डेरा की राजनैतिक ताकत कम हो रही है, क्योंकि 2012 में मालवा क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी ख़राब रहा था।
जब तक 2014 के हरियाणा और लोकसभा चुनावों की बारी आई, तब तक भाजपा ने गुरमीत राम रहीम की तरफ हाथ बढ़ा दिया था। यहाँ गौर करने लायक है कि डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख और ओहदेदार भले ही सिख मतों वाले परिवारों से आते हों, लेकिन डेरा समर्थकों का बड़ा वर्ग हिन्दुओं का है।
फरवरी 2015 के दिल्ली के चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने खुलकर भाजपा का समर्थन किया था। इसके अलावा 2015 के बिहार चुनावों में तीन हजार के लगभग डेरा सच्चा सौदा समर्थक राज्य में भाजपा के समर्थन में प्रचार कर रहे थे। आप सोच सकते हैं कि भला डेरा सच्चा सौदा ऐसे राजनैतिक अभियान कैसे चला पाती है? इसके लिए ये जानना आवश्यक है कि गुरमीत राम रहीम सिंह ने आपदा प्रबंधन और सामाजिक सरोकारों के लिए ‘शाह सतनाम जी ग्रीन-एस वेलफेयर फ़ोर्स’ नाम का एक संगठन बनाया था। इसमें अब 70 हजार से अधिक डॉक्टर, पारामेडिक, व्यापारी, इंजिनियर इत्यादि जुड़े हुए हैं।
देओली-ब्रह्मग्राम में आर्थिक कठिनाइयों से जूझती विधवाओं के लिए इनके पास व्यवस्था है, जिसके कारण इस गाँव को ही ‘विधवाओं का गाँव’ भी बुलाया जाने लगा है। जनवरी 2010 में डेरा सच्चा सौदा पूर्व वेश्याओं के सामूहिक विवाह का सिरसा में आयोजन करवा चुका है। सिरसा में एक बड़ा अस्पताल ये लोग बनवा चुके हैं। किन्नरों को क़ानूनी दर्जा दिलाने की लड़ाई भी डेरा सच्चा सौदा लड़ चुकी है और 15 अप्रैल 2014 को जो तृतीय लिंग को दर्जा देने का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया था उसके पिटीशनर डेरा सच्चा सौदा वाले भी थे।
डेरा सच्चा सौदा के पिछले काम और इतिहास की ये जानकारी किसी को भी ये समझा देने के लिय तो पर्याप्त है कि इतना सब कुछ विवादों के बिना तो नहीं हुआ होगा। विधवाओं को आश्रय देना हो, पूर्व वेश्याओं का विवाह हो, या फिर किन्नरों को तृतीय लिंग की तरह दर्जा दिलाना हो, इन सब में विवाद हुए होंगे। ऊपर से ऐसे लोग अगर राजनैतिक रूप से सक्रीय हों, तब तो और भी विवाद इनसे जुड़ेंगे ही।
जिन हालिया विवादों से डेरा प्रेमियों का नाम जुड़ा रहा, उन में से एक है बरगाड़ी बेअदबी का मामला। इस मामले में 2015 में बरगाड़ी गाँव के गुरूद्वारे से बीड़ यानि गुरु ग्रन्थ साहिब की पुस्तक को चोरी करके फाड़ दिया गया था। इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे सिखों पर कोटकपूरा में गोली चला दी गई थी। उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री थे और इस कार्रवाई की जाँच करवाने के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजीत सिंह की अगुवाई में एक आयोग बनाया गया था। इस आयोग की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई। आप इसे पुराना, भुला दिया गया मामला मान रहे हैं, तो थोड़ा ठहरिए।
इस मामले के कई आरोपितों में से एक था डेरा प्रेमी महिंदरपाल बिट्टू जिसकी 22 जून 2019 को जेल में ही हत्या कर दी गयी। हाल ही में इसी मामले में दूसरी हत्या हुई। फरीदकोट से 10 नवम्बर 2022 को खबर आने लगी थी कि इसी बरगाड़ी बेअदबी मामले के आरोपी संख्या 63 प्रदीप सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी है। बेअदबी बताकर, उसके लिए डेरा प्रेमियों की हत्या निश्चित रूप से मजहबी आतंकवाद है जो कहीं न कहीं इस तरफ भी इशारा करता है कि पंजाब के आतंकवाद का जिन्न सिर्फ बोतल में बंद हुआ है, वो मरा नहीं है। सोशल मीडिया पर पोस्ट करके गोल्डी बराड़ ने प्रदीप सिंह की हत्या की जिम्मेदारी ली थी। अपनी पोस्ट में उसने लिखा था कि बेअदबी मामले की वजह से ही हत्या की गयी है।
ऐसे मामलों की जाँच करते हुए नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने गिरोहों के सरगना लॉरेंस बिश्नोई को गिरफ्तार कर लिया है। उसपर आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम करने, देश-विदेश के अपराधी गिरोहों के साथ मिलकर फंडिंग जुटाने जैसे आरोप हैं।
अपने भाइयों सचिन और अनमोल बिश्नोई के अलावा वो गोल्डी बराड़, काला जठेदी, काला राना, बिक्रम बराड़ और संपत नेहरा जैसे अपराधियों के साथ मिलकार आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिशें करता रहा है। पंजाब की कमजोर आम आदमी पार्टी सरकार जो आते ही भ्रष्टाचार के आरोपों में लिप्त रही, उससे ऐसी वारदातों और ऐसे संगठनो पर नियंत्रण की कोई उम्मीद तो रखना बेमानी होगा।
नशे और धर्म-परिवर्तन के बाद मजहबी कॉकटेल पंजाब के युवाओं को फिर से उसी दिशा में लेकर जा रहा है, जिस दिशा से एक बार उन्हें वापस लाने के लिए जोरदार मेहनत करनी पड़ी थी। इस बार मजहबी आतंकवाद के अलावा धर्म परिवर्तन करके ईसाई हो चुके एक बड़े वर्ग से भी समस्या आएगी। ‘उड़ता पंजाब’ के नए संस्करण की भारत को तैयारी कर लेनी चाहिए।